'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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हिंदी माध्यम से 8वीं तक की पढ़ाई के बाद लखनऊ में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू हुई। 10वीं के अंकों को देखकर बाबा को लगा कि अचानक अंग्रेजी म...
Sunday, December 25, 2016
क्रिसमस और मेरा डर
मुझे याद है 29 दिसंबर को सुबह तुमने फिर फोन किया... मैं हैरान था कि रात 3 बजे तक तो मैं तुमको सैकड़ों कॉल कर चुका हूं लेकिन तुमने फोन नहीं उठाया और फिर अचानक सुबह 5:45 पर कॉल क्यों? बस मानसिक जद्दोजहद में फोन उठाकर बाहर आ गया... मन में एक अजीब सा डर था कि ऐसा क्या हुआ जो तुमने इतनी सुबह फोन कर दिया...
तुमने कहा, 'गौरव! उस दिन लखनऊ में मेरी फ्रेंड के घर पर पार्टी थी और मैंने बहुत मुश्किल से पापा-मम्मी को मनाया था, पूरे 4 महीने 11 दिन के बाद मिल सकते थे हम लेकिन तुम्हे पूरी बात सुनने की आदत ही कहां है... मुझे पता है कि अब तुम्हारी आंखों से आंसू निकलने वाले हैं लेकिन प्लीज इतना याद रखना कि तुम्हारे सिद्धान्तों पर सिर्फ तुम्हारे लिए आघात कर सकती हूं...'
अब मेरा डर पश्चाताप में बदल चुका था....
# क्वीन
Tuesday, December 20, 2016
तुम्हारी पहचान बन रहा हूं मैं
तुम्हारी आँखों में खुद को खोजने वाला एक पागल सा लड़का सिर्फ उसी एक लम्हे में तो तुमसे नजरें चुराता था। मेरी ज़िन्दगी के हर एक पन्ने पर मेरी माँ के बाद तुम्हारा नाम है, क्योंकि ना ही वो मेरा साथ निभा सकीं और ना ही तुम...
#क्वीन
तुम्हारे इंतजार की वो रात
सुबह 8 बजे ही यहाँ पहुँच गया था मैं लेकिन तुम नहीं आई। सोचा था आज जी भर के तुम्हें देखूंगा, मुद्दतों से इन आँखों ने तुम्हारी आँखों की बेरुखी नहीं देखी थी...
तुम्हारी आँखों की बेरुखी में भी खुद को खोजने की मेरी वो तमन्ना पूरी न हो सकी...
#क्वीन
Tuesday, December 13, 2016
वो सब मजबूरी नहीं था
हर पल बस यही ख्याल आता था कि वो दो आँखें ये सब देख रही होंगी या नहीं, जिनकी बेरुखी ने मुझे ऐसा बना दिया। पुलिस की लाठियां खाने पर होने वाले दर्द के बाद निकलने वाली चीखों को वो सुन पाती होगी या नहीं, जिसकी प्रेरणा ने मुझे यह सब करने को मजबूर किया। तब वो सब मजबूरी था लेकिन समय बदला और फिर अहसास हुआ कि वह सब मजबूरी नहीं बल्कि मेरा दायित्व था और तुम्हारी भूमिका उसमें सिर्फ 'जामवंत' के रूप में थी।
शायद तुम्हें अहसास था कि मेरा 8 दिन का अनशन, मेरी लाठी खाने की क्षमता, मेरी सम्प्रेषणीयता, उस विश्वविद्यालय के राजा और उसकी सामंतवादी व्यवस्था का अहंकार तोड़ सकती है। तुमने मुझे मुझसे मिलाया और अब मैं तुम्हें वो पहचान दूंगा जिसकी तुम हक़दार हो, आखिर जिसने एक 'आवारा' गौरव को विश्व गौरव बनाया, उसे उसका 'अधिकार' तो मिलना चाहिए ना?
#क्वीन
Thursday, December 1, 2016
उनके सवालों का जवाब हो तुम
मेरे हौसले की तुम्हें भी दाद देनी पड़ेगी, इतना दर्द, इतने जख्मों के बावजूद भी होठों से अपनी मुस्कान गायब नहीं होने देता... मुझे पता है कि मेरे प्यार की शिद्दत तो ऐसी है कि मुझे भूलने के बाद भी जब भी तुम्हें किसी और से प्यार मिलेगा, तो तुम्हें सिर्फ मैं याद आऊंगा... आज तुम्हारी मुस्कान उन सभी के सवालों का जवाब है जो कहते हैं कि मोहब्बत तोड़ देती है...
#क्वीन
Saturday, November 26, 2016
इन अल्फाजों की वजह
तुम्हारी मजबूरी और मेरी बेबसी
दुल्हन बनने जा रही हो तुम
हमने जिन पलों को साथ बिताया है, उन्हें याद करके शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं... क्योंकि मुझे पता है कि अगर तुम शर्मिंदा हुई तो तुम्हारी आंखों में आंसू आएंगे और जिन आंखों में मैंने अपने लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है, उनमें आंसू आएं, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा...
बहुत बेरुखी दिखाई थी मैंने तुम्हें और तुमने वह बेरुखी मुझसे सीख ली और फिर उसे मुझ पर ही अजमाया... गलती तो मेरी ही थी... लेकिन मेरी बेरुखी की एक वजह थी... तुम्हारे अंदाज-ए-मोहब्बत ने मुझे मजबूर कर दिया था... हर दिन एक नया जख्म और फिर ख्याल रखने की हिदायत, मोहब्बत करते करते अपनी कद्र खो दी थी मैंने, मजबूरी हो गई थी बेरुखी करना... ऐतबार की वे कड़ियां, इंतजार की वे घड़ियां, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें और तुम्हारे वे अधूरे वादे... तुमसे जुड़ा सब कुछ मेरे लिए बेहद खास है... इन खास चीजों को मैं कभी खुद से दूर नहीं करूंगा... बस इतना सा ही वादा है और कुछ नहीं दे सकता मैं तुम्हें.... और हां! मैं अपने वादे कभी नहीं तोड़ता...
#क्वीन
Thursday, November 17, 2016
वे लॉकेबल डायरियां
अंग्रेजी की क्लास के दौरान जब तुम साइंस सेक्शन में आती थी तो मेरी निगाहें अपनी किताब से हटकर तुम पर ठहर जाती थीं। 40 मिनट की वह क्लास चंद पलों में सिमटती महसूस होती थी। उस लॉकेबल डायरी को जब मेरे पापा ने देखा तो उसका लॉक तोड़कर तुम्हारा नाम जानने की कोशिश की, लेकिन उन्हें नाकामयाबी ही मिली।
मेरी मोहब्बत चाहे तुम्हें 'आम' ही लगे लेकिन बिना नाम लिए तुम्हारा जिक्र करने का मेरा सलीका आज भी पहले की तरह ही बरकरार है, तुम्हें यह सलीका तो जरूर 'खास' लगता होगा। तुम्हारी उस फ्रेंड ने अगर मेरे घर पर तुम्हारा नाम ना बताया होता तो शायद आज वे भी तुम्हारे नाम से अनजान होते। पता नहीं अब उन्हें तुम्हारा नाम याद होगा भी या नहीं लेकिन मेरे दिल में तुम्हारे साथ बिताया गया हर एक पल 'लॉक' है, और उस लॉक की चाभी को भी अपनी मोहब्बत के समंदर में फेंक दिया है, जिससे कभी चाहकर भी उन लम्हों को खुद से दूर ना कर पाऊं....
#क्वीन
तुम्हें जानने वाली पहली शख्स है वो
Wednesday, November 16, 2016
तुम्हारी बातें और मेरे स्वप्न
मैं जीतता तो मोहब्बत हार जाती
तुम्हारी अजमाइश का भ्रमर जाल
Monday, October 31, 2016
क्वीन ऑफ़ हिल्स की वह दिवाली
2 साल पहले... सुबह का 5 बजकर 30 मिनट...
'क्वीन ऑफ़ हिल्स' यानी मसूरी की पहली सुबह, जगमगाती पहाड़ियों के बीच रात भर घूमने के बाद की थकावट के बीच यशश्वी सूर्य की लालिमा के दर्शन से पूर्व तुम्हारे चेहरे की लालिमा याद आ गयी। काश! तुम मेरे सामने होती। बस यही उस दिन भी सोच रहा था। तुम हमेशा से मेरी अपेक्षाओं को पूरा करती रही हो। और उस दिन भी तुम मेरी कल्पनाओं के आकाश में मेरा ही हाथ थामकर उड़ने लगी।
यथार्थ और कल्पना, एक बारीक सा अंतर है इसमें। कहते हैं, अपनी कल्पनाओं को साकार करने का यदि संकल्प कर लिया तो विश्वास मानिए, आप यथार्थ में ही हैं। मेरे पास मेरी कल्पनाओं का खुला आकाश भी था, उन्हें साकार कर तुम्हारे साथ खुलकर आकाश में उड़ने का संकल्प भी था, लेकिन फिर भी मैं यथार्थ तक नहीं पहुंच पाया। पता नहीं क्यों?
लेकिन एक बात तो पता है मुझे... परमपिता परमेश्वर हमसे ज्यादा हमारी चिंता करता है, और तुमसे जुड़ा हर एक लम्हा आज मेरे इस विश्वास को और ज्यादा मजबूत कर देता है।
#क्वीन
Friday, October 28, 2016
तुम्हारी मोहब्बत की कैद में दिवाली
हार और अहंकार, इन दो शब्दों का बेहद अटूट रिश्ता है। मुझे भी इस बात का अहंकार था कि मैं कभी हार नहीं सकता। आखिर अहंकार हो भी क्यों ना, कभी हार का स्वाद ही नहीं चखा था। बस तुम्हारी मोहब्बत और अपने अहंकार के मायाजाल में फंसकर अपनी बुआ जी के घर पहुँच गया। उनका घर, तुम्हारे मामा जी के घर से बस 2 किलोमीटर की दूरी पर था। पूजा के बाद तुम्हारे मामा जी के लैंडलाइन नंबर पर 17 बार अलग-अलग नाम से फोन किया, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं कराई। सबने यही कहा कि तुम घर के बाहर पटाखे जला रही हो।
मैं भी पागल, पहुँच गया तुम्हारे मामा जी के घर। सोचा था कि जिस वजह से घर से दूर आया हूँ, कम से कम वह तो मुकम्मल हो जाए। लेकिन.....
बस इसी 'लेकिन' पर तो सारी कहानियां चरित्रहीन हो जाती हैं...रात 11 बजे से 1:50 बजे तक तुम्हारे घर के बाहर खड़ा रहा, लेकिन तुम नहीं दिखी। उस दिन पहली बार मुझे मेरा विश्वास, 'अहंकार' लगा था और उसी दिन पहली बार दिवाली बिना पटाखों के मनाई थी। आज इतने सालों के बाद इस दीवाली को बिना पटाखों के मनाऊँगा। लेकिन इस बार तुम्हारे बारे में नहीं बल्कि उन परिवारों के बारे में सोच रहा हूं जिनके बेटे का शव कुछ दिन पहले तिरंगे में लिपट कर घर पहुंचा। इस साल एक दीप उनके लिए भी जलाऊंगा जो सीमा पर इसलिए खड़े रहते हैं ताकि 'तुम' दिवाली मना सको।
#इस_दीवाली_एक_दीप_भारतीय_सेना_के_नाम
#क्वीन
Tuesday, October 25, 2016
तब तुम मेरी ताकत थी और आज...
पता है, अगर आप किसी को धोखा देने में कामयाब हो जाते हैं तो इस बात से उसकी बेवकूफी का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए उस इंसान को आपसे मोहब्बत कितनी थी कि आपकी हर एक बात पर अंधविश्वास करता गया। मैं इसलिए हर बार हारता गया क्योंकि मेरी हार की वजह से तुम्हें जीत मिल रही थी और तुम्हारी जीत से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं था।
जब पता लगा कि मेरे दर्द पर तुम मुस्कुराती हो तो ईश्वर से दुआओं में दर्द ही मांगने लगा। और वैसे भी प्रकृति का नियम है कि जो जैसा करता है, उसे उसके अनुरूप ही परिणाम मिलता है। क्या हुआ जो तुम किसी और के लिए मुझे छोड़ कर चली गई। मैंने भी तो तुम्हारे लिए सबको छोड़ दिया था...बुजदिल नहीं था मैं, परिणाम जानता था... देखो, हौसलों ने साथ और आज भी खड़ा हूं, उतनी ही मजबूती से, उससे बेहतर स्थिति में... बस तब तुम ताकत बनकर मेरे साथ खड़ी थी और आज तुम्हारे साथ बिताए गए लम्हें मेरी ताकत बन चुके हैं...
#क्वीन
मेरे वजूद में जिंदा हो तुम
इस दुनिया में अगर कोई और किसी तरह का गुनाह करता है तो शोर मचने लगता है लेकिन जब अपना गुनाह होता है तो चुप्पी छा जाती है... पता है हममें खास बात क्या है... हम दोनों में से किसी ने एक-दूसरे को अलग होने को जिम्मेदार नहीं ठहराया। यह हमने उस दौर में किया जब 'जरूरत' रिश्तों की बुनियाद में इस कदर बैठ चुकी है कि रिश्तों की मर्यादा शून्य हो गई है। ठंड में लोग जिस सूर्य के लिए तरसते हैं, उसके बाहर आने की दुआएं करते हैं और गर्मी में उसे ही गाली देते हैं, उसी तरह से आज के रिश्ते हो गए हैं।
बस इतनी सी तमन्ना है कि कभी जिन्दगी के किसी मोड़ पर अगर हम दोनों एक-दूसरे से टकराएं तो हमें नजरें झुकाकर बात ना करनी पड़े। मैं अपने रिश्ते के अवाचित शाश्वत सत्य को हर दिन एक नया मुकाम देने की कोशिश करता रहा। हमें पता होता है कि हमारी बनाई रंगोली अगले ही दिन मिट जाएगी, फिर भी हम उसे सर्वाधिक मनमोहक, आकर्षक और कलात्मक रूप देने का प्रयास करते रहते हैं। उसी रंगोली की तरह ही मैं जानता था कि हमारे रिश्ते का कोई वजूद नहीं, कोई भविष्य नहीं लेकिन फिर भी उसे एक खूबसूरत मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया... और देखो आज लोग तुम्हें एक नए नाम से खोज रहे हैं... और तुम मेरी पहचान बनकर मेरे वजूद में जिंदा हो...
#क्वीन
Wednesday, October 5, 2016
कुछ सवाल
उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा....
हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....
मेरा गुरूर
मेरी निर्माता हो तुम
समय की रफ्तार
Friday, September 2, 2016
मेरे स्वप्नलोक की वास्तविकता
तुमको पता है मेरी ज़िन्दगी के हर एक हिस्से में , हर एक किस्से में बस तुम्हारी ही कल्पना तो बसती थी। लेकिन तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मैं तो तुम्हारे लिए बस एक 'विकल्प' था। क्या करता मैं? क्या कर सकता था मैं?
अंत में तुम मजहबी बहाने बनाने लगी और मैं अपनी कल्पनाओं के समंदर में डूबने लगा। कल्पनाओं की अट्टालिका बनाने में मुझे कुछ वक़्त तो जरूर लगा लेकिन खुश हूँ कि उस अट्टालिका की नींव से लेकर अंतिम छोर तक तुम सिर्फ मेरी ही हो...
#क्वीन
उस दिन टूट गया था भ्रम
जीवन की सबसे आसान लड़ाई हार गया था मैं... और जानती हो दुःख यह नहीं है कि मैं वह लड़ाई हार गया बल्कि दुःख इस बात का है कि मैंने उस लड़ाई को लड़ा ही नहीं।तुमने अगर उस लड़ाई से पहले मेरा हाथ न छोड़ा होता तो मैं उस लड़ाई को लड़ जाता। और विश्वास मानो मैं वह लड़ाई जीत भी जाता। लेकिन जानता था बिना तुम्हारे उस जीत के मायने कुछ भी नहीं।
जब जंग अपनों से हो तो पीछे हट जाने में ही भलाई होती है और जब लड़ाई अपने आप से हो तो अपने अहंकार को कुचलकर विजय प्राप्त करने वाला ही तो पुरुषार्थी कहलाता है। तुम्हें हारकर खुद को जीत लिया था मैंने... लेकिन काश कि मैं तुमको भी जीत पाता... हमारी कहानी में इस काश की उपस्थिति कितनी अनिवार्य लगती है ना?
#क्वीन
सिर्फ 5 कदम की दूरी पर थी तुम
तुम्हारी एक-एक हरकत को देखते -देखते कब 3 घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। और फिर जब तुम वहां से निकली तो मैं भी अपने भाई-बहन को जबरदस्ती वहां से चलने को कहने लगा। जिस होटल में मैं रुका था, तुम भी उसी के बाहर जाकर रुक गई, तुमने भी अपना डेरा वहीँ डाला था। और फिर अगले दिन तुम्हें 'नंदन-कानन' में देखा। फिर उसी शाम बीच पर....क्या कहता इसे? प्यार? नहीं...यह प्यार नहीं था... फिर क्या था? ईश्वर की योजना... और कुछ नहीं कह सकते इसे....
उस दिन के 2 साल के बाद उसी बीच पर एक-दूसरे का हाथ थामकर समंदर के जल की निर्मलता और अपने प्रेम की पावनता के मधुर मिलन को महसूस करने के स्वप्न की अट्टालिका का ही तो निर्माण किया था हमने। पर एक सच यह भी है कि स्वप्नों की अट्टालिकाओं को ढहने में समय नहीं लगता....
#क्वीन
Sunday, August 21, 2016
'अपनी' कैद में था मैं
तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता था, लेकिन फिर भी तुम्हें 'आज़ाद' करना पड़ा.... काश! तुम मोहब्बत की इंतहा को समझ पाती….काश! तुम कभी समझ पाती कि मोहब्बत इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वह मेरी आराधना बन गई है.. काश! तुम कभी समझ पाती कि जिससे प्रेम हो जाता है उसे अपनी सांसों तक में भी महसूस किया जाने लगता है... लेकिन फिर सोचता हूं कि आजादी तो हर एक का अधिकार है... बस उसी 'अधिकार' के लिए खुद को, खुद की कैद से आज़ाद कर दिया...
Tuesday, August 16, 2016
बहुत पसंद थी ना तुमको...
अपनी जुबान पर तो नियंत्रण रख सकता था लेकिन आंखों पर कैसे रखता? जिस एक चेहरे को देखने के लिए घंटों इंतजार करता था, उसके सामने आने के बाद कैसे अपनी आंखों को चुराता...तुम्हें पता लग ही गया कि मेरे दिल में क्या था...हमने एक-दूसरे से बात करने के लिए उस 'नॉवेल' का सहारा लिया... तुम जानती हो ना कि मुझे प्रेम कहानियां पढ़ने में कोई रुचि नहीं... लेकिन तुम्हें थी और इसीलिए मुझे इसका सहारा लेना पड़ा... तुम्हें दूसरों के द्वारा अंग्रेजी में लिखी गईं 'मनगढ़ंत' प्रेम कहानियां बहुत पसंद थीं ना...और देखो आज तुम्हारी 'सच्ची' प्रेम कहानी को सब पढ़ रहे हैं...सब पसंद कर रहे हैं...खास बात यह है कि इसे पढ़ने के बाद अब लोग यह कहने की स्थिति में नहीं है कि 'प्रेम कहानियां' सिर्फ आईआईटी या आईआईएम वाले ही लिख सकते हैं...
#क्वीन
Monday, August 15, 2016
लव नहीं, प्रेम लिखता हूं...
उस नॉवेल के शुरुआती 4 पेज पढ़ने के बाद मैं उसे आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि उसमें प्रेम जैसा तो कुछ था ही नहीं। मैंने को श्रीराम और श्रीकृष्ण को पढ़ा था। मैंने तो यह पढ़ा था कि प्रेम ईश्वर का रूप होता है और इसी कारण जब मिथिला के बगीचे में श्रीराम और मां सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा तो उनके मन में प्रेम प्रकट हुआ। अब प्रकट तो ईश्वर ही हो सकते हैं ना। लेकिन जब उस नॉवल में पढ़ा कि नायक 'fall in love with' नायिका, तो समझ में नहीं आया कि आखिर ये 'लव' में गिरा क्यों? धीरे-धीरे जब अंग्रेजी लव का प्रत्यक्ष रूप देखा, जो फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर देखकर शुरू होता था और चंद महीनों में बिस्तर तक आकर खत्म हो जाता था तो समझ में आया कि गिरी हुई हरकतों वाला 'लव' हमारे ईश्वरीय 'प्रेम' के सामने कहीं नहीं टिकता...
बस तभी से तय किया कि 'लव' नहीं प्रेम लिखूंगा... वह प्रेम जो मां गंगा के जल की भांति शाश्वत, निर्मल, निच्छल, पावन एवं पवित्र होता है। शारीरिक सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है...
#क्वीन
तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती
पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन
Saturday, August 13, 2016
जिंदगी की कुछ मजबूरियां...
क्या उनसे यह कह दूं कि जिसके लिए मैं रोता हूं, वह किसी और को खुश रखने में व्यस्त है...खैर मैं बस इस बात से खुद को तसल्ली दे देता हूं कि "जिंदगी में कुछ मजबूरियां" मोहब्बत से ज्यादा ताकतवर होती हैं जिनकी वजह से ना चाहते हुए भी साथ छोड़ना ही पड़ता है। हम अपने रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रहे थे और फिर वक़्त ने अपनी चाल चली और हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया। अगर कभी मौका मिला तो कुछ पल उन दिनों का ज़िक्र करेंगे, जब तुम मेरे और मैं तुम्हारा हुआ करता था....
#क्वीन
मेरी कामना
तुम मेरे पास होकर मुझसे क्या चाहती थी, यह मुझे नहीं पता लेकिन मैं बस तुम्हारे साथ बिताए गए हर एक पल हो एक सुनहरे सपने की तरह जीना चाहता था... एक ऐसा सपना जिसका कभी अंत न हो, जो कभी न टूटे लेकिन सत्य यह है कि मेरी यह कामना अवैज्ञानिक भी थी और अर्थहीन भी...
#क्वीन
और बेहतर की उम्मीद में...
ऐसा ही कुछ हमारी जिंदगी में भी होता है। कभी-कभी हम और ज्यादा बेहतर पाने की तमन्ना में बेहतरीन को भी खो देते हैं। अब तुम खुद तय कर लो कि तुम किस रास्ते पर हो। रही बात मेरी तो मैंने जो फूल चुना था, उसमें तो कोई कमी नहीं थी लेकिन मैं भूल गया कि कुछ फूल डालियों पर ही अच्छे लगते हैं। खैर, उस फूल के साथ बिताया गया कुछ समय मेरे लिए बेहद खास था और अब मैं किसी फूल को डाली से तोड़कर उसकी 'हत्या' का पाप अपने सर लेने की स्थिति में भी नहीं हूं...
#क्वीन
हो सकता है तुमको यह गलत लगे...
Friday, August 12, 2016
क्या मुझे इस बात पर खुश होना चाहिए?
उसने तुम्हारी तारीफ में और भी बहुत कुछ कहा। मुझे अच्छा लगा कि कम से कम मेरी कलम में इतनी ताकत तो है कि तुमको भी लोग 'पसंद' करने लगे हैं। उसके मुताबिक तुम दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की हो क्यों कि जो इंसान तुम्हें प्यार करता है, उस इंसान के प्रेम पर वे लोग भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा पा रहे जो उसे जानते तक नहीं। वैसे मुझे भी इस बात का गुरुर है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत कीमती चीज है प्यार मेरे लिए और इसी कारण मैं भी यही मानता हूं कि तुम वाकई में खुशनसीब हो कि मैं तुम्हें चाहता हूं। ये मेरा अहंकार नहीं बल्कि मेरे प्रेम की पवित्रता पर विश्वास है।
लेकिन एक बात बताओ तो जरा कि क्या तुमसे जुड़ी पोस्ट का अनुवाद करने वाली बात को लेकर मुझे खुश होना चाहिए? क्या मुझे गर्व होना चाहिए कि मेरी कलम से जो लिखा गया उसका ट्रांसलेशन करके लोग उसे छपवाने की बात कर रहे हैं? मैं क्या सोचता हूं, वह कल बताउंगा लेकिन तुमसे जानने की इच्छा जरूर है।
Thursday, August 11, 2016
हमारे रिश्ते की परिभाषा
Sunday, August 7, 2016
.बस तरीका बदल गया...
Saturday, August 6, 2016
हमारा रिश्ता
Thursday, August 4, 2016
मेरा प्रदर्शन और तुम्हारा दर्शन
Tuesday, August 2, 2016
तीखेपन का प्यार
#क्वीन
Sunday, July 24, 2016
मेरा विश्वास
हमारे रिश्ते की पवित्रता ही तो है जिसके आधार पर मेरी 'क्वीन' पूर्ण हो सकेगी...दुनिया में दो पौधे ऐसे हैं जो कभी मुरझाते नहीं और अगर वे मुरझा गए तो उसका कोई इलाज नहीं,एक नि:स्वार्थ प्रेम और दूसरा अटूट विश्वास... मुझे गर्व है कि मेरी ओर से दोनों चीजें अपने शाश्वत रूप में हैं और रही तुम्हारी बात तो मुझे पता है तुम भी प्रेम और विश्वास की इस पराकाष्ठा को कभी न कभी तो जरूर समझोगी.... मैं सनातनी परंपरा में अटूट विश्वास रखता हूं, इस नाते पुनर्जन्म में भी विश्वास है... हो सकता है कि तुम इस जन्म में मेरी बात का यकीन न करो लेकिन अगले जन्म में तो तुम्हें मानना ही होगा... क्योंकि मैं तब भी नहीं बदलूंगा... और हां, यह मेरा अंधविश्वास नहीं है... मैं तुम्हारी उस 'दोस्त' की तरह ही अपने विश्वास पर 'विश्वास' करता हूं... हालांकि मेरे इस विश्वास का आधार तुम ही तो, साथ ही मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे विश्वास को कभी टूटने नहीं दोगी...
#क्वीन
Saturday, July 23, 2016
तुम्हारा अधिकार
#क्वीन
Friday, July 22, 2016
हमेशा रहोगी तुम...
#क्वीन
Thursday, July 21, 2016
क्यों लिखता हूं तुमको?
मैं बस इतना चाहता हूं कि 'कान्ट स्टॉप द फीलिंग' सुनने वालों तक हिंदी पहुंचे और अगर कोई यह समझता है कि अंग्रेजी बोलने से कोई लड़की उससे प्यार करने लगेगी तो उसे सच का अहसास हो कि अपनी मातृ भाषा में प्रेम प्रदर्शित करना जितना आसान है, विदेशी भाषा में उसे प्रदर्शित करना उतना ही मुश्किल...अपनी मां के लिए लिखता हूं... हिंदी के लिए लिख रहा हूं... मां के अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी महबूबा का प्रयोग कर रहा हूं... हो सकता है कोई गलत कहे लेकिन मैं आज भी सही हूं जैसे उस शाम था....
#क्वीन
Wednesday, July 20, 2016
तुम्हारी वह तस्वीर
आखिर खाना ही तो सब कुछ नहीं होता... खाना बनाने की कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती थी... लेकिन तुम्हारा कोई विकल्प नहीं... तुम खुद में एकमात्र विकल्प थी...
#क्वीन
Tuesday, July 19, 2016
मेरी दुआ
#क्वीन
मेरा वादा...
#क्वीन
Monday, July 18, 2016
और उस दिन...
#क्वीन
Friday, July 15, 2016
चेहरे के रंग
और उस दिन मेरे एक दोस्त ने शाम को मुझे कॉल किया, उसने मुझसे कहा कि वह मिलना चाहता है...मेरे पास उस समय बाइक नहीं थी तो मैंने कहा कि मैं थोड़ी देर में आता हूं... फिर देर शाम उसने कॉल करके कहा कि तुम मुझे बुला रही हो... मुझे पता था कि तुम मुझे बुलाने के लिए किसी और से तो नहीं कह सकती... खैर, मेरा छोटा भाई बाइक लेकर दीदी के घर पर गया हुआ था... मैंने उसे तत्काल वापस बुलाया और बाइक लेकर मार्केट पहुंचा... उम्मीद के मुताबिक तुम तो वहां नहीं थी लेकिन मेरा दोस्त मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था...
उसे लग रहा था कि मैं तुम्हारे लिए आया हूं लेकिन सच तो यही था कि उस दिन अगर वह तुम्हारा नाम नहीं लेता तो भी मैं कुछ देर के बाद नियत स्थान पर जाता... तुमसे मिलने नहीं, बस उस जगह पर तुम्हें महसूस करने जहां तुम रोज जाती थी...
और जब अगले दिन मैंने तुम्हें बताया कि लोग अब तुम्हारा नाम लेकर मुझे मिलने बुलाने लगे हैं तो पूरे 21 मिनट तक तुमने मुझसे झगड़ा किया था... मैंने किसी को नहीं बताया था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं लेकिन चेहरे के रंग को कैसे छिपाता... जो लोग बहुत करीब थे उन्हें पता लग ही गया था... बस दुख इस बात का है कि उन लोगों को समझ में आ गया तो वे फायदा उठाने लगे और तुमने उस बात को समझने की कोशिश ही नहीं की...
#क्वीन
Wednesday, July 13, 2016
लेकिन के मायने
एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती थी, जानती हो वह क्या थी? मैं जो करता था उससे किसी न किसी का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष फायदा जरूर होता था लेकिन तुम जो करती थी उससे सिर्फ तुम्हारे भविष्य का नुकसान था... इसमें परेशान करने वाली बात यह थी कि तुम सब कुछ जानते हुए भी वही करती जा रही थी जो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं था... तुम कहती भी थी कि हां गौरव, मैं जानती हूं कि यह मेरे लिए ठीक नहीं लेकिन... इस लेकिन के आगे तुमने कभी कुछ नहीं बताया... 'लेकिन' के मायने कितने बड़े होते हैं यह तुम्हारे उस 'लेकिन' ने ही बताया था...
#क्वीन
वह खौफनाक सुबह
खैर, उस रात के आगोश में डूबकर तुम जिस तरह से धीमी आवाज में बात कर रही थी, वैसी आवाज मैंने कभी नहीं सुनी थी... उस आवाज में प्रेम और डर का अनूठा संगम झलक रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे तुम किसी ऐसे खौफनाक सपने में हो जिसमें तुम अपना सब कुछ खोने वाली हो और उसे बचाने का तुम्हें कोई रास्ता नहीं मिल रहा।
पता है, मोहब्बत गहरी हो या ना हो लेकिन विश्वास गहरा होना चाहिए... कुछ मिनट तक तुम्हारी उस आवाज के दर्द को महसूस किया और फिर अचानक तुमने फोन काट दिया...अगले दिन तुम जब मिली तो इतना ही बोली, 'गौरव, 'खुशबू' की तरह हूं मैं, जब तक हूं तब तक मुझे महसूस करो...स्थायित्व आ गया तो मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।'
तुमने ऐसा क्यों कहा? यह भी उन सवालों में एक है जिनका जवाब आज तक नहीं मिला....
#क्वीन
Tuesday, July 12, 2016
मजबूरी थी वह मेरी...
#क्वीन
Monday, July 11, 2016
वे 7 मिनट
हां, फिर से मैं उसी तरह से 7 मिनट तक तुम्हारी आँखों को देखता रहा जैसे पहले देखा करता था। तुम खुश थी, तुम्हारी उन आँखों में कुछ खोने का दर्द भी नहीं था...बस इसी का तो कायल था मैं...हर हालात में खुश रहना...अंतर इतना सा है कि पहले की तरह ही मैं उस ख़ुशी की कीमत के बारे में सोच लेता हूँ।
अंदाजा लगाओ तुम्हारे सामने खड़े होकर बिताए गए उन 7 मिनटों के सहारे मैं कितना समय बिता सकता हूँ? 7 और मिनट या 7 घंटे या 7 दिन या 7 महीने या 7 साल या पूरी ज़िन्दगी?
उन सात मिनटों के सहारे तो मैं 7 जन्म बिता सकता हूँ...लेकिन अगर उन 7 जन्मों में तुम मेरे साथ होती तो बात ही कुछ और होती।
#क्वीन
तुम्हारी वह मुस्कुराहट
13 मिनट 40 सेकंड की उस कॉल के दौरान तुमने कई बार मुझसे पूछा कि आखिर मुझे यह बात पता कैसे लगी कि तुम रोई हो... मैं नहीं बता सकता था, क्योंकि यह बात मुझे किसी ने बताई ही नहीं थी...
#क्वीन
Sunday, July 10, 2016
एक पुराना पत्र
समूचा विश्व उनको पढ़ रहा है तुमको सूचित हो...!!
#साभार #क्वीन #पुराने_पत्र
