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Sunday, December 25, 2016

क्रिसमस और मेरा डर

याद है 25 दिसंबर की वह शाम जब तुमने फोन करके 'मैरी क्रिसमस' बोला था और मैंने सनातनी अहंकार में तुमसे कह दिया था कि हिंदू त्योहार कम पड़ गए हैं क्या? 'गौरव! तुमसे तो बात करना ही बेकार है...' तुमने तुरंत यही कहते हुए फोन काट दिया था ना.... उसके बाद अगले 3 दिन तुमने मुझसे बात ही नहीं की...

मुझे याद है 29 दिसंबर को सुबह तुमने फिर फोन किया... मैं हैरान था कि रात 3 बजे तक तो मैं तुमको सैकड़ों कॉल कर चुका हूं लेकिन तुमने फोन नहीं उठाया और फिर अचानक सुबह 5:45 पर कॉल क्यों? बस मानसिक जद्दोजहद में फोन उठाकर बाहर आ गया... मन में एक अजीब सा डर था कि ऐसा क्या हुआ जो तुमने इतनी सुबह फोन कर दिया...

तुमने कहा, 'गौरव! उस दिन लखनऊ में मेरी फ्रेंड के घर पर पार्टी थी और मैंने बहुत मुश्किल से पापा-मम्मी को मनाया था, पूरे 4 महीने 11 दिन के बाद मिल सकते थे हम लेकिन तुम्हे पूरी बात सुनने की आदत ही कहां है... मुझे पता है कि अब तुम्हारी आंखों से आंसू निकलने वाले हैं लेकिन प्लीज इतना याद रखना कि तुम्हारे सिद्धान्तों पर सिर्फ तुम्हारे लिए आघात कर सकती हूं...'

अब मेरा डर पश्चाताप में बदल चुका था....
# क्वीन

Tuesday, December 20, 2016

तुम्हारी पहचान बन रहा हूं मैं

मैं तुम्हें कॉल करना चाहता था, मैं तुमको बताना चाहता था कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पा रहा, मैं आज तुमसे मिलकर तुम्हें फिर से वह पल याद दिलाना चाहता था जब तुम मेरी बाहों के आगोश में मेरी आँखों में आँखें डालकर कह रही थी कि तुम मेरे बिना नहीं जी सकती। लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता क्योंकि मैं तुम्हारी आँखों में आंसू नहीं देख सकता।

तुम्हारी आँखों में खुद को खोजने वाला एक पागल सा लड़का सिर्फ उसी एक लम्हे में तो तुमसे नजरें चुराता था। मेरी ज़िन्दगी के हर एक पन्ने पर मेरी माँ के बाद तुम्हारा नाम है, क्योंकि ना ही वो मेरा साथ निभा सकीं और ना ही तुम...

मैं तो पूजा और अजान के भेद को मिटाना चाहता था, मैं चाहता था कि नफरत के इस माहौल में मोहब्बत के फूल खिलें लेकिन वो सब मुमकिन नहीं था... मेरे राम के आगे मेरी कहाँ चलती... अच्छा ही हुआ! अगर तुम मिल गयी होती तो शायद सिर्फ मैं तुम्हें जानता और आज मैं तुम्हारी पहचान बन रहा हूं...
#क्वीन

तुम्हारे इंतजार की वो रात

सुबह 11 बजे पहुंचना था लेकिन रात भर आँखों को आराम नहीं मिला। आँखों को उम्मीद थी कि सुबह वो चेहरा उनके सामने होगा जिसकी लाली ने मेरी ज़िंदगी के अंधेरे को छांट कर गुलाबी कर दिया था।

सुबह 8 बजे ही यहाँ पहुँच गया था मैं लेकिन तुम नहीं आई। सोचा था आज जी भर के तुम्हें देखूंगा, मुद्दतों से इन आँखों ने तुम्हारी आँखों की बेरुखी नहीं देखी थी...
तुम्हारी आँखों की बेरुखी में भी खुद को खोजने की मेरी वो तमन्ना पूरी न हो सकी...

पता है, वहां बहुत से लोग तुमको पूछ रहे थे... कोई यह जानना चाहता था कि नाम क्या है तुम्हारा? तो कोई यह जानना चाहता था कि तुम वहां हो भी या नहीं... क्या बताता मैं? मेरी फितरत वादें तोड़ने कि नहीं है, तुमसे किया गया वादा याद था मुझे, बस इसलिए खामोश ही रह गया...
#क्वीन

Tuesday, December 13, 2016

वो सब मजबूरी नहीं था

तुम हमेशा कहती थी, 'तुमने दूसरों के लिए किया ही क्या है?' लेकिन मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं होता था। जब कॉलेज में पढ़ाई के दौरान छात्रों के लिए कुछ करने का मौका मिला तो हर दिन सुर्ख़ियों में रहता था। शाम 8 बजे की न्यूज़ में जब मेरी बाइट देखकर दोस्तों से लेकर प्रिंसिपल तक कहती थीं, 'तुम तो बड़े नेता हो गए।' तो मुझे कोई ख़ुशी नहीं होती थी।
हर पल बस यही ख्याल आता था कि वो दो आँखें ये सब देख रही होंगी या नहीं, जिनकी बेरुखी ने मुझे ऐसा बना दिया। पुलिस की लाठियां खाने पर होने वाले दर्द के बाद निकलने वाली चीखों को वो सुन पाती होगी या नहीं, जिसकी प्रेरणा ने मुझे यह सब करने को मजबूर किया। तब वो सब मजबूरी था लेकिन समय बदला और फिर अहसास हुआ कि वह सब मजबूरी नहीं बल्कि मेरा दायित्व था और तुम्हारी भूमिका उसमें सिर्फ 'जामवंत' के रूप में थी।
शायद तुम्हें अहसास था कि मेरा 8 दिन का अनशन, मेरी लाठी खाने की क्षमता, मेरी सम्प्रेषणीयता, उस विश्वविद्यालय के राजा और उसकी सामंतवादी व्यवस्था का अहंकार तोड़ सकती है। तुमने मुझे मुझसे मिलाया और अब मैं तुम्हें वो पहचान दूंगा जिसकी तुम हक़दार हो, आखिर जिसने एक 'आवारा' गौरव को विश्व गौरव बनाया, उसे उसका 'अधिकार' तो मिलना चाहिए ना?
#क्वीन

Thursday, December 1, 2016

उनके सवालों का जवाब हो तुम

क्या हम जिसे प्यार करते हैं, उससे शादी कर लेने को, जिन्दगी भर उसके साथ रहने को, अपने प्यार का पूरा होना माना जा सकता है? तुम शायद ऐसा ही सोचती थी... तभी तो जब तुम्हें विश्वास हो गया कि हम जिंदगी पर एक साथ नहीं रह सकते तो तुमने कहा कि हमारा प्यार, हमारी मोहब्बत पूरी नहीं हो सकती... पता नहीं मोहब्बत को लेकर तुम्हारी सोच का दायरा इतना छोटा क्यों था... तुम्हारी मोहब्बत का नहीं पता लेकिन मेरी मोहब्बत तो तुम्हें चाहने भर से ही मुकम्मल हो गई है। वो जिंदगी जो तुम्हारे साथ बिताने का ख्वाब देखा था, उसे हर दिन अपने ख्वाब में जीता हूं...

मेरे हौसले की तुम्हें भी दाद देनी पड़ेगी, इतना दर्द, इतने जख्मों के बावजूद भी होठों से अपनी मुस्कान गायब नहीं होने देता... मुझे पता है कि मेरे प्यार की शिद्दत तो ऐसी है कि मुझे भूलने के बाद भी जब भी तुम्हें किसी और से प्यार मिलेगा, तो तुम्हें सिर्फ मैं याद आऊंगा... आज तुम्हारी मुस्कान उन सभी के सवालों का जवाब है जो कहते हैं कि मोहब्बत तोड़ देती है...
#क्वीन

Saturday, November 26, 2016

इन अल्फाजों की वजह

बसंत की उस प्यारी हवा सी चलती हुई तुम जब मेरे सामने आकर रुकती थी तो ऐसा लगता था कि चांद मेरे सामने आ गया हो... पता है ऐसा लगता था जैसे अषाढ़ की कड़ी धूप में मुुझे आम के पेड़ के नीचे जैसी छांव मिल गई हो। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता था कि तुम मेरे सामने आकर मुझसे नजरें क्यों नहीं मिलाती थी? तुम सामने से हमेशा नजर झुकाकर बात करती थी, क्या इसलिए क्योंकि तुम्हें पता था कि तुम्हारी आंखें मुझसे उस सच को नहीं छिपा पाएंगी जो कुछ महीनों में मूर्त रूप लेने वाला था?

तुम्हें बार-बार पाकर खोना थोड़ा अजीब लगता था और इसीलिए खुद-ब-खुद तुमसे दूर चला गया। तुम मेरी कमजोरी से अच्छी तरह से वाकिफ थी, तुम्हारे आंसू मुझे हर बार हरा देते थे लेकिन जब तुमसे दूर गया तो लगा कि अब हमेशा के लिए हार गया लेकिन गलत था मैं... उस दिन हारकर भी जीत गया था मैं... 

कोशिश करता था कि तुम्हें भूल जाऊं, तुम मेरी जिंदगी के हर लम्हे से चली जाओ लेकिन मेरा इरादा मेरी बेबसी से हमेशा हार जाता था। लोग कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। मुझे आज तक नहीं समझ आया कि आखिर तुमने मुझे खोकर क्या पाया लेकिन अगर मुझसे कोई यही सवाल करे कि मैंने तुम्हें खोकर क्या पाया तो? जानना चाहोगी ना तुम?
तो सुनो! मैंने तुम्हें खोकर खुद को पाया है... मेरे इन अल्फाजों में बसे दर्द की उत्पत्ति का पूरा श्रेय सिर्फ तुम्हें जाता है... मेरी जिन्दगी के सबसे हसीन और सबसे दर्दनाक लम्हों की वजह बस तुम ही थी, तुम ही हो और तुम ही रहोगी...
#क्वीन

तुम्हारी मजबूरी और मेरी बेबसी

आज अगर कोई पूछे कि उस रिश्ते से मुझे क्या मिला तो मैं बस चुपचाप अपनी आंखे बंद करके दिल में बसे कुछ 'लम्हों' को ही अपनी कमाई बता सकता हूं... कुछ टूटे से, कुछ बिखरे से और कुछ अधूरे लम्हें... उन लम्हों की सबसे खास बात पता है क्या थी? सपने तोड़ देने वाले उन लम्हों में उम्मीद की झलक हमेशा बनी रहती थी... उन टूटे सपनों में  तुम्हारी मजबूरी दिखती थी मुझे लेकिन मेरी बेबसी हमेशा तुम्हारी मजबूरी को हराकर मुझे एक उम्मीद दे जाती थी।

उस मंदिर में पीपल के पेड़ पर बांधे गए धागे की गांठ तुम्हारा नाम लेकर ही तो बांधता था... 'तुम कभी मुझसे दूर ना जाओ' यही तो मांगा था मैंने भगवान से और देखो आज मेरे दिल के साथ-साथ मेरे अल्फाजों में भी बस गई हो तुम... शब्द तो ब्रह्म का स्वरूप होता है, उसका आधार बनना इतना आसान तो नहीं होता... पर आसान काम मेरे राम मुझसे कराते भी कहां हैं...

बहुत कम लोग होते हैं जिनकी जरूरत और ख्वाहिश दोनों एक ही हो... उन चुनिंदा लोगों में मैं भी था जिसकी जरूरत और ख्वाहिश दोनों तुम ही थी और देखो ना मेरी ख्वाहिश कुछ इस तरह पूरी हुई कि जिंदगी भर के लिए तुम मेरे अल्फाजों में बस गई। मेरे दिल में दबी वो अनकही बातें, उन अल्फाजों के सहारे ही बाहर आती है और मेरी मासूम सी मोहब्बत इन अल्फाजों में मुस्कुराती दिखाई देती है। बस कोशिश ये है कि इन अल्फाजों को पढ़कर शर्म से लाल हुए अपने गालों को अपनी भूरी आंखों से शीशे के सामने खड़े होकर देखो तो तुम्हारे मासूम चेहरे के गुलाबी होठों पर भी मुस्कान तैर जाए...
#क्वीन 

दुल्हन बनने जा रही हो तुम

दुल्हन बनने जा रही हो तुम... अब किसी और के हाथों में होगा तुम्हारा हाथ... तुम्हारे सपने पूरे हो रहे हैं, उन सपनों को नई उड़ान मिल रही है... लेकिन क्या तुम्हें वह उड़ान याद है, जो हमने साथ मिलकर उड़ी थी? शर्मिंदा हो ना उस पर? जिस उड़ान के दौरान पंख ही टूट जाएं और परिंदा निढाल होकर जमीन पर गिर जाए तो शर्मिंदा होना तो बनता ही है... लेकिन अगर उसदिन तुम्हारे पर न टूटे होते और तुम न गिरी होती तो विश्वास मानो आज इन नए पंखों के साथ तुम इस उड़ान को न भर पाती...

हमने जिन पलों को साथ बिताया है, उन्हें याद करके शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं... क्योंकि मुझे पता है कि अगर तुम शर्मिंदा हुई तो तुम्हारी आंखों में आंसू आएंगे और जिन आंखों में मैंने अपने लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है, उनमें आंसू आएं, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा...

बहुत बेरुखी दिखाई थी मैंने तुम्हें और तुमने वह बेरुखी मुझसे सीख ली और फिर उसे मुझ पर ही अजमाया... गलती तो मेरी ही थी... लेकिन मेरी बेरुखी की एक वजह थी... तुम्हारे अंदाज-ए-मोहब्बत ने मुझे मजबूर कर दिया था... हर दिन एक नया जख्म और फिर ख्याल रखने की हिदायत, मोहब्बत करते करते अपनी कद्र खो दी थी मैंने, मजबूरी हो गई थी बेरुखी करना... ऐतबार की वे कड़ियां, इंतजार की वे घड़ियां, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें और तुम्हारे वे अधूरे वादे... तुमसे जुड़ा सब कुछ मेरे लिए बेहद खास है... इन खास चीजों को मैं कभी खुद से दूर नहीं करूंगा... बस इतना सा ही वादा है और कुछ नहीं दे सकता मैं तुम्हें.... और हां! मैं अपने वादे कभी नहीं तोड़ता...
#क्वीन

Thursday, November 17, 2016

वे लॉकेबल डायरियां

याद हैं वे लॉकेबल डायरियां, जिन्हें हम कॉलेज में एक्सचेंज किया करते थे? हर रात हम दोनों अपने दिल की बातें उनमें लिखते थे और फिर सुबह कॉलेज में एक-दूसरे की डायरियां घर ले जाते थे... कितना अच्छा लगता था ना रात के अंधेरे में लिखी गई बातों को चढ़ते सूर्य के साथ पढ़ना... लगता था जैसे हम एक-दूसरे के सामने खड़े होकर अपने मन की बातें बता रहे हों... सुबह 7 बजे कॉलेज पहुंचकर सीढ़ियों पर तुम्हारे कदमों की आहट का इंतजार करना सांस लेने जितना जरूरी हो गया था।

अंग्रेजी की क्लास के दौरान जब तुम साइंस सेक्शन में आती थी तो मेरी निगाहें अपनी किताब से हटकर तुम पर ठहर जाती थीं। 40 मिनट की वह क्लास चंद पलों में सिमटती महसूस होती थी। उस लॉकेबल डायरी को जब मेरे पापा ने देखा तो उसका लॉक तोड़कर तुम्हारा नाम जानने की कोशिश की, लेकिन उन्हें नाकामयाबी ही मिली।

मेरी मोहब्बत चाहे तुम्हें 'आम' ही लगे लेकिन बिना नाम लिए तुम्हारा जिक्र करने का मेरा सलीका आज भी पहले की तरह ही बरकरार है, तुम्हें यह सलीका तो जरूर 'खास' लगता होगा। तुम्हारी उस फ्रेंड ने अगर मेरे घर पर तुम्हारा नाम ना बताया होता तो शायद आज वे भी तुम्हारे नाम से अनजान होते। पता नहीं अब उन्हें तुम्हारा नाम याद होगा भी या नहीं लेकिन मेरे दिल में तुम्हारे साथ बिताया गया हर एक पल 'लॉक' है, और उस लॉक की चाभी को भी अपनी मोहब्बत के समंदर में फेंक दिया है, जिससे कभी चाहकर भी उन लम्हों को खुद से दूर ना कर पाऊं....
#क्वीन

तुम्हें जानने वाली पहली शख्स है वो

कितना मुश्किल होता है उस इंसान की आंखों में आंसू देखना जिससे आप मोहब्बत करते हैं... पर उस दिन तुम्हारी आंखों के आंसू अच्छे लगे क्योंकि वे आंसू मेरे लिए थे, तुम्हें डर था मुझसे दूर जाने का... उस दौर में एक-एक महीना ऐसे बीतता था जैसे एक-एक दिन हो... तुम्हारे साथ समय का पता ही नहीं लगता था। कुछ साल बीते, और आ गई 16 नवंबर की वह शाम... जब एक बार फिर से तुम्हारी आंखों में आंसू दिखे... पर इस बार वे आंसू मेरे लिए नहीं थे... तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर मैं तुम्हारे उस डर को समझ गया था।

तुम कहती थी ना कि कभी तुम्हारा नाम किसी को ना बताऊं... देखो इतने सालों तक मैं लोगों को गोल-गोल घुमाता रहा लेकिन कल यानी 16 नवंबर को एक बार फिर उसी शाम की बेरुखी में खो गया। छोटी बहन की मासूमियत ने मेरे बंद होठों को खुलने पर मजबूर कर ही दिया... उस शाम प्यार हारा था और कल प्यार से हार गया। बता दिया उसे तुम्हारा नाम लेकिन उसी वादे के साथ जो मैंने तुमसे किया था।

जब तुम इसे पढ़ रही होगी तो पता नहीं तुम्हें कैसा लगेगा... लेकिन मेरा विश्वास करो... जितना विश्वास तुम मुझ पर करती हो ना उतना ही मैं उस पर करता हूं... जैसे मैंने तुम्हारा विश्वास नहीं तोड़ा, वैसे ही वह भी मेरा विश्वास नहीं तोड़ेगी... पहली और शायद आखिरी इंसान है वो तुम्हारे नाम को जानने वाली....
#क्वीन

Wednesday, November 16, 2016

तुम्हारी बातें और मेरे स्वप्न

उन सूनसान राहों में बिना किसी परिभाषित रिश्ते के हम चलते रहते थे, हम अपने वे बातें एक-दूसरे को बताते थे जो हम किसी से नहीं कह पाते थे। उन बातों के दौरान मन में नए स्वप्न जन्म लेने लगे थे... कोई कमी, कोई बुराई नहीं थी तुममें... तुम्हारी हर एक अदा, तुम्हारी हर एक बात खूबी ही लगती थी... मैं जानता था कि मैं दिल में उसे बसा रहा हूं जो कभी मेरी जिंदगी में बस नहीं सकती। इस एक परिचित और शाश्वत डर के अलावा मेरे तब तक के जीवन में कोई डर नहीं था। 

रात के अंधेरे में अकेले बैठकर उस रिश्ते का नाम सोचता था जो हमारे बीच कभी बना ही नहीं था। उस अपरिभाषित रिश्ते को नाम देने की यात्रा में खो चुका था मैं... सच है कि तुम मेरी नहीं थी लेकिन इस सच के सहारे साथ बिताए गए पलों को स्वप्न मान लेना भी तो ठीक नहीं था। 

हमारी हर मुलाकात में होने वाली बातें हमारे एक होने का अहसास कराती थीं लेकिन जिस तरह से रेलगाड़ी के चलने के लिए दो पटरियों के बीच एक निश्चित दूरी का होना जरूरी होता है, उसी तरह से हमें हमारी जिन्दगी को नए आयाम देने के लिए एक दूरी बनाकर चलनी ही थी। अगर हम वह दूरी बनाकर न चलते तो हमारे सपने यथार्थ की पटरियों से उतर जाते.... तुम्हारे करीब आना गवारा नहीं था और बिछड़कर गुजारा भी नहीं था। हमारी मोहब्बत एक ऐसी मझधार में फंस चुकी थी जिसका कोई किनारा तक नहीं था। सब कुछ याद है मुझे... तुम्हारे साथ चलते वक्त पैरों में चुभे वे कांटे उन लम्हों को भूलने भी नहीं देते....

मैं जीतता तो मोहब्बत हार जाती

मैं टकटकी लगाए तुम्हारे दिल की गहराईयों से निकली वे बातें सुन रहा था। कभी तुम्हारी आंखे नम हो जाती थीं तो कभी उसी चेहरे पर मुस्कुराहट तैर जाती थी। तुम्हारी वे दिलकश बातें सुनकर बीच-बीच में मेरी भी आंखे नम हो जाती थीं। तुम जिस अन्दाज़ में अपना किस्सा सुना रही थी, वह मंजर मुझे देखा हुआ सा लगने लग रहा था। तुम तो सिर्फ मेरी कॉलेज फ्रेंड थी ना? फिर क्यूं मुझे वे सारी बातें सुनाती थी? क्यों अपने दर्द, अपनी खुशियों में मुझे शामिल करने की कोशिश करती थी? क्यों मेरे दर्द में मुझे सहारा देती थी, क्यों अपने दर्द में मेरे कंधे पर सिर रखकर रोती थी?

तुम्हारे इसी व्यवहार की वजह से रात-दिन, सुबह-शाम मैं बस तुम्हारे ही ख्याल में खोया रहता था। मैं हकीकत में क्या कर रहा हूं, इस सवाल का जवाब मैं खुद नहीं खोज पा रहा था। खाना खाने से लेकर पढ़ाई करने तक, मुझे कुछ ध्यान या याद नहीं रहता था। जो काम मुझे सबसे ज्यादा पसंद था, उसमें भी मन लगना बंद हो गया था। अपनी पसंद का खाना बोझ लगने लगा था। बस इतनी सी तमन्ना थी कि कॉलेज में किसी तरह तुम्हारी एक झलक दिख जाए। तुम्हारे गुलाबी होठों से अपने नाम को सुनने की तमन्ना रहती थी। 

पता नहीं कि तुम यह सब समझती भी थी या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि इन सबके बीच मैं खुद से एक लड़ाई लड़ने लगा था। अपने आप से अपने अस्तित्व की लड़ाई... एक ऐसी लड़ाई जिसे मैं जीतना नहीं चाहता था... क्योंकि अगर उस लड़ाई में मैं जीत जाता तो मेरी मोहब्बत हार जाती और मैं मेरी नजरों के सामने अपनी मोहब्बत को हारते हुए नहीं देख सकता था... और देखो, उस हार का परिणाम क्या हुआ... अपने अस्तित्व की लड़ाई को हारने के बावजूद मैंने तुम्हारा अस्तित्व 'गढ़' दिया.... एक ऐसा अस्तित्व जिसका कभी विनाश नहीं हो सकता... एक ऐसा अस्तित्व जिसमें लोग अपनी मोहब्बत का अश्क देखते हैं....

तुम्हारी अजमाइश का भ्रमर जाल

एक बाग में एक फूल पर एक भंवरा और एक तितली दोनों एक साथ बैठते थे। कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे से मोहब्बत करने लगे। वक्त के साथ उनकी मोहब्बत इतनी गहरी हो गई की अगर उनमें से एक को दूसरा दिखाई नहीं देता तो पहला बेचैन होने लगता था। एक दिन तितली ने भंवरे से कहा कि वह उ से जितना प्यार करती है, भंवरा उस से उतना प्यार नहीं करता। इस बात को लेकर दोनों में शर्त लग गयी कि जो ज्यादा प्यार करता है वह कल सुबह इस फूल पर पहले आकर बैठेगा। शाम को इस शर्त के साथ दोनों अपने अपने घर चले गए।

जबरदस्त ठण्ड होने के बावजूद भी अगले दिन सुबह जल्दी ही तितली फूल पर आकर बैठ गई। लेकिन भंवरा अभी तक नहीं आया था। तितली बहुत खुश थी क्योंकि वह शर्त जीत चुकी थी। कुछ देर बाद जैसे ही धूप से फूल खिला। तो तितली ने देखा कि भंवरा फूल के अन्दर मरा पड़ा है। (क्योंकि की वह शाम को घर गया ही नहीं था और रात को ठण्ड से मर गया)...

कुछ ऐसी ही कहानी हमारी भी थी। तुम मुझे अजमाती जा रही थी लेकिन तुम यह भूल गई कि मोहब्बत में अजमाने जैसा कुछ नहीं होता। तुम्हारी 'अजमाइश' के भ्रमर जाल में फंसा तो मैं था लेकिन हारी तुम थी... 

Monday, October 31, 2016

क्वीन ऑफ़ हिल्स की वह दिवाली

2 साल पहले... सुबह का 5 बजकर 30 मिनट...
'क्वीन ऑफ़ हिल्स' यानी मसूरी की पहली सुबह, जगमगाती पहाड़ियों के बीच रात भर घूमने के बाद की थकावट के बीच यशश्वी सूर्य की लालिमा के दर्शन से पूर्व तुम्हारे चेहरे की लालिमा याद आ गयी। काश! तुम मेरे सामने होती। बस यही उस दिन भी सोच रहा था। तुम हमेशा से मेरी अपेक्षाओं को पूरा करती रही हो। और उस दिन भी तुम मेरी कल्पनाओं के आकाश में मेरा ही हाथ थामकर उड़ने लगी।

यथार्थ और कल्पना, एक बारीक सा अंतर है इसमें। कहते हैं, अपनी कल्पनाओं को साकार करने का यदि संकल्प कर लिया तो विश्वास मानिए, आप यथार्थ में ही हैं। मेरे पास मेरी कल्पनाओं का खुला आकाश भी था, उन्हें साकार कर तुम्हारे साथ खुलकर आकाश में उड़ने का संकल्प भी था, लेकिन फिर भी मैं यथार्थ तक नहीं पहुंच पाया। पता नहीं क्यों?

लेकिन एक बात तो पता है मुझे... परमपिता परमेश्वर हमसे ज्यादा हमारी चिंता करता है, और तुमसे जुड़ा हर एक लम्हा आज मेरे इस विश्वास को और ज्यादा मजबूत कर देता है।
#क्वीन

Friday, October 28, 2016

तुम्हारी मोहब्बत की कैद में दिवाली

दिवाली से दो दिन पहले यानी धनतेरस के दिन तुम अपने मामा जी के घर चली गई थी। हमारी मोहब्बत का बीज जब वृक्ष रूप ले रहा था, उस दौर की हमारी पहली दिवाली थी। मैं चाहता था कि पूजा के बाद सबसे पहले मैं तुम्हारा चेहरा देखूं। लेकिन तुम नहीं मानी और चली गयी अपने मामा जी के घर।

हार और अहंकार, इन दो शब्दों का बेहद अटूट रिश्ता है। मुझे भी इस बात का अहंकार था कि मैं कभी हार नहीं सकता। आखिर अहंकार हो भी क्यों ना, कभी हार का स्वाद ही नहीं चखा था। बस तुम्हारी मोहब्बत और अपने अहंकार के मायाजाल में फंसकर अपनी बुआ जी के घर पहुँच गया। उनका घर, तुम्हारे मामा जी के घर से बस 2 किलोमीटर की दूरी पर था। पूजा के बाद तुम्हारे मामा जी के लैंडलाइन नंबर पर 17 बार अलग-अलग नाम से फोन किया, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं कराई। सबने यही कहा कि तुम घर के बाहर पटाखे जला रही हो।
मैं भी पागल, पहुँच गया तुम्हारे मामा जी के घर। सोचा था कि जिस वजह से घर से दूर आया हूँ, कम से कम वह तो मुकम्मल हो जाए। लेकिन.....

बस इसी 'लेकिन' पर तो सारी कहानियां चरित्रहीन हो जाती हैं...रात 11 बजे से 1:50 बजे तक तुम्हारे घर के बाहर खड़ा रहा, लेकिन तुम नहीं दिखी। उस दिन पहली बार मुझे मेरा विश्वास, 'अहंकार' लगा था और उसी दिन पहली बार दिवाली बिना पटाखों के मनाई थी। आज इतने सालों के बाद इस दीवाली को बिना पटाखों के मनाऊँगा। लेकिन इस बार तुम्हारे बारे में नहीं बल्कि उन परिवारों के बारे में सोच रहा हूं जिनके बेटे का शव कुछ दिन पहले तिरंगे में लिपट कर घर पहुंचा। इस साल एक दीप उनके लिए भी जलाऊंगा जो सीमा पर इसलिए खड़े रहते हैं ताकि 'तुम' दिवाली मना सको।
#इस_दीवाली_एक_दीप_भारतीय_सेना_के_नाम
#क्वीन

Tuesday, October 25, 2016

तब तुम मेरी ताकत थी और आज...

कुछ किस्से कागजों पर तो कुछ दिल में आबाद हैं। तुम्हारी आंखों ने पता नहीं कितने धोखे दिए। लोग कहते थे कि आंखें हमेशा सच बोलती हैं, आंखों में हर सच दिखाई देता है लेकिन मेरे साथ तो हर बार तुम्हारी आंखों ने ही फरेब किया, हर बार उन आंखों पर भरोसा करके लुटता ही रहा।

पता है, अगर आप किसी को धोखा देने में कामयाब हो जाते हैं तो इस बात से उसकी बेवकूफी का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए उस इंसान को आपसे मोहब्बत कितनी थी कि आपकी हर एक बात पर अंधविश्वास करता गया। मैं इसलिए हर बार हारता गया क्योंकि मेरी हार की वजह से तुम्हें जीत मिल रही थी और तुम्हारी जीत से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं था।

जब पता लगा कि मेरे दर्द पर तुम मुस्कुराती हो तो ईश्वर से दुआओं में दर्द ही मांगने लगा। और वैसे भी प्रकृति का नियम है कि जो जैसा करता है, उसे उसके अनुरूप ही परिणाम मिलता है। क्या हुआ जो तुम किसी और के लिए मुझे छोड़ कर चली गई। मैंने भी तो तुम्हारे लिए सबको छोड़ दिया था...बुजदिल नहीं था मैं, परिणाम जानता था... देखो, हौसलों ने साथ और आज भी खड़ा हूं, उतनी ही मजबूती से, उससे बेहतर स्थिति में... बस तब तुम ताकत बनकर मेरे साथ खड़ी थी और आज तुम्हारे साथ बिताए गए लम्हें मेरी ताकत बन चुके हैं...
#क्वीन

मेरे वजूद में जिंदा हो तुम

मुझे नहीं पता कि आज तुम कहां और कैसी हो...ना ही मैंने कभी इस बारे में पता करने की कोशिश की और ना ही पता करने की जरूरत समझी... तुम्हें पाने की कभी तमन्ना ही नहीं रही, तुम हो, बस इतना ही काफी है। क्या गलती थी तुम्हारी या मेरी जो आज हमें एक-दूसरे का पता नहीं...सच कहूं, तो वह कोई गलती नहीं थी, वह तो जरूरत थी समय की... मुझे अब उस बात का, उस दिन का बिलकुल अफसोस नहीं...

इस दुनिया में अगर कोई और किसी तरह का गुनाह करता है तो शोर मचने लगता है लेकिन जब अपना गुनाह होता है तो चुप्पी छा जाती है... पता है हममें खास बात क्या है... हम दोनों में से किसी ने एक-दूसरे को अलग होने को जिम्मेदार नहीं ठहराया। यह हमने उस दौर में किया जब 'जरूरत' रिश्तों की बुनियाद में इस कदर बैठ चुकी है कि रिश्तों की मर्यादा शून्य हो गई है। ठंड में लोग जिस सूर्य के लिए तरसते हैं, उसके बाहर आने की दुआएं करते हैं और गर्मी में उसे ही गाली देते हैं, उसी तरह से आज के रिश्ते हो गए हैं।

बस इतनी सी तमन्ना है कि कभी जिन्दगी के किसी मोड़ पर अगर हम दोनों एक-दूसरे से टकराएं तो हमें नजरें झुकाकर बात ना करनी पड़े। मैं अपने रिश्ते के अवाचित शाश्वत सत्य को हर दिन एक नया मुकाम देने की कोशिश करता रहा। हमें पता होता है कि हमारी बनाई रंगोली अगले ही दिन मिट जाएगी, फिर भी हम उसे सर्वाधिक मनमोहक, आकर्षक और कलात्मक रूप देने का प्रयास करते रहते हैं। उसी रंगोली की तरह ही मैं जानता था कि हमारे रिश्ते का कोई वजूद नहीं, कोई भविष्य नहीं लेकिन फिर भी उसे एक खूबसूरत मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया... और देखो आज लोग तुम्हें एक नए नाम से खोज रहे हैं... और तुम मेरी पहचान बनकर मेरे वजूद में जिंदा हो...
#क्वीन

Wednesday, October 5, 2016

कुछ सवाल

उस दिन तुम्हारी मौसी ने जब मुझसे उस इंसान के बारे में पूछा था, जिससे मैं मोहब्बत करता हूं तो बचपन और प्यार की भावनाओं में बहकर उन्हें तुम्हारा नाम छोड़कर सब कुछ बता दिया था। बहुत हंसी थी तुम्हारी मौसी उस दिन... और तुम वहीं सामने बैठकर ऐसा व्यवहार कर रही थी जैसे बिलकुल अनजान हो तुम... जब कमरे से निकलकर पर्दे के पीछे तुमसे नजरें मिली तो बस तुमने इतना ही कहा कि तुमसे जब कोई तुम्हारे प्यार के बारे में पूछता है तो तुम उसे मेरे बारे में क्यों बताते हो? कोई जवाब नहीं दे पाया था मैं तुम्हारी इस बात का, और देता भी कैसे? मेरे पास इस बात का कोई जवाब था ही नहीं....

पता नहीं उसदिन कैसा लगा होगा तुम्हें जब तुम्हारी उन्हीं मौसी के लड़के ने तुमसे कहा, 'दीदी, एक गौरव भइया हैं, उनकी कोई क्वीन है, बहुत प्यार करते हैं। देखो ना, कितना प्यारा लिखते हैं लेकिन लगता है उनकी क्वीन को उनकी परवाह ही नहीं।' तुम्हारी दोस्त ने बताया कि तुम बिना कुछ बोले चुपचाप वहां से चली गई थी। आखिर कहती भी क्या? अपने भाई को क्या बताती कि 9 साल पहले क्या हुआ था?

हजारों लोग पढ़ते हैं तुम्हें... मेसेज करते हैं मुझे और पूछते हैं तुम्हारे बारे में... लेकिन पता है, मैं बस यही सोचता रहता हूं कि तुम मुझे पढ़ती होगी या नहीं... तुम कभी मेरी टाइमलाइन पर आकर उन बीते लम्हों में खुद को फिर से खोजने की कोशिश करती होगी या नहीं... तुम अपने नए 'दोस्त' के साथ क्या कभी उन पलों को आज से बेहतर पाती होगी? बस इन्हीं सवालों के साथ कीबोर्ड पर उंगलियां चलाता रहता हूं... सवालों के जवाब पाने की उम्मीद में....
#क्वीन

उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा....

उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा। तुम मेरे ठीक सामने उसी स्टेलर आईटी पार्क में बैठी थी। तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम अपने उस 'एक्सको बहुत मिस कर रही थी। मैंने तुम्हारी जिंदगी के उस खास दिन को 'बेहद खासबनाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन तुम्हारी रूह से निकलकर चेहरे तक आ रहे दर्द को रोकने में नाकाम रहा। केक का वह पांचवा टुकड़ा जो तुमने अपने हाथों से मेरे मुंह में डाला था उसके स्वाद को लेने का मौका ही नहीं मिला। तुम्हारी आंखों के उस दर्द को महसूस करने की कोशिश में लगा हुआ था मैं लेकिन वह कोशिश कामयाबी के मुकाम तक नहीं पहुंच सकी।

आज... आंख बंद करते ही तुम्हारा चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता हैबेहद कमाल होता है वह अहसास... पता नहीं कौन सी दौलत थी तुम्हारी उन आंखों मेंनजर मिलते ही ऐसा लगता है जैसे तुमने मेरी सारी जिंदगी खरीद ली हो। उन आंखों में सूर्य जैसी ओजस्विता थी... जब मेरी पलकें नीचे झुकती थीं तो लगता था जैसे सूर्यसमंदर में डूब रहा हो... ऐसा लगता था जैसे वह समंदर सूर्य की तपन को झेल नहीं पाएगाऐसा लगता था कि अब या तो समंदर सूख जाएगा या सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा...

पता है तुम्हें... मैं अपनी जिंदगी को गुजारना नहीं चाहता था... मैं जीना चाहता था... तुम्हारे साथ... मुझे पता था कि यह सब मुश्किल होगा लेकिन कभी-कभी बारिश आने पर छाता हटाकर भीगना ज्यादा अच्छा लगता है...
#क्वीन

हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....

हर बात दिल के रास्ते जुबां पर आ ही जाए, ऐसा जरूरी तो नहीं। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि कोई खास बात दिल से निकलकर आंखों के रास्ते आपके सामने आ जाए। हां, मैं तुमसे नहीं कह पा रहा था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और यही तो तुम भी कर रही थी। तुम्हारी गलियों के रास्ते तो याद रहते थे लेकिन ठिकाना याद नहीं रहता था। गलती तो थी, मैं हर दिन, हर शाम तुम्हारी गलियों में क्यों जाता था, हर रोज क्यों अपनी क्लास खत्म होने के बाद भी 2 घंटे रुक कर तुम्हारा इंतजार करता था, क्यों मैं तुम्हारे पीछे अपनी साइकल से तुम्हारे घर तक जाता था? गलती यह नहीं थी कि मैं यह सब करता था बल्कि गलती यह थी कि मैं यह सब करते जता नहीं पाता था। बिलकुल पागल था मैं, तुम्हारे चेहरे की उस मासूमियत को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था, भूल गया था कि उस मासूमियत के पीछे भी एक राज था। एक ऐसा राज जिसका सच तुम भी नहीं जानती थी।

तुमसे मेरी नजदीकियां इस कदर बढ़ गई थीं कि रात के ख्वाबों में भी तुम्हें अपने पास ही महसूस करता था। और जब सुबह आंखें खुलती थीं तो पता लगता था कि तुम तो हो ही नहीं। क्या वे इशारे थे कि तुम सच में मेरी जिन्दगी से उसी ख्वाब की तरह जाने वाली हो। शायद हां, और शायद नहीं भी... हां इसलिए क्योंकि तुम उसी ख्वाब की तरह मेरी जिंदगी से चली गई और नहीं इसलिए क्योंकि मेरा 'चुनाव' गलत नहीं हो सकता।

पता है, मैं बस इतना चाहता था कि हम दोनों के सामंजस्य का स्तर वहां तक पहुंचे कि एक-दूसरे की सासों में हम एक-दूसरे ने नाम की प्रतिध्वनि को सुन सकें। एक-दूसरे पर विश्वास की पराकाष्ठा कल्पनाओं की सीमाओं को भी पार करके एक नई ऊंचाई पर पहुंच सके। ऐसा प्रेम हो कि एक-दूसरे के सामने चुपचाप बैठकर भी मन के भावों की अनुभूति कर सकें। हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....
#क्वीन

मेरा गुरूर

बहुत गुरूर था मुझे कि मेरी मोहब्बत जिस्म से नहीं बल्कि रूह से है लेकिन जब मोहब्बत अंबर तक जा पहुंची तो अहसास हुआ कि रूह से की गई मोहब्बत तो सिर्फ दर्द देती है। मैंने जो मोहब्बत की थी, उसकी सच्चाई की गवाही सिर्फ दो लोग ही दे सकते थे। एक तो वक्त और दूसरी तुम। वक्त का चरित्र तो गुजरना होता ही है लेकिन तुम्हारा चरित्र तो मुकरना नहीं था। तुम मुकर गई तो ऐसा लगा लगा कि जैसे तुम 'इच्छा' यानी ख्वाहिश की तरह थी। जो पूरी होने के बाद तुरंत बदल जाती है।

काश! तुम मेरे बंजर जिस्म पर शबनम की तरह पिघलती जाती और मैं प्यासी धरती की तरह समर्पण लिए तुममें खोता जाता। तुम्हारे नाम से मोहब्बत थी, तुम्हारे अहसास से मोहब्बत थी, तुम जिन लम्हों में मुझे अपना कहकर मुझ पर अपना अधिकार जताती थी उन लम्हों से मोहब्बत की थी, तुमसे मिलना तो महज एक ख्वाब हुआ करता था। 

तुमसे मिलने के लिए जिस शिद्दत से इंतजार करता था, सही मायनों में मैं उसी शिद्दत से तो मोहब्बत करता था। उस मोहब्बत में ना तो कोई हद थी और ना ही लालच... वहां था तो सिर्फ प्रेम शाश्वत प्रेम... वह प्रेम जिसके एक छोर पर मेरे राम थे तो दूसरे छोर पर तुम्हारे अल्लाह...
#क्वीन

मेरी निर्माता हो तुम

पता है, एक मॉल में स्थित कपड़ों के शोरूम में एक ड्रेस 3 महीनों से शो पीस के तौर पर लगी हुई थी। उसे कोई नहीं खरीदता था। शोरूम के मालिक ने सोचा कि अगले दिन उस ड्रेस को अंदर रख देगा। उसी दिन एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री शूटिंग के लिए मॉल में आई। उसकी नजर उस ड्रेस पर पड़ी, उसने तुरंत उस ड्रेस को खरीद लिया। 3 दिन बाद एक राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका के लिए उसने उसी ड्रेस में फोटोशूट कराया। इसका प्रभाव यह हुआ कि रातों-रात उस शोरूम के मालिक के पास उस तरह की ड्रेस के लिए हजारों की संख्या में ऑर्डर आ गए।

तुम्हें पता है, हमारी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जब तक मैंने तुम्हें नहीं देखा था तब तक सब कुछ सामान्य था। जब तक तुम मुझे पसंद नहीं आई थी तब तक सब कुछ सामान्य था, जब तक मैंने तुम्हें अपनी आराधना नहीं बनाया था तब तक सब कुछ सामान्य था लेकिन जैसे ही मैंने तुम्हें लिखना शुरू किया तब से हजारों की संख्या में तुम्हें खोजने लगे। वे जानना चाहते हैं कि मेरी 'क्वीन' कौन है? कौन है जिसने मुझे बनाया? कौन है जिससे मुझ जैसा लड़का मोहब्बत कर बैठा? 

सुनो, मैं मानता हूं कि मुझे बनाने में तुम्हारा अहम योगदान है। अगर मैं तुम्हें अपना निर्माता कहूं तो गलत नहीं होगा। लेकिन कभी इस बात का अहंकार मत करना क्योंकि इस सच के साथ एक और सच भी जुड़ा है और वह सच यह है कि तुमको भी मैं ही बना रहा है। मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारा निर्माण करूं यह वांछित नहीं है लेकिन अपने स्वाभिमान संरक्षण के लिए मेरे लिए ऐसा करने की अनिवार्यता है।
#क्वीन

समय की रफ्तार

समय किस रफ्तार से अपनी चाल बदल देता है, इस बात का अंदाजा लगाना हमारी कल्पना से भी परे होता है। पता है, तब एक समय था जब किसी के साथ भी बैठो तो बस तुम्हारी ही बातें हुआ करती थीं और एक समय अब है, कि अगर कोई तुम्हारा नाम भी ले ले तो बात बदलनी पड़ जाती है। आखिर बात न बदलूं तो और करूं भी क्या? तुम्हारे साथ बिताए गए उन पलों को याद करके आंखों में आए आंसुओं को किसी के भी सामने रोकने की क्षमता नहीं है मुझमें। 

मैं कभी तुमसे नाराज नहीं होता था, क्योंकि नाराज तो वे होते हैं जिनको इस बात का गुरूर होता है कि कोई है जो उन्हें मनाने आएगा। लेकिन मैं इस तरह की किसी भी गलतफहमी के आगोश में नहीं था। तुमने मुझे सत्य से कभी विमुख नहीं होने दिया। तुम्हारी जरूरत, फिर इंतजार की उम्मीद और उम्मीद टूटने के बाद होने वाले अकेलेपन के अहसास को किस तरह से महसूस करता था मैं, तुम कभी नहीं समझ सकती। 

 तुम इतने दिनों से मेरे पास ही रहती हो लेकिन मैं तुम्हें एक बार देखने तक नहीं आया? यही सोचती हो ना तुम? पता है, इंतजार करते-करते इतना थक गया था कि तुम्हें अपने दिल से निकाल दिया। और जब कोई दिल से निकल जाता है तो उसे देखना तो दूर उसके बारे में बात करने का भी दिल नहीं करता।
#क्वीन

Friday, September 2, 2016

मेरे स्वप्नलोक की वास्तविकता

तुम बस मेरे स्वप्नों में ही मेरी थी। यह बात समझने में मुझे 3 साल लग गए।  क्या करता, तुम्हारे हर एक झूठ को सच मानकर उसी में जिए जा रहा था।

तुमको पता है मेरी ज़िन्दगी के हर एक हिस्से में , हर एक किस्से में बस तुम्हारी ही कल्पना तो बसती थी। लेकिन तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मैं तो तुम्हारे लिए बस एक 'विकल्प' था। क्या करता मैं? क्या कर सकता था मैं?

अंत में तुम मजहबी बहाने बनाने लगी और मैं अपनी कल्पनाओं के समंदर में डूबने लगा। कल्पनाओं की अट्टालिका बनाने में मुझे कुछ वक़्त तो जरूर लगा लेकिन खुश हूँ कि उस अट्टालिका की नींव से लेकर अंतिम छोर तक तुम सिर्फ मेरी ही हो...

#क्वीन

उस दिन टूट गया था भ्रम

तुम्हारे साथ एक-एक पल बिताने का अहसास बेहद खास होता था। पहले तो ऐसा लगता था जैसे तुम भी मेरे साथ बिताए हर एक पल को दिल से जी लेना चाहती हो लेकिन बाद में महसूस हुआ कि यह मात्र मेरा भ्रम है। तुम्हारे प्रेम और समर्पण पर प्रश्नचिन्ह लगाने की क्षमता तो मुझमें नहीं है लेकिन ऐसा प्रारब्ध अवांछित था।

जीवन की सबसे आसान लड़ाई हार गया था मैं... और जानती हो दुःख यह नहीं है कि मैं वह लड़ाई हार गया बल्कि दुःख इस बात का है कि मैंने उस लड़ाई को लड़ा ही नहीं।तुमने अगर उस लड़ाई से पहले मेरा हाथ न छोड़ा होता तो मैं उस लड़ाई को लड़ जाता। और विश्वास मानो मैं वह लड़ाई जीत भी जाता। लेकिन जानता था बिना तुम्हारे उस जीत के मायने कुछ भी नहीं।

जब जंग अपनों से हो तो पीछे हट जाने में ही भलाई होती है और जब लड़ाई अपने आप से हो तो अपने अहंकार को कुचलकर विजय प्राप्त करने वाला ही तो पुरुषार्थी कहलाता है। तुम्हें हारकर खुद को जीत लिया था मैंने... लेकिन काश कि मैं तुमको भी जीत पाता... हमारी कहानी में इस काश की उपस्थिति कितनी अनिवार्य लगती है ना?
#क्वीन

सिर्फ 5 कदम की दूरी पर थी तुम

कभी कभी कुछ ऐसा ही जाता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती। अपने शहर से हजारों किलोमीटर दूर, समंदर के किनारे बने उस होटल से मंदिर से आने के बाद हम सब घूमने के लिए निकले। समंदर के किनारे जब मैं तुम्हारी मोहब्बत के स्वप्न में कैद था तब तुम अपने भाई के साथ मुझसे 5 कदम की दूरी पर बैठी थी। क्या तुम कल्पना कर सकती हो कि मैं उस समय कैसा महसूस कर रहा होऊंगा। जिस इंसान को मैं अपने स्वप्नों में भी कभी इतने पास नहीं ला पाया था, वह मेरे सामने था। तुम तो शायद मुझे जानती भी नहीं थी।

तुम्हारी एक-एक हरकत को देखते -देखते कब 3 घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। और फिर जब तुम वहां से निकली तो मैं भी अपने भाई-बहन को जबरदस्ती वहां से चलने को कहने लगा। जिस होटल में मैं रुका था, तुम भी उसी के बाहर जाकर रुक गई, तुमने भी अपना डेरा वहीँ डाला था। और फिर अगले दिन तुम्हें 'नंदन-कानन' में देखा। फिर उसी शाम बीच पर....क्या कहता इसे? प्यार? नहीं...यह प्यार नहीं था... फिर क्या था?  ईश्वर की योजना... और कुछ नहीं कह सकते इसे....


उस दिन के 2 साल के बाद उसी बीच पर एक-दूसरे का हाथ थामकर समंदर के जल की निर्मलता और अपने प्रेम की पावनता के मधुर मिलन को महसूस करने के स्वप्न की अट्टालिका का ही तो निर्माण किया था हमने। पर एक सच यह भी है कि स्वप्नों की अट्टालिकाओं को ढहने में समय नहीं लगता....
#क्वीन

Sunday, August 21, 2016

'अपनी' कैद में था मैं

मेरी तमन्ना एक ऐसे सफर की थी जिसमें तुम्हारा साथ हो और इस तमन्ना का सबसे खूबसूरत हिस्सा यह था कि मैं मंजिल भी तुम्हें ही मानता था। लेकिन स्वप्नलोक की इस तमन्ना का यथार्थ से कोई लकेना देना नहीं होता... काश यह बात मैं पहले ही समझ पाता। तो क्या हुआ कि हमारी पूजा पद्धति अलग थी, मैं जानता हूं कि तुम बिलकुल मेरे जैसी थी। तुम्हें पता था कि कोई काफिर किसी मस्जिद में नहीं जा सकता तो फिर तुम ही मेरे साथ मंदिर चली जाया करती थी....

तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता था, लेकिन फिर भी तुम्हें 'आज़ाद' करना पड़ा.... काश! तुम मोहब्बत की इंतहा को समझ पाती….काश! तुम कभी समझ पाती कि मोहब्बत इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वह मेरी आराधना बन गई है.. काश! तुम कभी समझ पाती कि जिससे प्रेम हो जाता है उसे अपनी सांसों तक में भी महसूस किया जाने लगता है... लेकिन फिर सोचता हूं कि आजादी तो हर एक का अधिकार है... बस उसी 'अधिकार' के लिए खुद को, खुद की कैद से आज़ाद कर दिया...

Tuesday, August 16, 2016

बहुत पसंद थी ना तुमको...

उस दिन तक मैं अपने दिल की बात तुमसे इसलिए नहीं कह पाया क्योंकि मुझे डर था कि कहीं तुम मुझे गलत न समझ लो। तुम पहली और आखिरी इंसान थी जिसके साथ अपने पूरे जीवन को व्यतीत करने का स्वप्न मैंने देखा था। तुम मेरे सामने आती थी तो ऐसा लगता था मानो किसी निपुण और पारंगत मूर्तिकार ने खुद अपने हाथों से किसी संगमरमर को तराश कर जीवित मूर्ति का निर्माण किया हो। तुमसे मिलने से पहले मेरे जीवन में कुछ खोखलापन सा था, एक अजीब सा खालीपन था, जिसे उसदिन तक मेरे अलावा किसी ने महसूस नहीं किया था। और जब तुमसे मुलाकात हुई तो सब बदल गया। तुम्हारे ख्यालों ने ही मेरी जिंदगी के खालीपन को भर दिया।

अपनी जुबान पर तो नियंत्रण रख सकता था लेकिन आंखों पर कैसे रखता? जिस एक चेहरे को देखने के लिए घंटों इंतजार करता था, उसके सामने आने के बाद कैसे अपनी आंखों को चुराता...तुम्हें पता लग ही गया कि मेरे दिल में क्या था...हमने एक-दूसरे से बात करने के लिए उस 'नॉवेल' का सहारा लिया... तुम जानती हो ना कि मुझे प्रेम कहानियां पढ़ने में कोई रुचि नहीं... लेकिन तुम्हें थी और इसीलिए मुझे इसका सहारा लेना पड़ा... तुम्हें दूसरों के द्वारा अंग्रेजी में लिखी गईं 'मनगढ़ंत' प्रेम कहानियां बहुत पसंद थीं ना...और देखो आज तुम्हारी 'सच्ची' प्रेम कहानी को सब पढ़ रहे हैं...सब पसंद कर रहे हैं...खास बात यह है कि इसे पढ़ने के बाद अब लोग यह कहने की स्थिति में नहीं है कि 'प्रेम कहानियां' सिर्फ आईआईटी या आईआईएम वाले ही लिख सकते हैं...
#क्वीन

Monday, August 15, 2016

लव नहीं, प्रेम लिखता हूं...

तुमसे मेरी बात नहीं होती थी क्योंकि मेरे पास तुमसे बात करने का कोई बहाना ही नहीं था। फिर उस दिन तुम्हारे हाथ में वह अंग्रेजी 'नॉवल' देखी। मुझे तब तक नहीं पता था कि अंग्रेजी में लिखी गईं प्रेम कहानियां कैसी होती हैं। बहुत हिम्मत करके तुमसे पहली बार बात की और कहा, 'प्लीज मुझे यह नॉवल दे दो, मैंने इसके बारे में बहुत सुना है लेकिन कहीं मिली नहीं।' मुझे तो यह भी नहीं पता था कि उस नॉवल को लिखा किसने है और तुम्हें एक सच और बताऊं मुझे आज भी नहीं पता कि वह नॉवल किसने लिखी थी। तुमने 2 दिन बाद मुझे उस नॉवल को देने का वादा किया और चली गई।

उस नॉवेल के शुरुआती 4 पेज पढ़ने के बाद मैं उसे आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि उसमें प्रेम जैसा तो कुछ था ही नहीं। मैंने को श्रीराम और श्रीकृष्ण को पढ़ा था। मैंने तो यह पढ़ा था कि प्रेम ईश्वर का रूप होता है और इसी कारण जब मिथिला के बगीचे में श्रीराम और मां सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा तो उनके मन में प्रेम प्रकट हुआ। अब प्रकट तो ईश्वर ही हो सकते हैं ना। लेकिन जब उस नॉवल में पढ़ा कि नायक 'fall in love with' नायिका, तो समझ में नहीं आया कि आखिर ये 'लव' में गिरा क्यों? धीरे-धीरे जब अंग्रेजी लव का प्रत्यक्ष रूप देखा, जो फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर देखकर शुरू होता था और चंद महीनों में बिस्तर तक आकर खत्म हो जाता था तो समझ में आया कि गिरी हुई हरकतों वाला 'लव' हमारे ईश्वरीय 'प्रेम' के सामने कहीं नहीं टिकता...

बस तभी से तय किया कि 'लव' नहीं प्रेम लिखूंगा... वह प्रेम जो मां गंगा के जल की भांति शाश्वत, निर्मल, निच्छल, पावन एवं पवित्र होता है। शारीरिक सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है...
#क्वीन

तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती

हां, उस दिन भी 15 अगस्त ही था जब तुम उस मंदिर के बाहर स्कूल तक साथ चलने के लिए मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे तुम्हारे पास देरी से पहुंचना बहुत बुरा लगता था लेकिन क्या करता, सड़क पर चलने वाली बड़ी गाड़ियों ने मेरी छोटी सी बाइक को 'फंसा' लिया था। तुम चाहती थी कि कम से कम हम साथ चलकर कुछ पल एक साथ बिताएं लेकिन हमें उन पलों में छोटी सी कटौती करनी पड़ी। मैंने मंदिर के बाहर अपनी बाइक खड़ी की और फिर हम पैदल स्कूल की ओर जाने लगे। कई महीनों के बाद तुम्हारे साथ अकेले 10 मिनट बिताने का समय मिला था। उन 10 मिनटों में आजादी के उस दिन को बेहद खास तरीके से मनाया था हमने। ख्वाब बनाया था तुमने मुझे और मैं तुम्हारा साया बनने की कोशिश में था।

पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन

Saturday, August 13, 2016

जिंदगी की कुछ मजबूरियां...

लोग कहते हैं कि "मुश्किल वक्त" दुनिया का सबसे बड़ा जादूगर होता है जो एक पल में आपके चाहने वालों के चेहरे से नकाब हटा देता है लेकिन तुम्हारे चेहरे से तो नकाब तब हटा जब मैं अपने मुश्किल दौर से बाहर निकल चुका था। मतलबी दुनिया में भी तुम मेरी बातों के मतलब को नहीं समझ पाई। तुम समझने की कोशिश करती भी कैसे आखिर तुम्हारी अपनी जिंदगी थी, तुम्हारे अपने सपने थे... तुम अपने सपनों को तोड़कर मेरी हमसफर कैसे बनती... तुम्हारे बदल जाने का मुझे कोई दुख नहीं लेकिन एक बार सोचकर देखो कि जिनके लिए तुम्हारी पहचान मैं था, उनसे नजरें कैसे मिलाऊं...

क्या उनसे यह कह दूं कि जिसके लिए मैं रोता हूं, वह किसी और को खुश रखने में व्यस्त है...खैर मैं बस इस बात से खुद को तसल्ली दे देता हूं कि "जिंदगी में कुछ मजबूरियां" मोहब्बत से ज्यादा ताकतवर होती हैं जिनकी वजह से ना चाहते हुए भी साथ छोड़ना ही पड़ता है। हम अपने रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रहे थे और फिर वक़्त ने अपनी चाल चली और हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया। अगर कभी मौका मिला तो कुछ पल उन दिनों का ज़िक्र करेंगे, जब तुम मेरे और मैं तुम्हारा हुआ करता था....
#क्वीन

मेरी कामना

मैं जानता हूं कि तुम बहुत ऊपर जाना चाहती हो, तुम्हारे सपने बहुत बड़े हैं लेकिन ऐसी बुलंदियां भी किस काम की जहां तुम तो ऊपर पहुंच जाओ लेकिन मोहब्बत नीचे उतर जाए। तुम्हारे उस 'प्रतिबिम्ब' से मोहब्बत हुई थी मुझे, काश! वह वास्तविक होता। इस 'काश' से कुछ ख्वाब जुड़े थे जो यकीं से परे और हकीकत से कोसों दूर थे। पत्थर से भी कठोर और पानी से भी कोमल उन ख्वाबों से जुड़े किस्से आज मशहूर होते जा रहे हैं लेकिन वह 'काश' एक सुनहरी शाम की तरह ढ़लता जा रहा है।  जिंदगी ने मुझे दुखी होने का सिर्फ एक कारण दिया और वह था तुमसे दूरी लेकिन इसके साथ ही तुमने मुझे मुस्कुराने के जो हजारों कारण दिए थे क्या उनका कोई मोल नहीं था? देखो, आज मैंने जिन्दगी के उस कारण को हरा दिया। और ये मैंने अकेले नहीं किया बल्कि तुमने मेरा पूरा साथ दिया। आखिर तुम थी ही इतनी खास, तुम्हारी वो नाराजगी जो चंद पलों में प्यार को दोगुना कर देती है, तुम्हारी तो मुस्कुराहट जो मेरे हर दुख को भूल जाने पर मजबूर कर देती थी। तुमसे जुड़ी हर एक चीज जिसे हर रात मैं घंटो निहारा करता था।

तुम मेरे पास होकर मुझसे क्या चाहती थी, यह मुझे नहीं पता लेकिन मैं बस तुम्हारे साथ बिताए गए हर एक पल हो एक सुनहरे सपने की तरह जीना चाहता था... एक ऐसा सपना जिसका कभी अंत न हो, जो कभी न टूटे लेकिन सत्य यह है कि मेरी यह कामना अवैज्ञानिक भी थी और अर्थहीन भी...
#क्वीन

और बेहतर की उम्मीद में...

एक बार दो दोस्त एक बगीचे में गए, वहां के माली ने दोनों से कहा कि जाओ और इस बगीचे से सबसे खुशबूदार और सुन्दर फूल खोजकर लाओ लेकिन शर्त यह है कि जिस फूल को तुम एक बार नकार चुके हो उसे दुबारा नहीं छू सकते और फूल लेकर आने की अनिवार्यता है। दोनों दोस्तों में से एक ने बगीचे के अंदर घुसते ही एक सुन्दर सा फूल चुना और वापस आ गया। दूसरे लड़के ने कई फूल चेक किए लेकिन 'आगे और भी बेहतर मिलेंगे' की उम्मीद के साथ आगे बढ़ता गया। 2 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद वह एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच गया और आखिरी फूल जो कुछ खास नहीं था, उसे लेकर पछताते हुए वापस आ गया।

ऐसा ही कुछ हमारी जिंदगी में भी होता है। कभी-कभी हम और ज्यादा बेहतर पाने की तमन्ना में बेहतरीन को भी खो देते हैं। अब तुम खुद तय कर लो कि तुम किस रास्ते पर हो। रही बात मेरी तो मैंने जो फूल चुना था, उसमें तो कोई कमी नहीं थी लेकिन मैं भूल गया कि कुछ फूल डालियों पर ही अच्छे लगते हैं। खैर, उस फूल के साथ बिताया गया कुछ समय मेरे लिए बेहद खास था और अब मैं किसी फूल को डाली से तोड़कर उसकी 'हत्या' का पाप अपने सर लेने की स्थिति में भी नहीं हूं...
#क्वीन

हो सकता है तुमको यह गलत लगे...


आखिर क्यों लिखता हूं तुम्हें, क्या इसलिए कि लोग कहें कि अरे देखो, गौरव की मोहब्बत तो लाजवाब है? या फिर इसलिए कि लोग मेरे दर्द पर वाह-वाह करें। नहीं! इनमें से कोई कारण नहीं है। फिर सच क्या है? शायद मुश्किल हो तुम्हारे लिए लेकिन सच यह है कि मैंने अपनी मां को बचाने के लिए अपनी भावनाओं का बाजार लगा दिया। और अपनी मां के लिए ही तुम्हें भी अपने सपने में शामिल कर लिया। शायद तुम्हें ये गलत या बुरा लगे लेकिन यही सच है।

क्या सच्ची मोहब्बत के पैमाने किसी भाषा पर आधारित होते हैं। क्या मोहब्बत 'Never Love a Stranger' जैसी चीजें लिखने से ही सच्ची मानी जाएगी। नहीं, मोहब्बत की असली भाषा तो हिंदी है क्योंकि इसमें रिश्ते हैं, रिश्तों में मर्यादा है, मर्यादा में विश्वास है, विश्वास में प्रेम है और प्रेम में संमृद्धता है। अब अगर दुनिया यह मानती है कि मैं गलत कह रहा हूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर मेरे भाई बहन ही इसे गलत मान लेंगे तो मेरी जिम्मेदारी है कि मां के अस्तिव को बचाने के लिए, मां की वास्तविकता से उनका परिचय कराने के लिए इन विषयों को प्रमाणित करूं। बस मैं अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं.... और इसीलिए मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा जब उस लड़के ने कहा कि वह मेरी फेसबुक पोस्ट्स का अंग्रेजी में अनुवाद करेगा।
#क्वीन

Friday, August 12, 2016

क्या मुझे इस बात पर खुश होना चाहिए?

पता है, आज मेट्रो में एक लड़का मिला। मुझे घूरने की अवस्था में पहले तो वह 10-15 मिनट खड़ा रहै और फिर अचानक मेरे पास आकर बोला कि सर, आप विश्व गौरव हैं ना? मैंने भी 'हां' में जवाब देते हुए पूछ लिया कि लेकिन भाई, कैसे जानते हो मुझे? उसने कहा कि सर, मैं आपसे फेसबुक पर और अपनी #क्वीन के बारे में फेसबुक पर जो भी लिखते हैं, उसका अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके एक संकलन जैसा कुछ तैयार कर रहा हूं। तब मुझे ध्यान में आया कि फैजल सलीम नामक उस लड़के ने ही शायद मुझे पिछले महीने मेसेज करके कहा था कि मैं अपनी #क्वीन से जुड़ी फेसबुक पोस्ट्स की एक किताब छपवाऊं।

उसने तुम्हारी तारीफ में और भी बहुत कुछ कहा। मुझे अच्छा लगा कि कम से कम मेरी कलम में इतनी ताकत तो है कि तुमको भी लोग 'पसंद' करने लगे हैं। उसके मुताबिक तुम दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की हो क्यों कि जो इंसान तुम्हें प्यार करता है, उस इंसान के प्रेम पर वे लोग भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा पा रहे जो उसे जानते तक नहीं। वैसे मुझे भी इस बात का गुरुर है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत कीमती चीज है प्यार मेरे लिए और इसी कारण मैं भी यही मानता हूं कि तुम वाकई में खुशनसीब हो कि मैं तुम्हें चाहता हूं। ये मेरा अहंकार नहीं बल्कि मेरे प्रेम की पवित्रता पर विश्वास है।

लेकिन एक बात बताओ तो जरा कि क्या तुमसे जुड़ी पोस्ट का अनुवाद करने वाली बात को लेकर मुझे खुश होना चाहिए? क्या मुझे गर्व होना चाहिए कि मेरी कलम से जो लिखा गया उसका ट्रांसलेशन करके लोग उसे छपवाने की बात कर रहे हैं? मैं क्या सोचता हूं, वह कल बताउंगा लेकिन तुमसे जानने की इच्छा जरूर है।

Thursday, August 11, 2016

हमारे रिश्ते की परिभाषा

वक्त ने हमारे रिश्ते की परिभाषा ही बदल दी..पहले दोस्ती , फिर प्यार और फिर अजनबी सा अहसास... बहुत खास था वह अहसास, जिसमें गुस्सा होने के बाद भी एक-दूसरे की परवाह होती थी, जिसमें बिना मिले एक-दूसरे से बात होती थी... यह सच्चा प्यार हो न हो लेकिन सच्चा रिश्ता तो था, एक ऐसा रिश्ता जिसमें एक-दूसरे के प्रति पुष्पित हुए लगाव को पल्लवित करके जीवनरेखा की पराकाष्ठा तक पहुंचाया गया हो। लेकिन शायद तुम इस बात को नहीं समझ पाई कि रिश्तों की डोर तब कमज़ोर पड़ जाती है जब इंसान ग़लतफ़हमी में उठने वाले 'सवालों' का 'जवाब' खुद बना लेता है। काश! तुम अपनी खामोशी को तोड़कर मुझसे बात कर लेती, काश! मैं अपने गुरूर को छोड़कर तुमसे बात कर लेता, काश! हम भ्रम के तिलिस्म को फोड़कर विश्वास का नया आधार स्थापित करते, काश! मैं तुमको तुमसे ही मांगता और तुम मुस्कुराकर कहती कि गौरव, कोई अपनी चीजें मांगता है क्या? पता है, कुछ लोग बड़े होने के वहम में अपनों को खो देते हैं और कुछ लोग बड़े होने के अहम में...काश! तुम यह बात समझ पाती और फिर मुझे भी यह समझा पाती... अगर यह बात हम दोनों को समय पर समझ आ जाती तो हम साथ होते...

हमसे जुड़ा हर एक किस्सा दिल में बसा है, उनको कागज पर आबाद कर रहा हूं... अब एकबार सोचकर देखो कि जब मैं उन किस्सों को नहीं भूल सकता तो तुम्हें कैसे भूल जाऊं? तुमको लेकर मेरा ख्याल कभी नहीं बदल सकता... मोहब्बत चेहरे से होती तो भूल भी जाता लेकिन क्या करूं यार मोहब्बत तो आत्मा से है...

प्रेम जब तन से होता है तो वासना होता है
प्रेम जब मन से होता है तो भावना होता है
और प्रेम जब आत्मा से होता है तो आराधना हो जाता है... अब अपनी आराधना को छोड़ कर पाप का भागी तो नहीं बन सकता मैं...

#क्वीन

Sunday, August 7, 2016

.बस तरीका बदल गया...

और फिर जिंदगी अपने रास्ते पर चल पड़ी... तुमने वक्त समझकर मुझे गुजार दिया और मैं तुम्हारे साथ बिताए हर एक लम्हे को अपनी कल्पनाओं के सागर में डूबकर जिंदगी माने हुए आज भी जी रहा हूं। जब भी कुछ लिखता हूं और वह तुम तक पहुंचता है तो उसमें कुछ भी ऐसा नहीं होता जो बहुत खास हो लेकिन मेरे और तुम्हारे लिए उसका हर एक शब्द बेहद महत्वपूर्ण होता है। अनुभव और अनुभूति के इस अनूठे संगम को लिखने की क्षमता होना आसान नहीं है, मैं अपनी ही तबाही पर 'वाह-वाह' सुनता हूं।

तुम्हारे हर एक लफ्ज के हजारों मतलब निकालता था मैं...और कर भी क्या सकता था, बातें ही अधूरी करती थी तुम... और पता है आज भी कोई है जो मेरी ही तरह तुम्हारी अधूरी बातों के अलग-अलग मतलब निकालकर रात-रात भर जागता है... मैं उसे नहीं समझा सकता...मैं उसे नहीं रोक सकता... तब मुझे भी कहां कोई समझा पाया था...मुझे भी कहां कोई रोक पाया था, वह सब करने से... जुनून, हौसला, पागलपन सब कुछ वैसा ही है...बस तरीका बदल गया है... जिंदगी जीने का, पर लक्ष्य वही है...

Saturday, August 6, 2016

हमारा रिश्ता

बहुत खूबसूरत है हमारा रिश्ता क्योंकि इसमें हमें एक दूसरे पर किसी तरह का शक नहीं है... यह खूबसूरती और भी ज्यादा इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस रिश्ते में 'हक' जैसी भी कोई चीज नहीं है। बस एक बात जो आज तक मुझे समझ में नहीं आई, वह यह है कि तुम्हें मैंने हर दिन अपने श्रीराम से मांगा...लेकिन तुम नहीं मिली...इसकी वजह क्या थी? क्या मेरी चाहत की शिद्दत में कोई कमी थी या फिर उन दुआओं में किसी तरह की कमी रह गई थी? पर इन सवालों का तुमसे कैसा वास्ता? ये सवाल तो मुझे अपने श्रीराम से पूछने चाहिए...लेकिन नहीं, उनसे मैं ये सवाल नहीं पूछ सकता क्योंकि अगर मैं उनसे ये सारे सवाल पूछुंगा तो वह समझ लेंगे कि मुझे उनके निर्णय के सौन्दर्य पर शंका है।

मुझे उनके निर्णय पर किसी तरह की शंका नहीं है, उन्होंने जरूर कुछ बेहतर ही सोचा होगा... मैं तो बस अपनी व्यक्तिगत जानकारी के लिए इन सवालों के जवाब जानना चाहता हूं...हो सकता है कि मैंने कुछ गलत किया हो, कुछ ऐसा जो मुझे नहीं करना चाहिए था और फिर अब मुझे अपनी वह गलती याद न आ रही हो। वैसे याददाश्त का कमजोर होना कोई बुरी बात नहीं होती है, बहुत बैचेन रहते हैं वे लोग, जिन्हें हर बात याद रहती है...

Thursday, August 4, 2016

मेरा प्रदर्शन और तुम्हारा दर्शन

उस दिन तुमने मुझे बताया कि तुम मार्केट जा रही हो... लेकिन मिलने या बात करने की कोई व्यवस्था नहीं थी क्योंकि तुम्हारे साथ तुम्हारी मासी जी भी थीं। और मैं, तुम्हारे दर्शन और मासी के सामने स्वयं के प्रदर्शन का मौका नहीं छोड़ सकता था...उस मार्केट के रास्ते पर बहुत ट्रैफिक रहता था... मैं उस मार्केट के पहले वाले चौराहे पर लगभग 1 घंटे खड़ा रहा, बस इस इंतजार में कि तुम निकलोगी और मैं तुम्हारी उस प्यारी सी मुस्कान को देख पाऊंगा।

तुम रिक्शे से अपनी मासी जी के साथ मेरे सामने से गुजरी लेकिन तुम्हारी नजर मुझ पर नहीं पड़ी... मार्केट के पास जाम में फंसा तुम्हारा रिक्शा...उस रिक्शे पर बैठी तुम और रिक्शे के पीछे हॉर्न बजाता मैं... आज सब कुछ सपने की तरह लगता है... अगर सपना मानूं तो उम्मीद रहती है कि यह तो पूरा हो सकता है और अगर उसे बीता कल मानूं तो लगता है कि अगर पहले हो सकता है तो अब क्यों नहीं... मैं सच जानता हूं पर मानता नहीं... या फिर यूं समझ लो कि मानना नहीं चाहता...

मैं यह भी जानता हूं कि अब यह सब एक ऐेसे स्वप्न का रूप ले चुका है जो कभी यथार्थ नहीं बन सकता लेकिन ईश्वर से एक निवेदन करता रहता हूं कि मुझे वह इतनी क्षमता दें कि मुझे तुम्हारे सामने कभी नजर न झुकानी पड़ें... ताकि मैं तुम्हारी आंखों में अपनी अधूरी हसरतों को देख सकूं...और साथ ही तुम भी मेरी आंखों में अपनी असली खूबसूरती को देख सको...विश्वास मानो, मैं तुम्हें अपनी आंखों में तुम्हारी जिस खूबसूरती को दिखा सकता हूं, वह कोई आइना नहीं दिखा सकता...

Tuesday, August 2, 2016

तीखेपन का प्यार

पता है आज क्या हुआ, आज मेरी एक प्यारी सी छोटी बहन चाउमीन खा रही थी... चाउमीन तीखी होने के बाद भी वह खाती रही... मैं उसकी आंखों में देख रहा था, आंखों में आंसू थे पर वह खाना बंद नहीं कर रही थी... उसकी आंखों ने उस दिन की याद दिला दी जह मैंने पहली और आखिरी बार तुम्हारे साथ खाना खाया था... कितनी तीखी थी वह दाल...तुम भी 'तीखा' नहीं खा पाती थी लेकिन तुम्हें सबसे ज्यादा 'तीखा' ही पसंद था... याद है तुम्हें, उसी दिन हमने गोलगप्पे भी खाए थे... इतना 'रोने' के बाद भी तुम गोलगप्पे में और ज्यादा 'तीखी चटनी' डालने को कह रही थी। तुम्हारे आंसू गिरते जा रहे थे और तुम गोलगप्पे खाए जा रही थी...
वही एक दिन था जब मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू होने के बावजूद हंसी आ रही थी। वह तुम्हारी खुद को चुनौती देने की क्षमता थी या पागलपन, यह सब मुझे नहीं पता। मैं बस इतना जानता हूं कि तुम्हारी हर एक 'आदत' ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मेरी मोह्ब्बत को तुममें किसी ऐसे शख्स की तलाश नहीं थी जिसके साथ रहा जाए बल्कि मेरी मोह्ब्बत तो तुममें ऐसा शख्स खोजती थी जिसके बगैर रहा ही न जाए...लेकिन मुझे वह नहीं मिला... पर वह सख्स नहीं मिला, यह भी अच्छा ही हुआ... क्योंकि अगर वह मिल जाता तो उसी के साथ, उसी में खोकर सब कुछ भूल जाता... मुझे वह तो नहीं मिला लेकिन मेरे 'राम' मिल गए...उम्मीद से ज्यादा है मेरे लिए इतना... उनके लिए तो मेरे मन में तुमसे भी ज्यादा समर्पण है...
‪#‎क्वीन‬

Sunday, July 24, 2016

मेरा विश्वास


अपनी मोहब्बत को मैं लफ्जों में बयां नहीं कर सकता, बहुत मुश्किल है यह करना... या शायद नामुमकिन जैसा...उन चंद पलों के दौरान होने वाले हमारे मिलन के अहसास को मेरी कलम बयां कर सके, इतनी ताकत मेरी इस कलम में नहीं है। गुमनामी के अंधेरे से शोहरत के दीपक की दुधिया रोशनी तक के सफर की आरजू नहीं थी मेरी लेकिन तुमने और तुम्हारे साथ बिताए गए चंद लम्हों ने मशहूरियत की सीढ़ियों पर कदम रखवा ही दिया...तुम्हें पता है हमारे रिश्ते की खास बात यह है कि मैं जब भी उन लम्हों को शब्दों में उतारता हूं तो उसे एक भाई अपनी बहन को पढ़कर सुना सकता है... एक बेटा अपनी मां को सुना सकता है और एक बेटी अपने पिता को सुना सकती है...

हमारे रिश्ते की पवित्रता ही तो है जिसके आधार पर मेरी 'क्वीन' पूर्ण हो सकेगी...दुनिया में दो पौधे ऐसे हैं जो कभी मुरझाते नहीं और अगर वे मुरझा गए तो उसका कोई इलाज नहीं,एक नि:स्वार्थ प्रेम और दूसरा अटूट विश्वास... मुझे गर्व है कि मेरी ओर से दोनों चीजें अपने शाश्वत रूप में हैं और रही तुम्हारी बात तो मुझे पता है तुम भी प्रेम और विश्वास की इस पराकाष्ठा को कभी न कभी तो जरूर समझोगी.... मैं सनातनी परंपरा में अटूट विश्वास रखता हूं, इस नाते पुनर्जन्म में भी विश्वास है... हो सकता है कि तुम इस जन्म में मेरी बात का यकीन न करो लेकिन अगले जन्म में तो तुम्हें मानना ही होगा... क्योंकि मैं तब भी नहीं बदलूंगा... और हां, यह मेरा अंधविश्वास नहीं है... मैं तुम्हारी उस 'दोस्त' की तरह ही अपने विश्वास पर 'विश्वास' करता हूं... हालांकि मेरे इस विश्वास का आधार तुम ही तो, साथ ही मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे विश्वास को कभी टूटने नहीं दोगी...
#क्वीन

Saturday, July 23, 2016

तुम्हारा अधिकार

यह मेरी उजड़ी हुई जिंदगी की कहानी है, लेकिन अपनी कीमत का अंदाजा इस बात से लगाओ कि मेरी इस कहानी में सबसे मजबूत किरदार तुम्हारा ही तो है। तुम मुझसे पूछती थी ना कि मेरी जिंदगी पर तुम्हारा कितना अधिकार है? जरा बताओ तो कि खुद पर तुम्हारा कितना अधिकार है? तुम ही तो थी मेरी जिंदगी...और देखो ना मैंने तुम्हारा अधिकार अब तक नहीं छीना... आज भी मेरी कलम से निकला पहला शब्द कुछ भी हो लेकिन आखिरी शब्द तुम पर ही खत्म होता है। तुमने मेरे बहुत से स्केच बनाए लेकिन तुमको पारंगत नहीं कह सकता... पारंगत तो तब मानता जब उन चित्रों में तुम मेरी खुशी और मेरे दर्द को भी जगह दे पाती...
आसमान में एक चांद होता है लेकिन तारे करोड़ों होते हैं, अगर किसी दिन कुछ तारे ना भी दिखें तो कोई फर्क नहीं पड़ता... चांद अपनी दूधिया रोशनी से सब कुछ रोशन कर देता है लेकिन अगर उसी आसमान में कुछ तारे ज्यादा दिखने लगें और चांद ना दिखे तो चारों ओर अंधेरा छा जाता है... कुछ ऐसी ही कहानी तो हमारे रिश्ते की भी है... सिर्फ तुम ही तो थी जिसने मेरी जिंदगी को रोशन करके रखा था और आज बहुत से लोग हैं लेकिन जिंदगी के इस अंधेरे में नजरें तुम्हें ही खोजती हैं... काश! तुम इस अंधेरे में एक बार फिर से मेरा हाथ थाम कर कहती कि देखो गौरव, मैं वापस आ गई...
मैं जानता हूं कि इस घने अंधेरे में तुम मुझे नहीं मिलने वाली... तुम्हारे वापस आने कल्पना करना मेरे लिए सिर्फ एक सपना है लेकिन सपने देखने का अधिकार तो है ना मेरे पास... मैं जानता हूं इस अंधेरे में तुम्हारा मिलना नामुमकिन है लेकिन अब तुम्हें खोजना बंद कर तुम्हारे सहारे खुद को खोज रहा हूं...उम्मीद है जिस दिन खुद को पा लिया उसदिन तुमसे किए गए उस वादे को पूरा कर पाऊंगा... हां, वही... तुम्हारी पहचान बनने का वादा...
‪#‎क्वीन‬

Friday, July 22, 2016

हमेशा रहोगी तुम...

तुम अपनी बालकनी में खड़ी थी उस दिन और मैं तुम्हारे घर के नीचे... बारिश का मौसम बन रहा था और बारिश से पहले की ठंडी हवा ने तुम्हारे सर से तुम्हारे चेहरे के रंग वाले गुलाबी दुपट्टे को तुम्हारे सर से नीचे गिरा दिया था.. उसके बाद हवा के उस झोंके से तुम्हारे बाल जिस तरह से उड़े थे, यकीन मानो उसके बाद जब मैं उस दिन की बारिश में भीगकर बीमार हुआ तो ऐसा लग रहा था जैसे उस 30 सेकंड के हसीन दृश्य के लिए 6 दिन का बुखार काफी कम है।
बुखार के कारण मैं तुमसे नहीं मिल पाया पर तुम भी दूरी को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आ गई तीसरे दिन मेरे पास... 3 दिन में 21 स्केच बनाए थे तुमने और फिर अपने ही बनाए स्केच को दिखाकर हंस रही थी... फिर अचानक तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए... तुम तो जानती थी ना... बस वे दो बूंद ही तो मेरी कमजोरी बन जाते थे... उन आंसुओं की कीमत अगर मेरी सारी खुशियां होती तो इस कीमत को चुकाने से भी परहेज नहीं करता लेकिन तुम्हारे उन आंसुओं को रोकने के लिए कुछ और ही कीमत चुकानी पड़ी... अवांछित कीमत थी.. पर तुम्हारी खुशी का मामला था तो चुकाने से पीछे हटना संभव नहीं था... चुका दी वह कीमत भी... हमेशा के लिए तुमसे दूर जाकर... लेकिन एक वादा है कि मेरी जिंदगी से तो दूर चली गई हो पर अपनी सोच से कभी तुम्हें दूर नहीं होने दूंगा...
‪#‎क्वीन‬

Thursday, July 21, 2016

क्यों लिखता हूं तुमको?

लोग कहते हैं कि मैं तुम्हारे बारे में या अपनी मोहब्बत के बारे में जो कुछ भी लिखता हूं वह उनको बहुत पसंद आता है लेकिन सच कहूं तो मैं बिलकुल नहीं चाहता कि मेरा दर्द किसी को खुशी दे। मैं बिलकुल यह नहीं चाहता कि मैं अपनी मोहब्बत को बेचूं, या तुमसे जुड़ी बातों के व्यक्तिगत भावों को सामाजिक रूप से दर्शाऊं...
मैं बस इतना चाहता हूं कि 'कान्ट स्टॉप द फीलिंग' सुनने वालों तक हिंदी पहुंचे और अगर कोई यह समझता है कि अंग्रेजी बोलने से कोई लड़की उससे प्यार करने लगेगी तो उसे सच का अहसास हो कि अपनी मातृ भाषा में प्रेम प्रदर्शित करना जितना आसान है, विदेशी भाषा में उसे प्रदर्शित करना उतना ही मुश्किल...अपनी मां के लिए लिखता हूं... हिंदी के लिए लिख रहा हूं... मां के अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी महबूबा का प्रयोग कर रहा हूं... हो सकता है कोई गलत कहे लेकिन मैं आज भी सही हूं जैसे उस शाम था....
‪#‎क्वीन‬

Wednesday, July 20, 2016

तुम्हारी वह तस्वीर

बेहद खूबसूरत दिख रही थी तुम अपनी उस तस्वीर में... साड़ी में पहली बार देखा था तुम्हें... बस यही सोचने लगा था कि यह शख्स मेरे किचन में कैसा लगेगा... बहुत अच्छी लगती तुम वहां लेकिन इसके साथ एक और भी सच जुड़ा है... तुम्हें तो खाना बनाना आता ही नहीं है... तुम सिर्फ मैगी और चाय ही बना सकती हो... और इन दोनों चीजों का उपयोग मैं करता नहीं... फिर क्या करता...सच कहूं तो अगर तुम मेरे साथ होती और तुम्हें कुछ भी बनाना नहीं आता होता तो भी मैं तुम्हारे साथ रहता और तुमसे कभी नहीं कहता कि तुम कुछ बनाना सीखो...
आखिर खाना ही तो सब कुछ नहीं होता... खाना बनाने की कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती थी... लेकिन तुम्हारा कोई विकल्प नहीं... तुम खुद में एकमात्र विकल्प थी...
‪#‎क्वीन‬

Tuesday, July 19, 2016

मेरी दुआ

उस दिन तुम्हारी आंख में दर्द हो रहा था और तुम चुपचाप घर पर बिना किसी को कुछ बताए लेटी थी... मैंने तुमसे 50 बार कहा था कि बिना चश्मा लगाए लैपटॉप यूज मत किया करो लेकिन तुमको मेरी बातों से फर्क ही कहां पड़ता था... उस दिन मैं तुम्हें सुबह से कॉल कर रहा था लेकिन तुमने एक बार भी मेरा फोन नहीं उठाया... तुम मुझसे बहुत कुछ छिपा लेती थी... शायद इस लिए क्योंकि तुमको लगता था कि कहीं तुम्हारी परेशानियों से मैं भी न परेशान हो जाऊं या फिर शायद तुम मुझे अपनी परेशानियां बताना जरूरी ही नहीं समझती थी...
तुम्हारी उस 'सबसे अच्छी' फ्रेंड ने मुझे बताया कि तुम्हारे साथ क्या समस्या है। 200 से भी ज्यादा बार कॉल कर चुका था मैं उस दिन... बहुत गुस्सा भी आ रहा था... कुछ देर के बाद तुमने कॉल बैक किया और तुम्हारी आवाज सुनकर मेरा सारा गुस्सा गायब हो गया... मैं शांत था... मेरे कहने पर ही तुम अपनी उस फ्रेंड के साथ हॉस्पिटल गई वहां से वापस आकर हम उसी स्टेलर आईटी पार्क में मिले...खाना खाकर मैं तुम्हें पैदल तुम्हारे घर छोड़ने जा रहा था और तुम मुझसे अपनी बातें बताई जा रही थी...
5 मिनट के रास्ते को हमने 40 मिनट में तय किया... मुझे नहीं याद कि तुमने उस दिन क्या-क्या बोला लेकिन उन सारी बातों के दौरान तुम्हारे होंठों पर आने पर आने वाली मुस्कान हूबहू याद है...बस यही दुआ करता हूं कि तुम्हारी जिंदगी के हर एक पल में चेहरे की मुस्कुराहट वैसी ही बनी रहे...
‪#‎क्वीन‬

मेरा वादा...

कई लोग मुझसे कहते रहते हैं कि आखिर क्वीन है कौन... एक बार उसकी तस्वीर दिखा दीजिए... अब उनको कैसे बताऊं कि मेरे पास तो तुम्हारी कोई तस्वीर है ही नहीं... क्योंकि तुम्हारी तस्वीर की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी... तस्वीर तो उसकी जरूरी होती है जिसकी याद आती हो और याद तो उसकी आती है जिसे भूला गया हो... तुम तो मेरे हर एक शब्द में, हर एक ख्याल में, हर एक सांस में बसती हो...तुम्हारी तस्वीर की क्या जरूरत है मुझे...
मुझे जब भी तुम्हारे साथ की जरूरत होती है तो बस आंखें बंद करता हूं और तुम्हें अपने पास पाता हूं... नहीं, अपने सपनों में नहीं... हकीकत में... तुम्हारे हाथ को आज भी उसी तरह से अपने हाथ में महसूस करता हूं जैसे कभी उस वीरान सड़क पर कुछ पलों के लिए महसूस किया था... मुझे उन पलों का एहसास तुम्हारी तस्वीर नहीं दिला सकती... उस एहसास को जीने के लिए तुम्हारा मेरे साथ होना बहुत जरूरी है...मुझे खुशी है कि मेरे श्रीराम मेरी इस इच्छा को हर बार पूरा कर देते हैं... जब भी मुझे तुम्हारी जरूरत होती है तुम्हें अपने पास पाता हूं... उन चंद पलों का एहसास मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा से भर देता है...
तुम अपना कभी साथ न छोड़ने का वादा निभा रही हो... और मैं अपना वादा निभाऊंगा... हां वही वादा... तुम्हारी पहचान बनने का...
‪#‎क्वीन‬

Monday, July 18, 2016

और उस दिन...

उस दिन जा रही थी तुम... मुझे नहीं पता था कि तुमसे दोबारा कभी मुलाकात होगी भी या नहीं... चंद कदमों की दूरी पर था मैं तुमसे... तुमने तो शायद मुझे देखा भी नहीं था...एक पल को लगा कि जैसे सब कुछ हार गया हूं लेकिन... तुम्हारे 'लेकिन' की तरह ही मेरा भी एक लेकिन था लेकिन मेरा 'लेकिन' तुम्हारे लेकिन की तरह अवसादों में फंसा हुआ नहीं था... अगर उस दिन मैं खुद को हारा हुआ मान लेता तो मेरा 'लेकिन' भी तुम्हारे लेकिन की तरह ही हो जाता... हो सकता है कि तुमको या तुमसे जुड़े लोगों को लगता हो कि मैं हार गया लेकिन जहां से मैं देख रहा था वहां से सिर्फ मैं जीता था... क्योंकि जहां से मैं देख रहा था वहां से मुझे एक मासूम सी लड़की अपनी तथाकथित मासूमियत का दिखावा करते हुए उस इंसान से दूर जा रही थी जो दुनिया में उससे सबसे ज्यादा मोहब्बत करता था... वह एक ऐसे इंसान से दूर जा रही थी जिसने कभी तुमसे उस रिश्ते का नाम तक नहीं पूछा जो बेनामी की पराकाष्ठा को पार कर चुका था... उसे तो बस अपनी हर एक दुआ में तुम्हारी खुशी मांगने की आदत पड़ गई थी...कुछ पाने की चाहत में किसी 'अपने' से दूर जाना समर्पण, निष्ठा या लक्ष्य नहीं बल्कि खुदगर्जी कहलाता है...
पता नहीं तुम्हें कभी मेरी उस मोहब्बत का एहसास होगा या नहीं लेकिन मैं बस इतना जानता हूं कि अगर अब तुम कभी वापस आओगी भी तो भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि वह मोहब्बत तो कब की फासलों में फना हो गई...एक गलती मेरी भी थी... मैंने भी सफर-ए-जिंदगी में सिर्फ तुम्हारे लिए उनको भी नजरंदाज किया जो हासिल थे...
‪#‎क्वीन‬

Friday, July 15, 2016

चेहरे के रंग


और उस दिन मेरे एक दोस्त ने शाम को मुझे कॉल किया, उसने मुझसे कहा कि वह मिलना चाहता है...मेरे पास उस समय बाइक नहीं थी तो मैंने कहा कि मैं थोड़ी देर में आता हूं... फिर देर शाम उसने कॉल करके कहा कि तुम मुझे बुला रही हो... मुझे पता था कि तुम मुझे बुलाने के लिए किसी और से तो नहीं कह सकती... खैर, मेरा छोटा भाई बाइक लेकर दीदी के घर पर गया हुआ था... मैंने उसे तत्काल वापस बुलाया और बाइक लेकर मार्केट पहुंचा... उम्मीद के मुताबिक तुम तो वहां नहीं थी लेकिन मेरा दोस्त मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था...

उसे लग रहा था कि मैं तुम्हारे लिए आया हूं लेकिन सच तो यही था कि उस दिन अगर वह तुम्हारा नाम नहीं लेता तो भी मैं कुछ देर के बाद नियत स्थान पर जाता... तुमसे मिलने नहीं, बस उस जगह पर तुम्हें महसूस करने जहां तुम रोज जाती थी...

और जब अगले दिन मैंने तुम्हें बताया कि लोग अब तुम्हारा नाम लेकर मुझे मिलने बुलाने लगे हैं तो पूरे 21 मिनट तक तुमने मुझसे झगड़ा किया था... मैंने किसी को नहीं बताया था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं लेकिन चेहरे के रंग को कैसे छिपाता... जो लोग बहुत करीब थे उन्हें पता लग ही गया था... बस दुख इस बात का है कि उन लोगों को समझ में आ गया तो वे फायदा उठाने लगे और तुमने उस बात को समझने की कोशिश ही नहीं की...
#क्वीन

Wednesday, July 13, 2016

लेकिन के मायने

कैसा रिश्ता था हमारा और कैसे थे हम... जब भी किसी 'छोटी' सी बात पर नाराज होकर झगड़ा करते थे तो 'मुझे मेसेज मत करो', 'मुझसे बात मत करो' जैसी बातें बोलकर ही घंटों बात कर लिया करते थे... और फिर जब सोने का समय हो जाए तो सब कुछ भूलकर फिर से सब नॉर्मल कर देते थे... तुमको पता है हम दोनों की सबसे अच्छी बात क्या थी? हम दोनों सिर्फ एक-दूसरे को चाहते थे, हमने एक-दूसरे से कभी कुछ नहीं चाहा... अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीकर कब हम दोनों हम से 'मैं-तुम' हो गए... तुम वह सब करने लगी जो तुम्हें अच्छा लगता था और मैं तो वह करता ही था जो मुझे पसंद था... हममें से किसी ने एक-दूसरे के लिए खुद को नहीं बदला.. आखिर बदलते भी क्यों? मोहब्बत में शर्तें कहां होती थीं...

एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती थी, जानती हो वह क्या थी? मैं जो करता था उससे किसी न किसी का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष फायदा जरूर होता था लेकिन तुम जो करती थी उससे सिर्फ तुम्हारे भविष्य का नुकसान था... इसमें परेशान करने वाली बात यह थी कि तुम सब कुछ जानते हुए भी वही करती जा रही थी जो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं था... तुम कहती भी थी कि हां गौरव, मैं जानती हूं कि यह मेरे लिए ठीक नहीं लेकिन... इस लेकिन के आगे तुमने कभी कुछ नहीं बताया... 'लेकिन' के मायने कितने बड़े होते हैं यह तुम्हारे उस 'लेकिन' ने ही बताया था...
‪#‎क्वीन‬

वह खौफनाक सुबह

रात का 1 बजा था उस दिन, पूरे 7 दिनों से हमारी बात नहीं हुई थी... मैंने घर पहुंचते ही तुम्हें कॉल लगाया... शायद तुम मेरे कॉल का ही इंतजार कर रही थी। बेहद नाराज थी उस दिन तुम कि आखिर मैंने 7 दिनों से बात क्यों नहीं की... एक साथ 6 सवाल पूछ डाले तुमने... मेरे पास उन सवालों का कोई जवाब नहीं था, या फिर यूं समझ लो कि मैं तुम्हारे उन सवालों के जवाब देना ही नहीं चाहता था। ऐसा क्यों था इस बात का जवाब तो आज भी नहीं दे सकता... 

खैर, उस रात के आगोश में डूबकर तुम जिस तरह से धीमी आवाज में बात कर रही थी, वैसी आवाज मैंने कभी नहीं सुनी थी... उस आवाज में प्रेम और डर का अनूठा संगम झलक रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे तुम किसी ऐसे खौफनाक सपने में हो जिसमें तुम अपना सब कुछ खोने वाली हो और उसे बचाने का तुम्हें कोई रास्ता नहीं मिल रहा। 

पता है, मोहब्बत गहरी हो या ना हो लेकिन विश्वास गहरा होना चाहिए... कुछ मिनट तक तुम्हारी उस आवाज के दर्द को महसूस किया और फिर अचानक तुमने फोन काट दिया...अगले दिन तुम जब मिली तो इतना ही बोली, 'गौरव, 'खुशबू' की तरह हूं मैं, जब तक हूं तब तक मुझे महसूस करो...स्थायित्व आ गया तो मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।'
तुमने ऐसा क्यों कहा? यह भी उन सवालों में एक है जिनका जवाब आज तक नहीं मिला....
#क्वीन

Tuesday, July 12, 2016

मजबूरी थी वह मेरी...

तुमसे दूर जाने के बाद भी मन में एक उम्मीद थी कि कभी तो तुम संपर्क साधने की कोशिश करोगी ही लेकिन तुमने ऐसा कुछ नहीं किया। ख्वाहिशें तो हजारों थीं लेकिन तुम जरूरत बनती जा रही थी... एक दौर ऐसा भी आया जब तन्हाइयों में जीना थोड़ा मुश्किल सा लगने लगा लेकिन असल मायनों में तो वह दौर मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उसी दौर में तो खुद से मुलाकात हुई थी मेरी... जब तक तुम थी तब तक खुद से मिलने का समय की कहां था मेरे पास...
ऑरकुट का दौर था वह... तुम्हारी स्क्रैपबुक के सहारे ही कुछ दिन बिताए... लेकिन कब तक उन बातों को पढ़कर खुश रखने की कोशिश करता जिनका मुझसे कोई सरोकार नहीं था। जिस दौर में टेक्स्ट मैसेज लिखने में तुम्हारे नाम का एक अक्षर लिखने के लिए 7 को 4 बार दबाना पड़ता हो, उस दौर में आखिर कोई अनजान बन चुके इंसान से कब तक ख्यालों में मिलने की कोशिश करता।
तुम्हें पता है, आज लोग मुझसे पूछते हैं कि आखिर तुम मुझसे दूर क्यों गई? कोई जवाब नहीं है मेरे पास इस बात का... तुमने कभी बताया ही नहीं... मैं मानता हूं कि तुमसे दूर जाने का निर्णय मेरा था लेकिन उस निर्णय की वजह तुम ही थी... मजबूरी थी मेरी...वक्त की हकीकत ने हालातों को भी बदल डाला था... शायद तुम्हें मजबूरी शब्द बेईमानी लगे लेकिन उस वक्त को और कोई नाम देना भी बेईमानी ही होगी...
‪#‎क्वीन‬

Monday, July 11, 2016

वे 7 मिनट

याद है ना तुमको, पूरे डेढ़ साल बाद मिले थे हम उस दिन... लेकिन सब बदला बदला सा था...सिर्फ 12 शब्दों का संवाद था हमारा...उसके बाद 7 मिनट तक मैं उस शख्स को खोजता रहा जिससे मुझे मोहब्बत हुई थी...ओह याद आया तुम्हारे लिए वह मोहब्बत ही कहाँ थी। बीते लम्हों को एक बार फिर से तुम्हारे साथ उन 7 मिनटों में ही तो जिया था। पर मुझे ज्यादा ख़ुशी होती अगर तुममें तब भी वही पुरानी वाली चुलबुली सी लड़की अपनी जिंदगी जी रही होती जिससे मैंने मुहब्बत थी।

हां, फिर से मैं उसी तरह से 7 मिनट तक तुम्हारी आँखों को देखता रहा जैसे पहले देखा करता था। तुम खुश थी, तुम्हारी उन आँखों में कुछ खोने का दर्द भी नहीं था...बस इसी का तो कायल था मैं...हर हालात में खुश रहना...अंतर इतना सा है कि पहले की तरह ही मैं उस ख़ुशी की कीमत के बारे में सोच लेता हूँ।

अंदाजा लगाओ तुम्हारे सामने खड़े होकर बिताए गए उन 7 मिनटों के सहारे मैं कितना समय बिता सकता हूँ? 7 और मिनट या 7 घंटे या 7 दिन या 7 महीने या 7 साल या पूरी ज़िन्दगी?


उन सात मिनटों के सहारे तो मैं 7 जन्म बिता सकता हूँ...लेकिन अगर उन 7 जन्मों में तुम मेरे साथ होती तो बात ही कुछ और होती।
‪#‎क्वीन‬

तुम्हारी वह मुस्कुराहट

लंबे समय तक तुम्हारा जिक्र करना बंद कर दिया... जिंदगी के हर हिस्से से तुम्हें गायब करने की कोशिश की लेकिन तुम्हारी फिक्र करना कभी नहीं छोड़ पाया... वह मेरे हाथ में नहीं था ना... तुमसे जुड़ी हर बात पता रहती थी मुझे...
याद है तुम्हें 7 महीन के बाद मैंने एक दिन शाम को तुम्हें कॉल किया था... हां, उसी दिन जब तुम्हारी मां की तबियत खराब थी और तुम अपना रूम बंद करके बहुत रोई थी... नहीं रोक पाया था खुद को तुम्हें कॉल करने से... मुझे पता था कि तुम्हारे लिए मेरी कॉल का बहुत महत्व है, तुम अपनी बातें किसी से शेयर नहीं करती थी... पर अपने दिल से कोई कैसे कुछ छिपा सकता है....
13 मिनट 40 सेकंड की उस कॉल के दौरान तुमने कई बार मुझसे पूछा कि आखिर मुझे यह बात पता कैसे लगी कि तुम रोई हो... मैं नहीं बता सकता था, क्योंकि यह बात मुझे किसी ने बताई ही नहीं थी...
जानती हो उसदिन क्या हुआ था? मैं अपने घर से निकला और अचानक मेरे दिल ने कहा कि मुझे तुमसे बात करनी चाहिए... बस मैंने कॉल लगा दिया.... लेकिन क्या इससे पहले मेरे दिल ने 7 महीनों तक एक बार भी यह नहीं कहा कि मुझे तुमसे बात नहीं करनी चाहिए... इसका जवाब 'नहीं' है... मैंने कहा था ना कि मैं तुम्हारी खुशी में भले ही तुम्हारे साथ खड़ा न दिखूं लेकिन तुम्हारे आंसुओं को पोंछने सबसे पहले मैं ही आउंगा... मेरे बात करने के बाद तुम्हारे चेहरे पर 2 पलों के लिए जो मुस्कुराहट आई थी, उसी के लिए तो आज भी 'सब-कुछ' कर रहा हूं मैं...
‪#‎क्वीन‬

Sunday, July 10, 2016

एक ‎पुराना पत्र‬

अवाचित पत्र मेरे जो कल तलक खोले नहीं तुमने
समूचा विश्व उनको पढ़ रहा है तुमको सूचित हो...!!
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