बहुत खूबसूरत है हमारा रिश्ता क्योंकि इसमें हमें एक दूसरे पर किसी तरह का शक नहीं है... यह खूबसूरती और भी ज्यादा इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस रिश्ते में 'हक' जैसी भी कोई चीज नहीं है। बस एक बात जो आज तक मुझे समझ में नहीं आई, वह यह है कि तुम्हें मैंने हर दिन अपने श्रीराम से मांगा...लेकिन तुम नहीं मिली...इसकी वजह क्या थी? क्या मेरी चाहत की शिद्दत में कोई कमी थी या फिर उन दुआओं में किसी तरह की कमी रह गई थी? पर इन सवालों का तुमसे कैसा वास्ता? ये सवाल तो मुझे अपने श्रीराम से पूछने चाहिए...लेकिन नहीं, उनसे मैं ये सवाल नहीं पूछ सकता क्योंकि अगर मैं उनसे ये सारे सवाल पूछुंगा तो वह समझ लेंगे कि मुझे उनके निर्णय के सौन्दर्य पर शंका है।
मुझे उनके निर्णय पर किसी तरह की शंका नहीं है, उन्होंने जरूर कुछ बेहतर ही सोचा होगा... मैं तो बस अपनी व्यक्तिगत जानकारी के लिए इन सवालों के जवाब जानना चाहता हूं...हो सकता है कि मैंने कुछ गलत किया हो, कुछ ऐसा जो मुझे नहीं करना चाहिए था और फिर अब मुझे अपनी वह गलती याद न आ रही हो। वैसे याददाश्त का कमजोर होना कोई बुरी बात नहीं होती है, बहुत बैचेन रहते हैं वे लोग, जिन्हें हर बात याद रहती है...