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Wednesday, October 5, 2016

समय की रफ्तार

समय किस रफ्तार से अपनी चाल बदल देता है, इस बात का अंदाजा लगाना हमारी कल्पना से भी परे होता है। पता है, तब एक समय था जब किसी के साथ भी बैठो तो बस तुम्हारी ही बातें हुआ करती थीं और एक समय अब है, कि अगर कोई तुम्हारा नाम भी ले ले तो बात बदलनी पड़ जाती है। आखिर बात न बदलूं तो और करूं भी क्या? तुम्हारे साथ बिताए गए उन पलों को याद करके आंखों में आए आंसुओं को किसी के भी सामने रोकने की क्षमता नहीं है मुझमें। 

मैं कभी तुमसे नाराज नहीं होता था, क्योंकि नाराज तो वे होते हैं जिनको इस बात का गुरूर होता है कि कोई है जो उन्हें मनाने आएगा। लेकिन मैं इस तरह की किसी भी गलतफहमी के आगोश में नहीं था। तुमने मुझे सत्य से कभी विमुख नहीं होने दिया। तुम्हारी जरूरत, फिर इंतजार की उम्मीद और उम्मीद टूटने के बाद होने वाले अकेलेपन के अहसास को किस तरह से महसूस करता था मैं, तुम कभी नहीं समझ सकती। 

 तुम इतने दिनों से मेरे पास ही रहती हो लेकिन मैं तुम्हें एक बार देखने तक नहीं आया? यही सोचती हो ना तुम? पता है, इंतजार करते-करते इतना थक गया था कि तुम्हें अपने दिल से निकाल दिया। और जब कोई दिल से निकल जाता है तो उसे देखना तो दूर उसके बारे में बात करने का भी दिल नहीं करता।
#क्वीन

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