सबसे ज्यादा पढ़ी गईं पोस्ट

Tuesday, July 12, 2016

मजबूरी थी वह मेरी...

तुमसे दूर जाने के बाद भी मन में एक उम्मीद थी कि कभी तो तुम संपर्क साधने की कोशिश करोगी ही लेकिन तुमने ऐसा कुछ नहीं किया। ख्वाहिशें तो हजारों थीं लेकिन तुम जरूरत बनती जा रही थी... एक दौर ऐसा भी आया जब तन्हाइयों में जीना थोड़ा मुश्किल सा लगने लगा लेकिन असल मायनों में तो वह दौर मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उसी दौर में तो खुद से मुलाकात हुई थी मेरी... जब तक तुम थी तब तक खुद से मिलने का समय की कहां था मेरे पास...
ऑरकुट का दौर था वह... तुम्हारी स्क्रैपबुक के सहारे ही कुछ दिन बिताए... लेकिन कब तक उन बातों को पढ़कर खुश रखने की कोशिश करता जिनका मुझसे कोई सरोकार नहीं था। जिस दौर में टेक्स्ट मैसेज लिखने में तुम्हारे नाम का एक अक्षर लिखने के लिए 7 को 4 बार दबाना पड़ता हो, उस दौर में आखिर कोई अनजान बन चुके इंसान से कब तक ख्यालों में मिलने की कोशिश करता।
तुम्हें पता है, आज लोग मुझसे पूछते हैं कि आखिर तुम मुझसे दूर क्यों गई? कोई जवाब नहीं है मेरे पास इस बात का... तुमने कभी बताया ही नहीं... मैं मानता हूं कि तुमसे दूर जाने का निर्णय मेरा था लेकिन उस निर्णय की वजह तुम ही थी... मजबूरी थी मेरी...वक्त की हकीकत ने हालातों को भी बदल डाला था... शायद तुम्हें मजबूरी शब्द बेईमानी लगे लेकिन उस वक्त को और कोई नाम देना भी बेईमानी ही होगी...
‪#‎क्वीन‬