अब तो कभी-कभी यह तक सोचने लगता हूँ कि तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी में एक 'स्वप्न' की तरह आना कहीं कोई ईश्वरीय योजना तो नहीं थी... क्या था मैं...कुछ भी तो नहीं...कोई नहीं जानता था मुझे...जो जानते भी थे, वे 'मानते' नहीं थे...पर अब लोग जानने लगे हैं...इससे भी ख़ुशी की बात यह है कि वे मानने भी लगे हैं।
एक वादा करता हूँ आज तुमसे...तुमको सब कुछ ब्याज सहित वापस करूँगा...तुम मेरी पहचान बनाने में जो सहयोग कर रही हो उसका बदले में मैं तुम्हें 'विशिष्ट' बना दूंगा। मैं जानता हूँ किसी सामान्य(व्यवहार के परिपेक्ष्य में) सी लड़की को #क्वीन बनाना इतना आसान नहीं है पर विश्वास करो इतना मुश्किल भी नहीं है। तुमने ही तो सिखाया था मुझे...
पर कभी-कभी एक बात बहुत परेशान करती है, अजब सी कश्मकश में फंस जाता हूँ जब कोई तुम्हारा नाम पूछता है...निरुत्तर हो जाता हूँ जब कोई यह पूछता है कि आखिर #क्वीन है कौन...
बस यहीं पर चुप हो जाता हूँ और कोसिस करता हूँ लोगों को बरगलाने की...और कोई विकल्प भी तो नहीं है ना... कल्पनाओं का वास्तविक नाम हो भी कैसे सकता है...
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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Monday, June 27, 2016
कैसे बताऊँ कौन हो तुम?
मेरी कोई 'एक्स' नहीं...
उस दिन पहली बार देखा था तुम्हें और उसी दिन 'मोहब्बत' पर पहला ब्लॉग भी लिखा था। तुमको लिंक भी भेजा था ब्लॉग का...पर भूल गया था कि तुम्हारा स्मार्टफोन तो हिंदी सपोर्ट ही नहीं करता था। पता नहीं तुमने वह ब्लॉग आज तक पढ़ा या नहीं लेकिन तुमको पता है मेरे द्वारा लिखे गए ब्लॉग्स में सबसे ज्यादा पढ़े गए 5 ब्लॉग्स में से 1 है वह ब्लॉग।
इसके बाद जब कभी तुम्हारी नजर में मेरी कोई शायरी आती थी तो तुम मुझसे पूछा करती थी, 'गौरव, कौन है वह?' कैसे बताता तुमको,तुम्हारे ही सामने खड़े होकर...वह भी तब जब मुझे इस शाश्वत सत्य का ज्ञान हो कि हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते।
तुम अटकलें लगाती थी, तुमको यही लगता था ना कि वो सब मैं अपनी किसी 'एक्स' के लिए लिखता हूँ। गलत थी तुम, ना तो मेरी कोई 'एक्स' थी और ना ही कोई 'प्रेजेंट'...
मैं कल्पनाओं के सागर में डूबकर वांछित प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुँच जाता था। अकथित शब्दों के पीछे छिपे शाश्वत भाव को काश तुमने समझ लिया होता...कभी-कभी यह ख्याल भी आ जाता है लेकिन फिर इस ख्याल की हत्या कर देता हूँ क्योंकि अगर तुम समझ भी जाती तो भी किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता....
आज भी उन्हीं कल्पनाओं में डूबकर तुम्हें अपने हर एक लम्हे में महसूस करता हूँ लेकिन एक बार सोचकर देखो अगर मुझमें यह कल्पनाशक्ति भी न होती तो क्या होता...
#क्वीन