उस दिन तुमने मुझे बताया कि तुम मार्केट जा रही हो... लेकिन मिलने या बात करने की कोई व्यवस्था नहीं थी क्योंकि तुम्हारे साथ तुम्हारी मासी जी भी थीं। और मैं, तुम्हारे दर्शन और मासी के सामने स्वयं के प्रदर्शन का मौका नहीं छोड़ सकता था...उस मार्केट के रास्ते पर बहुत ट्रैफिक रहता था... मैं उस मार्केट के पहले वाले चौराहे पर लगभग 1 घंटे खड़ा रहा, बस इस इंतजार में कि तुम निकलोगी और मैं तुम्हारी उस प्यारी सी मुस्कान को देख पाऊंगा।
तुम रिक्शे से अपनी मासी जी के साथ मेरे सामने से गुजरी लेकिन तुम्हारी नजर मुझ पर नहीं पड़ी... मार्केट के पास जाम में फंसा तुम्हारा रिक्शा...उस रिक्शे पर बैठी तुम और रिक्शे के पीछे हॉर्न बजाता मैं... आज सब कुछ सपने की तरह लगता है... अगर सपना मानूं तो उम्मीद रहती है कि यह तो पूरा हो सकता है और अगर उसे बीता कल मानूं तो लगता है कि अगर पहले हो सकता है तो अब क्यों नहीं... मैं सच जानता हूं पर मानता नहीं... या फिर यूं समझ लो कि मानना नहीं चाहता...
मैं यह भी जानता हूं कि अब यह सब एक ऐेसे स्वप्न का रूप ले चुका है जो कभी यथार्थ नहीं बन सकता लेकिन ईश्वर से एक निवेदन करता रहता हूं कि मुझे वह इतनी क्षमता दें कि मुझे तुम्हारे सामने कभी नजर न झुकानी पड़ें... ताकि मैं तुम्हारी आंखों में अपनी अधूरी हसरतों को देख सकूं...और साथ ही तुम भी मेरी आंखों में अपनी असली खूबसूरती को देख सको...विश्वास मानो, मैं तुम्हें अपनी आंखों में तुम्हारी जिस खूबसूरती को दिखा सकता हूं, वह कोई आइना नहीं दिखा सकता...