उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा। तुम मेरे ठीक सामने उसी स्टेलर आईटी पार्क में बैठी थी। तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम अपने उस 'एक्स' को बहुत मिस कर रही थी। मैंने तुम्हारी जिंदगी के उस खास दिन को 'बेहद खास' बनाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन तुम्हारी रूह से निकलकर चेहरे तक आ रहे दर्द को रोकने में नाकाम रहा। केक का वह पांचवा टुकड़ा जो तुमने अपने हाथों से मेरे मुंह में डाला था उसके स्वाद को लेने का मौका ही नहीं मिला। तुम्हारी आंखों के उस दर्द को महसूस करने की कोशिश में लगा हुआ था मैं लेकिन वह कोशिश कामयाबी के मुकाम तक नहीं पहुंच सकी।
आज... आंख बंद करते ही तुम्हारा चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता है, बेहद कमाल होता है वह अहसास... पता नहीं कौन सी दौलत थी तुम्हारी उन आंखों में, नजर मिलते ही ऐसा लगता है जैसे तुमने मेरी सारी जिंदगी खरीद ली हो। उन आंखों में सूर्य जैसी ओजस्विता थी... जब मेरी पलकें नीचे झुकती थीं तो लगता था जैसे सूर्य, समंदर में डूब रहा हो... ऐसा लगता था जैसे वह समंदर सूर्य की तपन को झेल नहीं पाएगा, ऐसा लगता था कि अब या तो समंदर सूख जाएगा या सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा...
पता है तुम्हें... मैं अपनी जिंदगी को गुजारना नहीं चाहता था... मैं जीना चाहता था... तुम्हारे साथ... मुझे पता था कि यह सब मुश्किल होगा लेकिन कभी-कभी बारिश आने पर छाता हटाकर भीगना ज्यादा अच्छा लगता है...
#क्वीन
No comments:
Post a Comment