हर बात दिल के रास्ते जुबां पर आ ही जाए, ऐसा जरूरी तो नहीं। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि कोई खास बात दिल से निकलकर आंखों के रास्ते आपके सामने आ जाए। हां, मैं तुमसे नहीं कह पा रहा था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और यही तो तुम भी कर रही थी। तुम्हारी गलियों के रास्ते तो याद रहते थे लेकिन ठिकाना याद नहीं रहता था। गलती तो थी, मैं हर दिन, हर शाम तुम्हारी गलियों में क्यों जाता था, हर रोज क्यों अपनी क्लास खत्म होने के बाद भी 2 घंटे रुक कर तुम्हारा इंतजार करता था, क्यों मैं तुम्हारे पीछे अपनी साइकल से तुम्हारे घर तक जाता था? गलती यह नहीं थी कि मैं यह सब करता था बल्कि गलती यह थी कि मैं यह सब करते जता नहीं पाता था। बिलकुल पागल था मैं, तुम्हारे चेहरे की उस मासूमियत को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था, भूल गया था कि उस मासूमियत के पीछे भी एक राज था। एक ऐसा राज जिसका सच तुम भी नहीं जानती थी।
तुमसे मेरी नजदीकियां इस कदर बढ़ गई थीं कि रात के ख्वाबों में भी तुम्हें अपने पास ही महसूस करता था। और जब सुबह आंखें खुलती थीं तो पता लगता था कि तुम तो हो ही नहीं। क्या वे इशारे थे कि तुम सच में मेरी जिन्दगी से उसी ख्वाब की तरह जाने वाली हो। शायद हां, और शायद नहीं भी... हां इसलिए क्योंकि तुम उसी ख्वाब की तरह मेरी जिंदगी से चली गई और नहीं इसलिए क्योंकि मेरा 'चुनाव' गलत नहीं हो सकता।
पता है, मैं बस इतना चाहता था कि हम दोनों के सामंजस्य का स्तर वहां तक पहुंचे कि एक-दूसरे की सासों में हम एक-दूसरे ने नाम की प्रतिध्वनि को सुन सकें। एक-दूसरे पर विश्वास की पराकाष्ठा कल्पनाओं की सीमाओं को भी पार करके एक नई ऊंचाई पर पहुंच सके। ऐसा प्रेम हो कि एक-दूसरे के सामने चुपचाप बैठकर भी मन के भावों की अनुभूति कर सकें। हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....
#क्वीन
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