पता है आज क्या हुआ, आज मेरी एक प्यारी सी छोटी बहन चाउमीन खा रही थी... चाउमीन तीखी होने के बाद भी वह खाती रही... मैं उसकी आंखों में देख रहा था, आंखों में आंसू थे पर वह खाना बंद नहीं कर रही थी... उसकी आंखों ने उस दिन की याद दिला दी जह मैंने पहली और आखिरी बार तुम्हारे साथ खाना खाया था... कितनी तीखी थी वह दाल...तुम भी 'तीखा' नहीं खा पाती थी लेकिन तुम्हें सबसे ज्यादा 'तीखा' ही पसंद था... याद है तुम्हें, उसी दिन हमने गोलगप्पे भी खाए थे... इतना 'रोने' के बाद भी तुम गोलगप्पे में और ज्यादा 'तीखी चटनी' डालने को कह रही थी। तुम्हारे आंसू गिरते जा रहे थे और तुम गोलगप्पे खाए जा रही थी...
वही एक दिन था जब मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू होने के बावजूद हंसी आ रही थी। वह तुम्हारी खुद को चुनौती देने की क्षमता थी या पागलपन, यह सब मुझे नहीं पता। मैं बस इतना जानता हूं कि तुम्हारी हर एक 'आदत' ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मेरी मोह्ब्बत को तुममें किसी ऐसे शख्स की तलाश नहीं थी जिसके साथ रहा जाए बल्कि मेरी मोह्ब्बत तो तुममें ऐसा शख्स खोजती थी जिसके बगैर रहा ही न जाए...लेकिन मुझे वह नहीं मिला... पर वह सख्स नहीं मिला, यह भी अच्छा ही हुआ... क्योंकि अगर वह मिल जाता तो उसी के साथ, उसी में खोकर सब कुछ भूल जाता... मुझे वह तो नहीं मिला लेकिन मेरे 'राम' मिल गए...उम्मीद से ज्यादा है मेरे लिए इतना... उनके लिए तो मेरे मन में तुमसे भी ज्यादा समर्पण है...
#क्वीन
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