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Thursday, August 11, 2016

हमारे रिश्ते की परिभाषा

वक्त ने हमारे रिश्ते की परिभाषा ही बदल दी..पहले दोस्ती , फिर प्यार और फिर अजनबी सा अहसास... बहुत खास था वह अहसास, जिसमें गुस्सा होने के बाद भी एक-दूसरे की परवाह होती थी, जिसमें बिना मिले एक-दूसरे से बात होती थी... यह सच्चा प्यार हो न हो लेकिन सच्चा रिश्ता तो था, एक ऐसा रिश्ता जिसमें एक-दूसरे के प्रति पुष्पित हुए लगाव को पल्लवित करके जीवनरेखा की पराकाष्ठा तक पहुंचाया गया हो। लेकिन शायद तुम इस बात को नहीं समझ पाई कि रिश्तों की डोर तब कमज़ोर पड़ जाती है जब इंसान ग़लतफ़हमी में उठने वाले 'सवालों' का 'जवाब' खुद बना लेता है। काश! तुम अपनी खामोशी को तोड़कर मुझसे बात कर लेती, काश! मैं अपने गुरूर को छोड़कर तुमसे बात कर लेता, काश! हम भ्रम के तिलिस्म को फोड़कर विश्वास का नया आधार स्थापित करते, काश! मैं तुमको तुमसे ही मांगता और तुम मुस्कुराकर कहती कि गौरव, कोई अपनी चीजें मांगता है क्या? पता है, कुछ लोग बड़े होने के वहम में अपनों को खो देते हैं और कुछ लोग बड़े होने के अहम में...काश! तुम यह बात समझ पाती और फिर मुझे भी यह समझा पाती... अगर यह बात हम दोनों को समय पर समझ आ जाती तो हम साथ होते...

हमसे जुड़ा हर एक किस्सा दिल में बसा है, उनको कागज पर आबाद कर रहा हूं... अब एकबार सोचकर देखो कि जब मैं उन किस्सों को नहीं भूल सकता तो तुम्हें कैसे भूल जाऊं? तुमको लेकर मेरा ख्याल कभी नहीं बदल सकता... मोहब्बत चेहरे से होती तो भूल भी जाता लेकिन क्या करूं यार मोहब्बत तो आत्मा से है...

प्रेम जब तन से होता है तो वासना होता है
प्रेम जब मन से होता है तो भावना होता है
और प्रेम जब आत्मा से होता है तो आराधना हो जाता है... अब अपनी आराधना को छोड़ कर पाप का भागी तो नहीं बन सकता मैं...

#क्वीन