तुम बस मेरे स्वप्नों में ही मेरी थी। यह बात समझने में मुझे 3 साल लग गए। क्या करता, तुम्हारे हर एक झूठ को सच मानकर उसी में जिए जा रहा था।
तुमको पता है मेरी ज़िन्दगी के हर एक हिस्से में , हर एक किस्से में बस तुम्हारी ही कल्पना तो बसती थी। लेकिन तुम्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि मैं तो तुम्हारे लिए बस एक 'विकल्प' था। क्या करता मैं? क्या कर सकता था मैं?
अंत में तुम मजहबी बहाने बनाने लगी और मैं अपनी कल्पनाओं के समंदर में डूबने लगा। कल्पनाओं की अट्टालिका बनाने में मुझे कुछ वक़्त तो जरूर लगा लेकिन खुश हूँ कि उस अट्टालिका की नींव से लेकर अंतिम छोर तक तुम सिर्फ मेरी ही हो...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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