उस दिन मैं तथाकथित मोहब्बत की इमारत यानी ताज़महल में था और तुमने फोन करके बताया कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी में 'वह' छोटा सा काम नहीं हो रहा है। मुझे ताज़महल पहुंचे मात्र 20 मिनट ही हुए थे और मैं तथा मेरे दो अन्य साथी 'दर्शन योजना' में लगे हुए थे। लेकिन तुम्हारी एक कॉल ने मेरा मानस ही बदल दिया। मैंने 50 कुतर्क किए उन लोगों से वापस चलने के लिए...
मैं तुम्हें एक बार और देखना चाहता था...सच कहूँ तो बार-बार देखना चाहता था। मैं भागकर यूनिवर्सिटी आया और अपने साथ उन दोनों को भी ले आया जिनका मेरी 'बेचैनी' से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। उसके बाद यूनिवर्सिटी में जो 'बवाल' किया था वह तो अद्भुत था। तुम्हारा काम तो हो गया लेकिन एक बात सच बताऊँ तुम्हें....वहां से वापस आते वक़्त मेरे ऊपर स्वार्थ हावी हो गया...
पता है, क्या सोच रहा था मैं.... मैं सोच रहा था कि काश तुम्हारा काम न करवाता तो एक बार और तुम्हें देखने का मौका मिल जाता... क्या करूँ यार... इंसान ही तो हूँ...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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