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Tuesday, December 20, 2016

तुम्हारी पहचान बन रहा हूं मैं

मैं तुम्हें कॉल करना चाहता था, मैं तुमको बताना चाहता था कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पा रहा, मैं आज तुमसे मिलकर तुम्हें फिर से वह पल याद दिलाना चाहता था जब तुम मेरी बाहों के आगोश में मेरी आँखों में आँखें डालकर कह रही थी कि तुम मेरे बिना नहीं जी सकती। लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता क्योंकि मैं तुम्हारी आँखों में आंसू नहीं देख सकता।

तुम्हारी आँखों में खुद को खोजने वाला एक पागल सा लड़का सिर्फ उसी एक लम्हे में तो तुमसे नजरें चुराता था। मेरी ज़िन्दगी के हर एक पन्ने पर मेरी माँ के बाद तुम्हारा नाम है, क्योंकि ना ही वो मेरा साथ निभा सकीं और ना ही तुम...

मैं तो पूजा और अजान के भेद को मिटाना चाहता था, मैं चाहता था कि नफरत के इस माहौल में मोहब्बत के फूल खिलें लेकिन वो सब मुमकिन नहीं था... मेरे राम के आगे मेरी कहाँ चलती... अच्छा ही हुआ! अगर तुम मिल गयी होती तो शायद सिर्फ मैं तुम्हें जानता और आज मैं तुम्हारी पहचान बन रहा हूं...
#क्वीन

तुम्हारे इंतजार की वो रात

सुबह 11 बजे पहुंचना था लेकिन रात भर आँखों को आराम नहीं मिला। आँखों को उम्मीद थी कि सुबह वो चेहरा उनके सामने होगा जिसकी लाली ने मेरी ज़िंदगी के अंधेरे को छांट कर गुलाबी कर दिया था।

सुबह 8 बजे ही यहाँ पहुँच गया था मैं लेकिन तुम नहीं आई। सोचा था आज जी भर के तुम्हें देखूंगा, मुद्दतों से इन आँखों ने तुम्हारी आँखों की बेरुखी नहीं देखी थी...
तुम्हारी आँखों की बेरुखी में भी खुद को खोजने की मेरी वो तमन्ना पूरी न हो सकी...

पता है, वहां बहुत से लोग तुमको पूछ रहे थे... कोई यह जानना चाहता था कि नाम क्या है तुम्हारा? तो कोई यह जानना चाहता था कि तुम वहां हो भी या नहीं... क्या बताता मैं? मेरी फितरत वादें तोड़ने कि नहीं है, तुमसे किया गया वादा याद था मुझे, बस इसलिए खामोश ही रह गया...
#क्वीन