कभी कभी कुछ ऐसा ही जाता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती। अपने शहर से हजारों किलोमीटर दूर, समंदर के किनारे बने उस होटल से मंदिर से आने के बाद हम सब घूमने के लिए निकले। समंदर के किनारे जब मैं तुम्हारी मोहब्बत के स्वप्न में कैद था तब तुम अपने भाई के साथ मुझसे 5 कदम की दूरी पर बैठी थी। क्या तुम कल्पना कर सकती हो कि मैं उस समय कैसा महसूस कर रहा होऊंगा। जिस इंसान को मैं अपने स्वप्नों में भी कभी इतने पास नहीं ला पाया था, वह मेरे सामने था। तुम तो शायद मुझे जानती भी नहीं थी।
तुम्हारी एक-एक हरकत को देखते -देखते कब 3 घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। और फिर जब तुम वहां से निकली तो मैं भी अपने भाई-बहन को जबरदस्ती वहां से चलने को कहने लगा। जिस होटल में मैं रुका था, तुम भी उसी के बाहर जाकर रुक गई, तुमने भी अपना डेरा वहीँ डाला था। और फिर अगले दिन तुम्हें 'नंदन-कानन' में देखा। फिर उसी शाम बीच पर....क्या कहता इसे? प्यार? नहीं...यह प्यार नहीं था... फिर क्या था? ईश्वर की योजना... और कुछ नहीं कह सकते इसे....
उस दिन के 2 साल के बाद उसी बीच पर एक-दूसरे का हाथ थामकर समंदर के जल की निर्मलता और अपने प्रेम की पावनता के मधुर मिलन को महसूस करने के स्वप्न की अट्टालिका का ही तो निर्माण किया था हमने। पर एक सच यह भी है कि स्वप्नों की अट्टालिकाओं को ढहने में समय नहीं लगता....
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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