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Saturday, July 2, 2016

उस 'लेकिन' का जवाब

हिंदी माध्यम से 8वीं तक की पढ़ाई के बाद लखनऊ में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू हुई। 10वीं के अंकों को देखकर बाबा को लगा कि अचानक अंग्रेजी माध्यम में आने की वजह से नंबर कम आए पर सच में गलती मेरी थी क्योंकि मैं अपने प्राथमिक दायित्व को महत्व देना लगातार कम कर रहा था। लखनऊ की हवा ही कुछ ऐसी थी...
हालांकि 10वीं में स्कूल में तो दूसरे स्थान पर रहा था लेकिन घर वालों को 80 प्रतिशत से अधिक की अपेक्षा थी। 12वीं में घरवालों ने अंग्रेजी की ट्यूशन करा दी। हर दिन ट्यूशन के बाद तुम्हारे घर के दरवाजे पर खड़े होकर घंटों तुमसे बातें करना और फिर जब तुम्हारे पापा के आने का समय हो तो वहां से दुखी मन से वापस चले जाना।
काफी आसान था सब कुछ लेकिन आज... हर एक शब्द में तुम्हें ही पिरोने की कोशिश करता हूं। मुझे पता है तुम वह सब जरूर याद करती होगी और उसे सोचकर तुम्हारे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती होगी। तुम्हें एक बात बताऊं,तुम्हारे बिना आज सब कुछ बहुत मुश्किल लगता है...ये दिन, ये रात, ये वक्त सब कुछ गुजर तो जाता है लेकिन गुजारा नहीं जाता....
काश! तुम मेरे साथ होती... मुझे पता है तुमने इसके जवाब में हर बार की तरह यही कहा होगा, 'गौरव, हूं मैं तुम्हारे साथ लेकिन....'
बस इस लेकिन का जवाब ही तो खोज रहा हूं आज तक...
‪#‎क्वीन‬

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