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Saturday, November 26, 2016

इन अल्फाजों की वजह

बसंत की उस प्यारी हवा सी चलती हुई तुम जब मेरे सामने आकर रुकती थी तो ऐसा लगता था कि चांद मेरे सामने आ गया हो... पता है ऐसा लगता था जैसे अषाढ़ की कड़ी धूप में मुुझे आम के पेड़ के नीचे जैसी छांव मिल गई हो। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता था कि तुम मेरे सामने आकर मुझसे नजरें क्यों नहीं मिलाती थी? तुम सामने से हमेशा नजर झुकाकर बात करती थी, क्या इसलिए क्योंकि तुम्हें पता था कि तुम्हारी आंखें मुझसे उस सच को नहीं छिपा पाएंगी जो कुछ महीनों में मूर्त रूप लेने वाला था?

तुम्हें बार-बार पाकर खोना थोड़ा अजीब लगता था और इसीलिए खुद-ब-खुद तुमसे दूर चला गया। तुम मेरी कमजोरी से अच्छी तरह से वाकिफ थी, तुम्हारे आंसू मुझे हर बार हरा देते थे लेकिन जब तुमसे दूर गया तो लगा कि अब हमेशा के लिए हार गया लेकिन गलत था मैं... उस दिन हारकर भी जीत गया था मैं... 

कोशिश करता था कि तुम्हें भूल जाऊं, तुम मेरी जिंदगी के हर लम्हे से चली जाओ लेकिन मेरा इरादा मेरी बेबसी से हमेशा हार जाता था। लोग कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। मुझे आज तक नहीं समझ आया कि आखिर तुमने मुझे खोकर क्या पाया लेकिन अगर मुझसे कोई यही सवाल करे कि मैंने तुम्हें खोकर क्या पाया तो? जानना चाहोगी ना तुम?
तो सुनो! मैंने तुम्हें खोकर खुद को पाया है... मेरे इन अल्फाजों में बसे दर्द की उत्पत्ति का पूरा श्रेय सिर्फ तुम्हें जाता है... मेरी जिन्दगी के सबसे हसीन और सबसे दर्दनाक लम्हों की वजह बस तुम ही थी, तुम ही हो और तुम ही रहोगी...
#क्वीन

तुम्हारी मजबूरी और मेरी बेबसी

आज अगर कोई पूछे कि उस रिश्ते से मुझे क्या मिला तो मैं बस चुपचाप अपनी आंखे बंद करके दिल में बसे कुछ 'लम्हों' को ही अपनी कमाई बता सकता हूं... कुछ टूटे से, कुछ बिखरे से और कुछ अधूरे लम्हें... उन लम्हों की सबसे खास बात पता है क्या थी? सपने तोड़ देने वाले उन लम्हों में उम्मीद की झलक हमेशा बनी रहती थी... उन टूटे सपनों में  तुम्हारी मजबूरी दिखती थी मुझे लेकिन मेरी बेबसी हमेशा तुम्हारी मजबूरी को हराकर मुझे एक उम्मीद दे जाती थी।

उस मंदिर में पीपल के पेड़ पर बांधे गए धागे की गांठ तुम्हारा नाम लेकर ही तो बांधता था... 'तुम कभी मुझसे दूर ना जाओ' यही तो मांगा था मैंने भगवान से और देखो आज मेरे दिल के साथ-साथ मेरे अल्फाजों में भी बस गई हो तुम... शब्द तो ब्रह्म का स्वरूप होता है, उसका आधार बनना इतना आसान तो नहीं होता... पर आसान काम मेरे राम मुझसे कराते भी कहां हैं...

बहुत कम लोग होते हैं जिनकी जरूरत और ख्वाहिश दोनों एक ही हो... उन चुनिंदा लोगों में मैं भी था जिसकी जरूरत और ख्वाहिश दोनों तुम ही थी और देखो ना मेरी ख्वाहिश कुछ इस तरह पूरी हुई कि जिंदगी भर के लिए तुम मेरे अल्फाजों में बस गई। मेरे दिल में दबी वो अनकही बातें, उन अल्फाजों के सहारे ही बाहर आती है और मेरी मासूम सी मोहब्बत इन अल्फाजों में मुस्कुराती दिखाई देती है। बस कोशिश ये है कि इन अल्फाजों को पढ़कर शर्म से लाल हुए अपने गालों को अपनी भूरी आंखों से शीशे के सामने खड़े होकर देखो तो तुम्हारे मासूम चेहरे के गुलाबी होठों पर भी मुस्कान तैर जाए...
#क्वीन 

दुल्हन बनने जा रही हो तुम

दुल्हन बनने जा रही हो तुम... अब किसी और के हाथों में होगा तुम्हारा हाथ... तुम्हारे सपने पूरे हो रहे हैं, उन सपनों को नई उड़ान मिल रही है... लेकिन क्या तुम्हें वह उड़ान याद है, जो हमने साथ मिलकर उड़ी थी? शर्मिंदा हो ना उस पर? जिस उड़ान के दौरान पंख ही टूट जाएं और परिंदा निढाल होकर जमीन पर गिर जाए तो शर्मिंदा होना तो बनता ही है... लेकिन अगर उसदिन तुम्हारे पर न टूटे होते और तुम न गिरी होती तो विश्वास मानो आज इन नए पंखों के साथ तुम इस उड़ान को न भर पाती...

हमने जिन पलों को साथ बिताया है, उन्हें याद करके शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं... क्योंकि मुझे पता है कि अगर तुम शर्मिंदा हुई तो तुम्हारी आंखों में आंसू आएंगे और जिन आंखों में मैंने अपने लिए बेपनाह मोहब्बत देखी है, उनमें आंसू आएं, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा...

बहुत बेरुखी दिखाई थी मैंने तुम्हें और तुमने वह बेरुखी मुझसे सीख ली और फिर उसे मुझ पर ही अजमाया... गलती तो मेरी ही थी... लेकिन मेरी बेरुखी की एक वजह थी... तुम्हारे अंदाज-ए-मोहब्बत ने मुझे मजबूर कर दिया था... हर दिन एक नया जख्म और फिर ख्याल रखने की हिदायत, मोहब्बत करते करते अपनी कद्र खो दी थी मैंने, मजबूरी हो गई थी बेरुखी करना... ऐतबार की वे कड़ियां, इंतजार की वे घड़ियां, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें और तुम्हारे वे अधूरे वादे... तुमसे जुड़ा सब कुछ मेरे लिए बेहद खास है... इन खास चीजों को मैं कभी खुद से दूर नहीं करूंगा... बस इतना सा ही वादा है और कुछ नहीं दे सकता मैं तुम्हें.... और हां! मैं अपने वादे कभी नहीं तोड़ता...
#क्वीन