उस दिन जा रही थी तुम... मुझे नहीं पता था कि तुमसे दोबारा कभी मुलाकात होगी भी या नहीं... चंद कदमों की दूरी पर था मैं तुमसे... तुमने तो शायद मुझे देखा भी नहीं था...एक पल को लगा कि जैसे सब कुछ हार गया हूं लेकिन... तुम्हारे 'लेकिन' की तरह ही मेरा भी एक लेकिन था लेकिन मेरा 'लेकिन' तुम्हारे लेकिन की तरह अवसादों में फंसा हुआ नहीं था... अगर उस दिन मैं खुद को हारा हुआ मान लेता तो मेरा 'लेकिन' भी तुम्हारे लेकिन की तरह ही हो जाता... हो सकता है कि तुमको या तुमसे जुड़े लोगों को लगता हो कि मैं हार गया लेकिन जहां से मैं देख रहा था वहां से सिर्फ मैं जीता था... क्योंकि जहां से मैं देख रहा था वहां से मुझे एक मासूम सी लड़की अपनी तथाकथित मासूमियत का दिखावा करते हुए उस इंसान से दूर जा रही थी जो दुनिया में उससे सबसे ज्यादा मोहब्बत करता था... वह एक ऐसे इंसान से दूर जा रही थी जिसने कभी तुमसे उस रिश्ते का नाम तक नहीं पूछा जो बेनामी की पराकाष्ठा को पार कर चुका था... उसे तो बस अपनी हर एक दुआ में तुम्हारी खुशी मांगने की आदत पड़ गई थी...कुछ पाने की चाहत में किसी 'अपने' से दूर जाना समर्पण, निष्ठा या लक्ष्य नहीं बल्कि खुदगर्जी कहलाता है...
पता नहीं तुम्हें कभी मेरी उस मोहब्बत का एहसास होगा या नहीं लेकिन मैं बस इतना जानता हूं कि अगर अब तुम कभी वापस आओगी भी तो भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि वह मोहब्बत तो कब की फासलों में फना हो गई...एक गलती मेरी भी थी... मैंने भी सफर-ए-जिंदगी में सिर्फ तुम्हारे लिए उनको भी नजरंदाज किया जो हासिल थे...
#क्वीन
#क्वीन