तुमसे मेरी बात नहीं होती थी क्योंकि मेरे पास तुमसे बात करने का कोई बहाना ही नहीं था। फिर उस दिन तुम्हारे हाथ में वह अंग्रेजी 'नॉवल' देखी। मुझे तब तक नहीं पता था कि अंग्रेजी में लिखी गईं प्रेम कहानियां कैसी होती हैं। बहुत हिम्मत करके तुमसे पहली बार बात की और कहा, 'प्लीज मुझे यह नॉवल दे दो, मैंने इसके बारे में बहुत सुना है लेकिन कहीं मिली नहीं।' मुझे तो यह भी नहीं पता था कि उस नॉवल को लिखा किसने है और तुम्हें एक सच और बताऊं मुझे आज भी नहीं पता कि वह नॉवल किसने लिखी थी। तुमने 2 दिन बाद मुझे उस नॉवल को देने का वादा किया और चली गई।
उस नॉवेल के शुरुआती 4 पेज पढ़ने के बाद मैं उसे आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि उसमें प्रेम जैसा तो कुछ था ही नहीं। मैंने को श्रीराम और श्रीकृष्ण को पढ़ा था। मैंने तो यह पढ़ा था कि प्रेम ईश्वर का रूप होता है और इसी कारण जब मिथिला के बगीचे में श्रीराम और मां सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा तो उनके मन में प्रेम प्रकट हुआ। अब प्रकट तो ईश्वर ही हो सकते हैं ना। लेकिन जब उस नॉवल में पढ़ा कि नायक 'fall in love with' नायिका, तो समझ में नहीं आया कि आखिर ये 'लव' में गिरा क्यों? धीरे-धीरे जब अंग्रेजी लव का प्रत्यक्ष रूप देखा, जो फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर देखकर शुरू होता था और चंद महीनों में बिस्तर तक आकर खत्म हो जाता था तो समझ में आया कि गिरी हुई हरकतों वाला 'लव' हमारे ईश्वरीय 'प्रेम' के सामने कहीं नहीं टिकता...
बस तभी से तय किया कि 'लव' नहीं प्रेम लिखूंगा... वह प्रेम जो मां गंगा के जल की भांति शाश्वत, निर्मल, निच्छल, पावन एवं पवित्र होता है। शारीरिक सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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Monday, August 15, 2016
तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती
हां, उस दिन भी 15 अगस्त ही था जब तुम उस मंदिर के बाहर स्कूल तक साथ चलने के लिए मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे तुम्हारे पास देरी से पहुंचना बहुत बुरा लगता था लेकिन क्या करता, सड़क पर चलने वाली बड़ी गाड़ियों ने मेरी छोटी सी बाइक को 'फंसा' लिया था। तुम चाहती थी कि कम से कम हम साथ चलकर कुछ पल एक साथ बिताएं लेकिन हमें उन पलों में छोटी सी कटौती करनी पड़ी। मैंने मंदिर के बाहर अपनी बाइक खड़ी की और फिर हम पैदल स्कूल की ओर जाने लगे। कई महीनों के बाद तुम्हारे साथ अकेले 10 मिनट बिताने का समय मिला था। उन 10 मिनटों में आजादी के उस दिन को बेहद खास तरीके से मनाया था हमने। ख्वाब बनाया था तुमने मुझे और मैं तुम्हारा साया बनने की कोशिश में था।
पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन
पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन
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