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Saturday, June 25, 2016

तुम्हारी वह पहली कविता

वह कविता जो तुमने लिखी थी, तुम्हारा कॉन्फिडेंस कितना गिरा हुआ था उस दिन। आखिर पहली कविता थी तुम्हारी। डर रही थी तुम कि किसी को पसंद आएगी भी या नहीं। पता नहीं कैसी थी तुम्हारी वह कविता। लेकिन आज एक सच बता रहा हूँ तुम्हें। तुम्हारी उसी कविता से प्रेरणा लेकर मैंने भी लिखना शुरू किया था। तुम्हारी तरह सधा हुआ तो नहीं लिख पाया पर जो मन में आता था वह लिख देता था।
सच में 'कुछ भी' लिख देता था और आज भी वैसा ही हूँ। तुम तो खुद में एक कविता थी और मुझे तो सिर्फ 'भाषण' देना आता था। आकाश और पाताल का अंतर होता है लिखने और बोलने में...
पर आज देखो, शायरी भी लिखने लगा लेकिन वो मेरी नहीं होती। हर एक शब्द में तुम ही तो बसती हो, सिर्फ तुम...
‪#‎क्वीन‬

मेरी पहली कविता

उस दिन जब तुमको अपनी पहली कविता भेजी थी, तो याद है तुमने क्या कहा था...गौरव, ये तो मेरी है...कुछ अपना लिखो...
मेरे जर्रे-जर्रे में बस तुम ही तो समाई थी, तुम्हारे सिवा कभी कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली। कैसे लिखता कुछ और? हर पल तुम्हारे ख्यालों में ही तो खोया रहता था। बहुत गुरूर था तुममें, मेरी लिखी हर चीज को अपना साबित कर देती थी। फिर अपनी 'उस' दोस्त को पढ़कर सुनाती थी कि देखो गौरव ने मेरे लिए क्या लिखा है।
तुमको लगता था कि मैं सब कुछ तुम्हारे लिए लिए ही लिखता हूँ सही सोचती थी तुम...लेकिन आज... आज तो अनजान लोग मेरी कहानी को खुद से जोड़ लेते हैं... कॉमेंट्स पढ़ती हो ना तुम... अब हमारी कहानी में तुम्हारी और मेरी जगह किन्हीं और लोगों ने ले ली है...कैसा लगता है तुमको?
‪#‎क्वीन‬