सबसे ज्यादा पढ़ी गईं पोस्ट

Wednesday, October 5, 2016

मेरा गुरूर

बहुत गुरूर था मुझे कि मेरी मोहब्बत जिस्म से नहीं बल्कि रूह से है लेकिन जब मोहब्बत अंबर तक जा पहुंची तो अहसास हुआ कि रूह से की गई मोहब्बत तो सिर्फ दर्द देती है। मैंने जो मोहब्बत की थी, उसकी सच्चाई की गवाही सिर्फ दो लोग ही दे सकते थे। एक तो वक्त और दूसरी तुम। वक्त का चरित्र तो गुजरना होता ही है लेकिन तुम्हारा चरित्र तो मुकरना नहीं था। तुम मुकर गई तो ऐसा लगा लगा कि जैसे तुम 'इच्छा' यानी ख्वाहिश की तरह थी। जो पूरी होने के बाद तुरंत बदल जाती है।

काश! तुम मेरे बंजर जिस्म पर शबनम की तरह पिघलती जाती और मैं प्यासी धरती की तरह समर्पण लिए तुममें खोता जाता। तुम्हारे नाम से मोहब्बत थी, तुम्हारे अहसास से मोहब्बत थी, तुम जिन लम्हों में मुझे अपना कहकर मुझ पर अपना अधिकार जताती थी उन लम्हों से मोहब्बत की थी, तुमसे मिलना तो महज एक ख्वाब हुआ करता था। 

तुमसे मिलने के लिए जिस शिद्दत से इंतजार करता था, सही मायनों में मैं उसी शिद्दत से तो मोहब्बत करता था। उस मोहब्बत में ना तो कोई हद थी और ना ही लालच... वहां था तो सिर्फ प्रेम शाश्वत प्रेम... वह प्रेम जिसके एक छोर पर मेरे राम थे तो दूसरे छोर पर तुम्हारे अल्लाह...
#क्वीन

No comments:

Post a Comment