कैसा रिश्ता था हमारा और कैसे थे हम... जब भी किसी 'छोटी' सी बात पर नाराज होकर झगड़ा करते थे तो 'मुझे मेसेज मत करो', 'मुझसे बात मत करो' जैसी बातें बोलकर ही घंटों बात कर लिया करते थे... और फिर जब सोने का समय हो जाए तो सब कुछ भूलकर फिर से सब नॉर्मल कर देते थे... तुमको पता है हम दोनों की सबसे अच्छी बात क्या थी? हम दोनों सिर्फ एक-दूसरे को चाहते थे, हमने एक-दूसरे से कभी कुछ नहीं चाहा... अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीकर कब हम दोनों हम से 'मैं-तुम' हो गए... तुम वह सब करने लगी जो तुम्हें अच्छा लगता था और मैं तो वह करता ही था जो मुझे पसंद था... हममें से किसी ने एक-दूसरे के लिए खुद को नहीं बदला.. आखिर बदलते भी क्यों? मोहब्बत में शर्तें कहां होती थीं...
एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती थी, जानती हो वह क्या थी? मैं जो करता था उससे किसी न किसी का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष फायदा जरूर होता था लेकिन तुम जो करती थी उससे सिर्फ तुम्हारे भविष्य का नुकसान था... इसमें परेशान करने वाली बात यह थी कि तुम सब कुछ जानते हुए भी वही करती जा रही थी जो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं था... तुम कहती भी थी कि हां गौरव, मैं जानती हूं कि यह मेरे लिए ठीक नहीं लेकिन... इस लेकिन के आगे तुमने कभी कुछ नहीं बताया... 'लेकिन' के मायने कितने बड़े होते हैं यह तुम्हारे उस 'लेकिन' ने ही बताया था...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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