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Tuesday, August 16, 2016

बहुत पसंद थी ना तुमको...

उस दिन तक मैं अपने दिल की बात तुमसे इसलिए नहीं कह पाया क्योंकि मुझे डर था कि कहीं तुम मुझे गलत न समझ लो। तुम पहली और आखिरी इंसान थी जिसके साथ अपने पूरे जीवन को व्यतीत करने का स्वप्न मैंने देखा था। तुम मेरे सामने आती थी तो ऐसा लगता था मानो किसी निपुण और पारंगत मूर्तिकार ने खुद अपने हाथों से किसी संगमरमर को तराश कर जीवित मूर्ति का निर्माण किया हो। तुमसे मिलने से पहले मेरे जीवन में कुछ खोखलापन सा था, एक अजीब सा खालीपन था, जिसे उसदिन तक मेरे अलावा किसी ने महसूस नहीं किया था। और जब तुमसे मुलाकात हुई तो सब बदल गया। तुम्हारे ख्यालों ने ही मेरी जिंदगी के खालीपन को भर दिया।

अपनी जुबान पर तो नियंत्रण रख सकता था लेकिन आंखों पर कैसे रखता? जिस एक चेहरे को देखने के लिए घंटों इंतजार करता था, उसके सामने आने के बाद कैसे अपनी आंखों को चुराता...तुम्हें पता लग ही गया कि मेरे दिल में क्या था...हमने एक-दूसरे से बात करने के लिए उस 'नॉवेल' का सहारा लिया... तुम जानती हो ना कि मुझे प्रेम कहानियां पढ़ने में कोई रुचि नहीं... लेकिन तुम्हें थी और इसीलिए मुझे इसका सहारा लेना पड़ा... तुम्हें दूसरों के द्वारा अंग्रेजी में लिखी गईं 'मनगढ़ंत' प्रेम कहानियां बहुत पसंद थीं ना...और देखो आज तुम्हारी 'सच्ची' प्रेम कहानी को सब पढ़ रहे हैं...सब पसंद कर रहे हैं...खास बात यह है कि इसे पढ़ने के बाद अब लोग यह कहने की स्थिति में नहीं है कि 'प्रेम कहानियां' सिर्फ आईआईटी या आईआईएम वाले ही लिख सकते हैं...
#क्वीन