2 साल पहले... सुबह का 5 बजकर 30 मिनट...
'क्वीन ऑफ़ हिल्स' यानी मसूरी की पहली सुबह, जगमगाती पहाड़ियों के बीच रात भर घूमने के बाद की थकावट के बीच यशश्वी सूर्य की लालिमा के दर्शन से पूर्व तुम्हारे चेहरे की लालिमा याद आ गयी। काश! तुम मेरे सामने होती। बस यही उस दिन भी सोच रहा था। तुम हमेशा से मेरी अपेक्षाओं को पूरा करती रही हो। और उस दिन भी तुम मेरी कल्पनाओं के आकाश में मेरा ही हाथ थामकर उड़ने लगी।
यथार्थ और कल्पना, एक बारीक सा अंतर है इसमें। कहते हैं, अपनी कल्पनाओं को साकार करने का यदि संकल्प कर लिया तो विश्वास मानिए, आप यथार्थ में ही हैं। मेरे पास मेरी कल्पनाओं का खुला आकाश भी था, उन्हें साकार कर तुम्हारे साथ खुलकर आकाश में उड़ने का संकल्प भी था, लेकिन फिर भी मैं यथार्थ तक नहीं पहुंच पाया। पता नहीं क्यों?
लेकिन एक बात तो पता है मुझे... परमपिता परमेश्वर हमसे ज्यादा हमारी चिंता करता है, और तुमसे जुड़ा हर एक लम्हा आज मेरे इस विश्वास को और ज्यादा मजबूत कर देता है।
#क्वीन