मेरा घर तुम्हारे घर से 41 किलोमीटर दूर था और तुम्हारे घर से एग्जामिनेशन सेंटर 30 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर। 27 दिसंबर की रात को 9 बजे तुमने मेरा आग्रह स्वीकार किया कि अगले दिन तुम एग्जाम देने मेरे साथ चलोगी। 28 दिसंबर की सुबह 8:45 तक सेंटर पर पहुंचना था। मैंने सोचा कि सुबह 5:30 तक निकलूंगा और तुमको लेते हुए, समय पर परीक्षा केन्द्र पहुंच जाऊंगा। कहीं निद्रा देवी और आलस्य अपने आगोश में न ले लें इसलिए रात में सोने का प्लान भी कैंसल कर दिया।
हां, रात के 12:30 बजे थे और निद्रा देवी मुझ पर हावी होने का भरसक प्रयास कर रही थीं। उन्हें हारना ही था क्योंकि उनकी 'स्वाभाविक' जीत से ज्यादा जरूरी तुम्हारे विश्वास की जीत थी। सोचा कि थोड़ा सा छत पर घूम लेता हूं। लेकिन जब छत पर पहुंचा तो माहौल कुछ और ही बयां कर रहा था। एक कदम आगे रखी चीज भी नहीं दिख रही थी। भयंकर ठंड और विज़बिलिटी का स्तर शून्य... मैं समझ गया कि अगर सुबह भी ऐसी ही स्थिति रही तो परीक्षा नहीं दे पाऊंगा और ना ही तुम्हारे पास आ पाऊंगा।
बस उसी समय मैं तुम्हारे घर के लिए निकल गया था। 4 घंटे में 40 किलोमीटर की दूरी तय करके 5 बजे मैं तुम्हारे घर के नीचे था। उस दिन मेरी बाइक साइकल से भी धीमे चली थी। उन 4 घंटों में मुझे कम से कम 400 बार यह ख्याल आया होगा कि मैं तुम्हारे घर नहीं पहुंच पाऊंगा लेकिन ईश्वर ने मेरा साथ दिया और मैं पहुंच गया। पूरे 1 घंटे तक नीचे खड़े होकर तुम्हारा इंतजार किया। ठंड में बुरी तरह से कांप रहा था मैं... फिर तुम आई और जो शॉल तुमने ओढ़ कर रखी थी उससे मेरे शरीर को ढक दिया। शॉल तो काफी हल्की थी लेकिन सच में उस गर्माहट को फिर कभी महसूस नहीं कर पाया... काश! सिर्फ एक बार तुम उस पल को दोबारा से महसूस करा देती....
#क्वीन
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