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Sunday, August 7, 2016

.बस तरीका बदल गया...

और फिर जिंदगी अपने रास्ते पर चल पड़ी... तुमने वक्त समझकर मुझे गुजार दिया और मैं तुम्हारे साथ बिताए हर एक लम्हे को अपनी कल्पनाओं के सागर में डूबकर जिंदगी माने हुए आज भी जी रहा हूं। जब भी कुछ लिखता हूं और वह तुम तक पहुंचता है तो उसमें कुछ भी ऐसा नहीं होता जो बहुत खास हो लेकिन मेरे और तुम्हारे लिए उसका हर एक शब्द बेहद महत्वपूर्ण होता है। अनुभव और अनुभूति के इस अनूठे संगम को लिखने की क्षमता होना आसान नहीं है, मैं अपनी ही तबाही पर 'वाह-वाह' सुनता हूं।

तुम्हारे हर एक लफ्ज के हजारों मतलब निकालता था मैं...और कर भी क्या सकता था, बातें ही अधूरी करती थी तुम... और पता है आज भी कोई है जो मेरी ही तरह तुम्हारी अधूरी बातों के अलग-अलग मतलब निकालकर रात-रात भर जागता है... मैं उसे नहीं समझा सकता...मैं उसे नहीं रोक सकता... तब मुझे भी कहां कोई समझा पाया था...मुझे भी कहां कोई रोक पाया था, वह सब करने से... जुनून, हौसला, पागलपन सब कुछ वैसा ही है...बस तरीका बदल गया है... जिंदगी जीने का, पर लक्ष्य वही है...