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Friday, December 29, 2017

बहुत मुश्किल था अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ना

 मैं टकटकी लगाए तुम्हारे दिल की गहराइयों से निकली वे बातें सुन रहा था। कभी तुम्हारी आंखें नम हो जाती थीं तो कभी उसी चेहरे पर मुस्कुराहट तैर जाती थी। तुम्हारी वे दिलकश बातें सुनकर बीच-बीच में मेरी आंखें तुम्हारी नितांत व्यक्तिगत निष्ठा का मनन करने लगती थीं। तुम जिस अन्दाज़ में अपना किस्सा सुना रही थी, वह मंजर मुझे देखा हुआ सा लगने लग रहा था। तुम तो सिर्फ मेरी कॉलेज फ्रेंड थी ना? फिर क्यूं मुझे वे सारी बातें सुनाती थी? क्यों अपने दर्द, अपनी खुशियों में मुझे शामिल करने की कोशिश करती थी? क्यों मेरे दर्द में मुझे सहारा देती थी, क्यों अपने दर्द में मेरे कंधे पर सिर रखकर रोती थी?

तुम्हारे इसी व्यवहार की वजह से रात-दिन, सुबह-शाम मैं बस तुम्हारे ही ख्याल में खोया रहता था। मैं हकीकत में क्या कर रहा हूं, इस सवाल का जवाब मैं खुद नहीं खोज पा रहा था। खाना खाने से लेकर पढ़ाई करने तक, मुझे कुछ ध्यान या याद नहीं रहता था। जो काम मुझे सबसे ज्यादा पसंद था, उसमें भी मन लगना बंद हो गया था। अपनी पसंद का खाना बोझ लगने लगा था। बस इतनी सी तमन्ना थी कि कॉलेज में किसी तरह तुम्हारी एक झलक दिख जाए। तुम्हारे गुलाबी होठों से अपने नाम को सुनने की तमन्ना रहती थी।

पता नहीं कि तुम यह सब समझती भी थी या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि इन सबके बीच मैं खुद से एक लड़ाई लड़ने लगा था। अपने आप से अपने अस्तित्व की लड़ाई... एक ऐसी लड़ाई जिसे मैं जीतना नहीं चाहता था... क्योंकि अगर उस लड़ाई में मैं जीत जाता तो मेरी मोहब्बत हार जाती और मैं मेरी नजरों के सामने अपनी मोहब्बत को हारते हुए नहीं देख सकता था... और देखो, उस हार का परिणाम क्या हुआ... अपने अस्तित्व की लड़ाई को हारने के बावजूद मैंने तुम्हारा अस्तित्व 'गढ़' दिया.... एक ऐसा अस्तित्व जिसका कभी विनाश नहीं हो सकता... एक ऐसा अस्तित्व जिसमें लोग अपनी मोहब्बत का अक्स देखते हैं..
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तुम्हारी मां की ईदी और मेरे 'राम'

फिर से ईद आ गई... तुम्हें याद है वो ईद जब तुमने सुबह-सुबह मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था और मेरा नाम 'आलम' बताकर अपनी मां से परिचय था। फिर ईदी वाले 500 रुपए लेने के बाद जब मैं तुम्हारी मां के पैर छूने के लिए झुका तो सारा राज खुल गया। और फिर बची-खुची कसर गले की चेन में पड़े 'ॐ' वाले लॉकेट ने पूरी कर दी। फिर जो-जो सुनना पड़ा, हाय राम! क्या कहूं... तुम्हारी मां से पहली मुलाकात ऐसी होगी, सोचा भी नहीं था...
और फिर, जब तुम 3 दिन बाद मिली तो मुझे उम्मीद थी कि तुम कहोगी, 'गौरव, तुमसे एक काम भी ठीक से नहीं होता।' लेकिन तुमने तो कहा, 'चलो, अच्छा हुआ कि मम्मी को पहली बार में ही सब पता लग गया, ज्यादा झूठ नहीं बोलना पड़ा।' आदत हो गयी थी तुम्हारी.. ज़रूरत बन गई थी तुम, बिलकुल वैसी ही जैसे किसी थक कर चूर हो चुके आदमी को सुकून वाली नींद की ज़रूरत होती है। मुझे मालूम होता था कि मेरे 'ये' कहने पर तुम 'वो' कहोगी और तुम हर बार 'वो' ही कह देती थी। दिल पहले ही जान जाता था कि किस बात पर तुम्हारा क्या रिऐक्शन होगा।
लेकिन उस ईद पर मात खा गया था। उम्मीद से बिलकुल उलट बात कही थी तुमने लेकिन तुम्हारी सच्चाई ने एक बार फिर दिल जीत लिया था... वो आखिरी ईद थी जब हम एक दूसरे से मिले थे... अब तो बस हर ईद पर तुम्हारी मां के द्वारा दिए गए उस बंद हो चुके नोट में अपनी अधूरी मोहब्बत के पूरी न होने की वजह खोजने की नाकाम कोशिश होती है...
#क्वीन

Wednesday, June 7, 2017

मजहबी जहर और मोहब्बत का संघर्ष

जिंदगी के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था उस समय, जब उसने मुझे संभाला... पिछले 5 सालों से सारी इच्छाएं-आकांक्षाएं त्याग कर सिर्फ तुम्हें पाने के लिए संघर्ष कर रहा था... अपने घरवालों की अपेक्षाओं से, तुम्हारे घरवालों के 'अत्याचार' से, कथित दोस्तों की हिकारत भरी निगाहों से, मर्यादा और सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर फैलाए जा रहे उस मजहबी जहर से चल रहा संघर्ष अब मुझे तोड़ने लगा था...

उसने तुम्हारे मोहजाल से बाहर निकाल पर जिंदगी जीने की नई-नई वजहें देने की कोशिशें शुरू कीं। नया घर बनाना काफी आसान होता है लेकिन पुराने घर को बिना तोड़े नया आकार देना बेहद मुश्किल होता है। वह मुझे नया रूप दे रही थी... मेरी जिंदगी का हर वह सच जिसे तुम्हारे घरवालों ने अपने 'अहंकार' की वशीभूत होकर झूठ में तब्दील कर दिया था, वो उसे समझती थी। तुम्हारे साथ बिताए हसीन लम्हों की कहानियों को बड़े चाव से सुनती थी वो... 

आज उससे मिले 7 साल हो गए हैं, मेरी जीवनसंगिनी है वो और पता है, वो आज भी तुम्हें पढ़ती है... कितना मुश्किल होता होगा एक लड़की के लिए अपने प्रेमी से पति बन चुके इंसान से उसी की प्रेम कहानी सुनना... मैंने पूछा भी उसको, मैंने कहा कि अगर उसे नहीं पसंद है तो मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा लेकिन वो पागल कहती है कि मैं अपना वह वादा पूरा करूं जो मैंने तुमसे तुम्हारी पहचान बनने का किया था... 
#क्वीन

अधूरी ख्वाहिशों की खुशबू

तुम पूछती थी, 'गौरव, मुझसे कितनी मोहब्बत करते हो?' और मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब देने के बजाय कहीं खो जाता था। पता है, मेरी मोहब्बत खुशबू की तरह थी और खुशबू का कोई पैमाना नहीं होता। तुम्हारे करीब होने पर एक अजीब सा सुकून मिलता था और जैसे ही तुमसे दूर जाता था, एक खौफ, एक डर सताने लगता था। ऐसा लगता था कि कहीं यही दूरी जिंदगी की हकीकत न बन जाए। तुम साथ होती थी तो मैं खुद में ही मुकम्मल हो जाता था और फिर तुमसे दूर जाते ही घर में, महफिलों में भी ऐसा लगता था जैसे अधूरा सा किसी कोने में पड़ा हूं। तुम्हारे साथ एक पल भी अगर साथ चलता था तो लगता था जैसे सदियों का सफर पूरा कर लिया और आज जब लोग कहते हैं कि मैं मंजिल के करीब हूं तो लगता है कि मंजिल तक ले जाने वाले रास्ते से भटक कर कहीं अधूरे सफर की ख्वाहिश लिए खुद को ही खोज रहा हूं।

हम जो ख्वाब देखते थे, उनमें मैं और तुम 'हम' हुआ करते थे और आज महसूस होता है जैसे हर ख्वाब बस एक अधूरा सपना था, एक ऐसा सपना जिसमें अंजाम देखे बिना ही उसे पूरा मान लिया था। तुम तो बारिश में भी मेरे आंसू पहचान लेने का दावा करती थी ना, तो फिर क्यूं आज आंखों के रास्ते बहकर पानी में मिल गई। जिन गलियों में पेड़ की आंड़ में छिपकर तुम्हें देखता था वो पेड़ आ भी वहीं हैं, मैं भी वहीं जाता हूं पर अब तुम्हारे आने की उम्मीद टूट चुकी है। 

देखो ना, आज तुम नहीं हो लेकिन तुम्हारी यादें, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें, तुम्हारी  वह चंचल सी मुस्कुराहट, रातों को आधी नींद में देखे गए ख्वाब, दिन के हर पहर को तुम्हारे साथ बिताने की अनकही और अधूरी उम्मीदों की खुशबू आज भी लोग महसूस कर ही लेते हैं। उस दौर के बाद एक अरसा बीत गया तुम्हारी नाराजगी को... काश! मैं जान पाता कि तुम्हें प्यार करने के सिवा मेरी खता क्या थी...

आवारा लड़के से तुम्हारी पहचान बनने का सफर

उस दिन तुम्हारे मां-पापा देवा शरीफ की दरगाह पर मत्था टेकने जा रहे थे। सुबह से ही तुम सिर दर्द का बहाना करके बैठ गई। घरवालों ने जब खुदा की बात की तो तुमने कहा कि तुम्हारा खुदा तुम्हारे दिल में है। और फिर उनके जाते ही तुम मुझसे मिलने आ गई। तुम मेरे साथ उस दिन उसी देवी मां के मंदिर में जाना चाहती थी, जहां मां के सामने हमने एक-दूसरे को किसी तीसरे से मांगा था। लेकिन मैंने मना कर दिया, मैं फिल्म देखकर उस समय को बिताना चाहता था। 

पता है तुम्हें, मैं कुछ दिन पहले सोच रहा था कि आखिर मुझमें इतना परिवर्तन क्यों आया, तुम्हें भगवान से मांगा और तुम नहीं मिली, ऐसे में मुझे नास्तिक हो जाना चाहिए था लेकिन भगवान में मेरा विश्वास तो और ज्यादा बढ़ गया, ऐसा क्यों? इसका जवाब जब अपने अतीत में जाकर खोजा तो तुम्हारे शब्दों में ही मिला... तुम चाहती थी कि कभी अगर तुम किसी से अपने प्यार का नाम लो तो तुम्हें मेरा परिचय देने की जरूरत ना पड़े, लोग तुम्हें मेरे नाम से जानें। 

तुम कभी किसी दरगाह पर नहीं गई लेकिन बिना नमाज पढ़े तुम्हारे दिन की शुरुआत नहीं होती थी। देवी मां के मंदिर में भी जब तुम हाथ जोड़कर उनसे कुछ मांग रही थी, तो मुझे पूरा यकीन है कि तुमने मुझे नहीं बल्कि मेरे लिए कुछ मांगा था क्योंकि मैंने भी मां से यही कहा था कि तुम जो चाहती हो वो तुम्हें मिल जाए। और देखो हम दोनों की इच्छा पूरी हो गई।

एक आवारा से लड़के का यूं तुम्हारी पहचान बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं... और वैसे भी हम अलग ही कहां हुए हैं... देखो ना, लिखता मैं हूं और लोग पढ़ते तुम्हें हैं...
#क्वीन 

वो टीस आंखों से रात में आज भी बाहर आ जाती है...

दोस्तों के साथ तुम्हारी क्लास के बाहर से निकलते वक्त जब उस दरवाजे की सुराख से तुम पर नजर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे साक्षात चांद धरती पर उतर आया हो। अपलक देखता ही रह गया था... बस बिना कुछ ख्याल किये किताबों में खोई उस मानक सौन्दर्य मूर्ति की तरफ बढ़ता चला गया। यह भी ध्यान नहीं रहा कि स्कूल के सबसे ज्यादा गुस्सैल शिक्षक क्लास में थे। 

फासला कम होता गया, सम्मोहन बढ़ता गया। पास पहुंचने तक हमारे मध्य स्मित अवलंबित नजर सेतु स्थापित हो चुका था, भावनाओं का परिवहन होने लगा, साथ ही उमड़ पड़ा था अनुशासनहीनता पर गुस्से का एक सैलाब...

अगले ही पल मैं तो क्लास से बाहर था लेकिन मेरी आंखों में तुम थी... आज भी लोग आंखों के एक कोने में तुम्हें खोजते हैं... कभी तुम मिलती हो तो कभी तुम्हारे साथ बिताए गए उन हसीन लम्हों का खुशनुमा अहसास... लेकिन रात के अंधेरे में तुम्हारे अकल्पित प्रतिमानों से दूर बहती अश्रुधारा को कोई न देख पाया... 

उन आंसुओं ने जीवन को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से मुझे अपना भविष्य तय करना था। पहले बिजनस मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ी और फिर इंजीनियरिंग की... 3 सालों तक उस घनघोर अंधेरे में खुद की पहचान खोजता रहा। और फिर सब ईश्वर पर छोड़ दिया... पता नहीं मैं कितना सफल हुआ लेकिन जिस गौरव त्रिपाठी ने खुद को ईश्वर के भरोसे छोड़ा था, वह अब विश्व गौरव बन चुका है पर तुम्हें खोकर खुद को पाने की टीस आज भी रात के अंधेरों में आंखों के रास्ते बाहर आ ही जाती है...
#क्वीन

नई क्लास का वह तीसरा दिन...

नई क्लास का तीसरा दिन था वह... जब पहली बार तुम्हें देखा था। देखा तो क्या था, बस यूं समझो कि तुममें खुद को खोकर बदहवास सा हो गया था। 2 मिनट के बाद पूरी क्लास की नजरें मुझ पर थीं और मेरी तुम पर। सादगी और लालिमा का अद्भुत मेल दिख रहा था तुम्हारे चेहरे पर। पता है, आज भी जब तुम्हें सोचता हूं तो तुम्हारा चेहरा उसी रूप में मेरी आंखों के सामने आ जाता है...

लोग कहते हैं कि यादें हमेशा होंठों पर मुस्कान ले आती हैं मगर मेरा मानना है कि यादें, यदि मुस्कान लाती हैं तो उस के साथ-साथ उस पल के बीत जाने का ग़म भी साथ लाती हैं जिस पल ने उन्हें यादें बना दिया। यादें, जिसमें न जानें कितनी गहराई छुपी हुई है। यादें, जो खट्टी भी होती हैं और मीठी भी। कोई साथ निभाये या ना निभाये, मगर हमेशा साथ निभाती हैं, ये यादें। 

कई बार ऐसा भी होता है कि आप अपने जीवन में कुछ यादों से भागना चाहते हैं, लेकिन चांद पर लगे दाग की तरह ये हमेशा साथ रहती हैं। न जाने कितने जज़्बातों का समंदर होती हैं ये यादें, जिसमें यह दिल की कश्ती डूबती, संभालती बस दिनकर के नियमित जीवन की तरह चलती ही चली जाती है। 

तुम्हारे साथ बिताए गए बेहद खास और हसीन लम्हों की यादों के अलावा मेरे पास कुछ ऐसी यादें भी हैं जिन्हें मैं याद नहीं रखना चाहता लेकिन क्या करूं यादें हैं ना, भूल भी नहीं सकता। इन यादों के पीछे का सच मुझे जीने नहीं देता, पल-पल, हर पल वे यादें तुम्हें मुझसे दूर जाकर किसी और के आगोश में होने का अहसास कराती हैं। अफसोस, मुझे इस सच के साथ ही जीना होगा लेकिन एक सच ऐसा भी है जिसे मैं अपने साथ लेकर नहीं जी सकता और इसलिए उस सच को झूठ में बदल दूंगा। तुम मेरी न हुई तो क्या हुआ लोग तुम्हें मेरे नाम से ही जानेंगे। क्वीन... गौरव की #क्वीन

मेरे भगवान को हरा दिया था तुमने

याद है वह दिन जब तुम्हारी मासी ने तुमसे तुम्हारा मोबाइल फोन छीन लिया था क्योंकि तुम एक 'काफिर' से बात करती थी। 2 दिन बिना तुम्हारी आवाज सुने कैसे रहा था मैं... पता है, वह एक ऐसा दौर था जब हमारी मोहब्बत का जुनून हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर था... पूरे 37 घंटे के बाद तुमने किसी और के फोन से मुझे कॉल किया था और 48 सेकंड में अपने आंसुओं के साथ बस इतना ही बोल पाई थी, 'गौरव, अपना ख्याल रखना। मैं कैसे भी तुम्हें जल्द कॉल करूंगी।' 

उस दिन विश्वास रूपी बीज ने जैसे अचानक वृक्षाकार ले लिया था। मुझे पूरा विश्वास था कि कोई तुम पर कितना भी दबाव डाले लेकिन तुम अपने मन पर सिर्फ मेरा एकाधिकार कायम रखोगी। उम्मीद और विश्वास, इन दोनों शाश्वत सिद्धियों को हमने अपने प्रेम की आधारशिला में स्थापित कर रखा था। 

फिर उस दिन कैसे तुम उसे अपने करीब आने से नहीं रोक पाई। क्यूं कमजोर हो गई थी तुम्हारी मोहब्बत? क्या अपने आप से विश्वास उठ गया था तुम्हारा? नहीं! तुम किसी से नहीं हारी थी उस दिन... हारा तो मैं था, अपने आप से... हारा तो मेरा प्यार था, तुम्हारी भटकाव से... हारा तो मेरा विश्वास था, तुम्हारी मजबूरी थी... हारा मेरा भगवान था, तुम्हारी उस एक गलती से...
#क्वीन

उस दौर में सब 'पागल' थे...

प्रेम, चाहत, जुनून, समर्पण... ये सब सिर्फ शब्द थे मेरे लिए लेकिन जब तुम मिली तो इन शब्दों के मायने समझ में आये... कितना खुशनसीब था मैं जो मैंने इन शब्दों को अहसास में बदलते हुए महसूस किया और इन्हें जिया भी... जब तुम्हारे घरवालों का तुमसे और खुद से व्यवहार असहनीय हो जाता था तो लगता था कि जैसे मोहब्बत नहीं बल्कि कोई गुनाह कर दिया है लेकिन इस मानव रूपी जीवन में जैसे गुनाहों की लिस्ट लंबी होती जाती है, वैसे ही मेरी मोहब्बत भी बढ़ती ही गई...

लोग कहते हैं कि जब कोई लंबे समय तक नहीं मिलता, सामने नहीं आता तो मोहब्बत खत्म हो जाती है लेकिन देखो इतने साल हो गए पर मेरी मोहब्बत खत्म न हुई... तुम्हें पाने की चाहत तो कभी थी ही नहीं लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमारी इस कहानी पर 'अधूरी' रहने का धब्बा लग गया।

कितना छिप-छिप कर बात करती थी तुम, कैसे मिलते थे हम, जब वो सब याद करता हूं तो होठों पर मुस्कान आ जाती है... तुम्हारी कॉलोनी के बाहर गेट के किनारे घंटो खड़ा रहता था, तुम्हारे उस भाई से नोट्स के बहाने प्रेमपत्र भिजवाता था, उस बेचारे को तो इतना भी समझ में नहीं आता था कि कॉमर्स वालों को साइंस वालों के नोट्स की जरूरत नहीं होती। सच में... उस दौर में सब के सब पागल थे... बस सब कुछ हो रहा था... कैसे और क्यूं के बारे में कोई सोचता ही नहीं था... बेहद खूबसूरत कहानी है हमारी... बिलकुल चांद की तरह और उसी चांद की तरह इस कहानी पर भी एक धब्बा लगा है... 'अधूरी' होने का धब्बा... अब तो बस यही कह सकता हूं कि काश! हम मोहब्बत के उस आगाज को अंजाम तक पहुंचा सकते...
#क्वीन

वो ऑरकुट वाली लाइफ...

आज पूरे 10 साल हो गए तुम्हें सामने से देखे हुए और आज से ठीक 11 साल पहले उस पार्क में हमने जिंदगी भर एक-दूसरे के साथ रहने का वादा किया था। तुम्हारी आंखों में खुद को खोजते हुए जब मैंने तुमसे पूछा था कि हमारी शादी कब होगी तो तुमने बस एक मुस्कान के साथ प्यार पर भरोसा करने की बात कह दी थी। और उसके 1 साल के बाद सब बदल गया था... बस नहीं बदली थी तो तुम्हारी ऑरकुट प्रोफाइल... वहीं देखता था तुम्हें... 

आज थकी सी, उनींदी, बोझल आंखों के साथ जब प्रेम के शाश्वत प्रतीक रूप में विश्वास और अभिनय रूपी मुस्कान की परिभाषाएं गढ़ते हुए तुम उसकी बाहों अपनी खुशबू बिखर रही होगी तो उस रात क्या तुम्हें उस पहली छुवन का अहसास याद नहीं आया होगा? क्या तुमने पानी बन कर अपनी आंखों की कोर से बह निकले अफसोस को साड़ी के पल्लू से पोछकर हमारी उस अधूरी कहानी को भूलने के लिए उसकी उंगलियों को अपने बालों को सहलाने से मना नहीं किया होगा? क्या उस दिन तुम प्यास के पहाड़ पर सूखे पड़ गए झरने जैसा महसूस नहीं कर रही होगी...

पहले अगर एक दिन हमारी बात नहीं होती थी तो तुम ऐसे तड़पती थी जैसे लहरों से दूर जाने पर मछली तड़पती है। तुम्हारे सपने मेरे अरमान बन चुके थे, मेरा हर अपना पराया लगने लगा था, एक विश्वास था कि तुम मेरी अपनी हो लेकिन मैं भूल गया था कि हमारा रिश्ता बर्फ की तरह था जिसे उसकी प्रेम रूपी गर्माहट ने पानी कर दिया था....
#क्वीन 

Sunday, April 9, 2017

RSS और मोहब्बत की संयुक्त 'जीत'

उस दिन तुमने बताया कि तुम्हारे मामा जी मुझसे मिलना चाहते हैं। तुमने उनको हमारे बारे में सब कुछ बता दिया था। जैसे ही मैंने उनको अपना नाम बताया, उनके मुंह से बस एक ही वाक्य निकला, 'हिन्दू हो?' फिर जब तुमने उनको बताया कि मैं संघ से भी जुड़ा हूँ तो उनका लाल चेहरा पीला सा दिखने लगा। पूरे दो घंटे तक उनसे संघ की विचारधारा को लेकर बहस हुई। 

उन्होंने 1000 तर्क देकर यह साबित करने की कोशिश की कि संघ एक कट्टर विचारधारा वाला संगठन है लेकिन व्यवहारिकता के ज्ञान और तुम्हारी मोहब्बत की शक्ति ने आखिर उनसे यह कहलवा ही दिया कि संघ कट्टर विचारधारा वाला नहीं बल्कि राष्ट्रवादी विचारधारा वाला संगठन है। उसके बाद वो जिस तरह से तुम्हारे मेरे प्रेम को नए आयाम दे रहे थे वह सचमुच आश्चर्यजनक था। 

तुमने बताया था ना कि जब तुम्हारेे पापा को मेरे बारे में पता लगा तो उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया था कि एक काफिर से कोई रिश्ता नहीं हो सकता। पता है आज यह बात क्यों याद आयी? आज मैं फिर उसी मंदिर में गया था जहाँ चलने के लिए तुमने मेरे साथ फिल्म देखने के ऑफर को ठुकरा दिया था। तुम तो शायद अब कभी वहां नहीं जा पाओगी लेकिन आज उस मंदिर में माँ की प्रतिमा के सामने जाकर तुम्हारे द्वारा किए गए सारे वादे याद आ गए। वो सारे वादे जिनमें मैं और तुम, 'हम' हुआ करते थे।
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काश! उस दिन बात कर लेता तुमसे

जब पता लगा कि शादी के बाद तुम अपने पति के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गई तो मन में एक उम्मीद जगी कि 10 साल के बाद शायद तुमसे अचानक किसी मॉल, किसी मार्केट में मुलाकात हो जाए। उस दिन मैं क्लास लेने के लिए मेट्रो से हौज खास जा रहा था। राजीव चौक पर जब येलो लाइन मेट्रो पर चढ़ा तभी अचानक मेट्रो का गेट बंद होते होते रुक गया। बैग फंस गया था तुम्हारा, तुम अंदर आयी और मैं पीछे मुड़ा। उस भीड़ में तुम्हारी नजरें तो मुझसे नहीं मिल पायीं लेकिन तुम्हें अपने सामने देखकर ऐसा लगा जैसे वर्षों की कामना पूरी हो गई।

तुम मेरे सामने थी लेकिन मैं तुमसे बात नहीं करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। मैं चाहता था कि बात करने से पहले एक बार फिर से तुम्हारी नजरों से मेरी नजरें मिल जाएं। मैं चाहता था कि तुम एक बार थोड़ा सा बाईं ओर घूम जाओ और मैं तुम्हारी आँख के किसी कोने में खुद को संजोया हुआ देख लूं। लेकिन तुम तो जैसे किसी और ही दुनिया में ही खोई थी। फिर मन किया कि चलो बात कर ही लूं लेकिन दूसरे ही पल 5 महीने पुरानी तुम्हारी शादी की वह तस्वीर मेरी आँखों के सामने गयी जो तुमने अपने पति के साथ #बार_बार_देखो लिखकर पोस्ट की थी।

मैं इन्हीं उलझनों में फंसा था कि ग्रीन पार्क मेट्रो स्टेशन आ गया और तुम मेट्रो से उतर कर चंद पलों में मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गई। फिर से तुम्हारे इतना करीब आकर दूर जाने के अहसास को झेलना मेरे लिए शायद नामुमकिन सा था, शायद इसीलिए मेरी आंख खुल गई और मैं उस सुखद स्वप्न से बाहर आ गया। सुबह का 5:30 बज रहा था। 

कहते हैं सुबह के सपने सच हो जाते हैं। काश! मेरा यह सपना सच हो जाये, अगर ऐसा हुआ तो इस बार तुमसे बात करने से खुद को नहीं रोकूंगा। और अगर यह सपना कभी सच नहीं हुआ तो आज से 10 साल बाद भी खुद को इस बात के लिए कभी माफ नहीं कर पाऊंगा कि उस सपने में तुमसे बात नहीं की। काश! मैं उस हसीन सपने में तुमसे बात कर लेता, तो शायद वो सपना कुछ ज्यादा लंबा हो जाता और मुझे सपने में ही सही लेकिन तुम्हारे साथ बिताने के लिए कुछ और टाइम तो मिल जाता...
#क्वीन

Sunday, January 8, 2017

स्कूल की वह बेंच सब याद दिला गई...

पता है आज 6 साल के बाद कॉलेज गया। सोचा था सब बदल गया होगा लेकिन तभी 12th के एक बच्चे ने कक्षा में परिचय कराने के लिए मुझे अंदर बुलाया। परिचय के बाद मैंने अपने उन्हीं हिंदी वाले सर से कहा, 'सर, मैं एक बार पुराने दिनों को याद करना चाहता हूं। कृपया मुझे अपनी कक्षा में बैठने की अनुमति दीजिए।' उन्होंने स्वीकृति दी तो कक्षा की पहली सीट पर बैठ गया।

उस सीट पर एक प्यारे से दिल के अंदर घुसा हुआ तीर और उसके दोनों छोरों पर तुम्हारे और मेरे नाम का पहला अक्षर गुदा हुआ नजर आया। हमारी जिंदगी में भले ही हम अलग हो गए हों लेकिन कैंपस की उस सीट पर हम आज भी छोटे से फासले पर ही बसते हैं...

पता नहीं कि तुम कभी मेरी मोहब्बत की हकीकत से रूबरू हो भी पाई थी या नहीं लेकिन आज इतने सालों के बाद भी लोग मुझे तुम्हारी कसम देकर मेरी अनचाही बात को भी मनवा लेते हैं। मैं तुम्हें अपने दिल में रखना चाहता था लेकिन तुम्हें तो गुरूर में रहना ज्यादा पसंद था... देखो, तुम्हारे गुरूर ने मेरी मोहब्बत को हरा दिया... लेकिन मुझे अपनी हार का अफसोस इसलिए नहीं है क्योंकि अगर मैं कुछ हारा हूं तो तुम भी तो कुछ जीती हो...

उस खेल में थकी सिर्फ तुम थी लेकिन...

पता है ऐसे मौके जिंदगी में बहुत कम आते हैं जब कुछ मिलने और उसी के खोने के लम्हें एक जैसे हों... मैंने दोनों लम्हों को महसूस किया है... जब तुमने मोहब्बत का इजहार किया और जब मोहब्बत से इनकार किया, वे दोनों लम्हें जानलेवा थे... बेहद अजीब था वह खेल, उसमें थकी तो सिर्फ तुम थी लेकिन हार हम दोनों गए थे... तुम खुद से और मैं अपने आप से ...

तुम्हारा मजबूर कर देना और मेरा मजबूर हो जाना, बस यही तो थी अपनी मोहब्बत की कहानी... लोग कहते थे कि तुम्हारी आंखें मेरे लिए मोहब्बत बयां करती हैं, मैंने उन आंखों पर भरोसा कर लिया और अपने अरमानों को अपनी आंखों तक न आने दिया... मेरे होंठों पर छाई रहने वाली वह बनावटी मुस्कान, मेरे सैकड़ों दुखों को दिल में ही दफन करने पर मजबूर कर देती थी... तुम हर दिन मुझमें कमियां निकालती थी और मैं उन कमियों को खुद से दूर कर देता था और फिर एक दिन ऐसा आया कि मेरी सारी कमियां दूर हो गईं...  मुझमें बचीं तो सिर्फ खूबियां... फिर तुम किसी और को 'सुधारने' के लिए चली गईं...

उन अधूरी कहानियों को याद करके, बिखरे पड़े टूटे ख्वाबों को एक धागे में पिरोकर, तुम्हारे बेरहम कुतर्कों को अपना नसीब मानकर होठों पर अपनी वही पुरानी मुस्कान बचाकर रखी है... आज भी उन अनजानी राहों पर सिर्फ इसलिए जाता हूं कि काश तुम किसी मोड़ पर मिल जाओ... मैं किसी अंजाम से नहीं डरता लेकिन तुम्हारे साथ किए गए उस वादे का मान रखने के लिए दुनिया से, अपने चाहने वालों से हजारों राज छुपाकर, तुम्हें लिखकर उनकी झोली में थोड़ी सा दर्द भरी खुशियां डालकर तुम्हें जिंदा रखने की, अपनी मोहब्बत को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा हूं...
#क्वीन

तब मेरी इच्छाएं शून्य हो जाती थीं

मैं तुम्हारे अंदर अपने भगवान को खोजता था, पता नहीं क्यों लेकिन तुम जैसे ही मेरे सामने आती थी मेरी सारी हसरतें, मेरी आकांक्षाएं, मेरी इच्छाएं शून्य हो जाती थीं। ऐसा लगता था कि मेरे भगवान मेरे सामने आ गए हों, अब जिसके सामने, जिसके साथ उसके भगवान हों, उसे और क्या चाहिए....

समय बीता, माहौल बदला... फिर समझ में आया कि तुम तो मेरे भगवान से भी कहीं ऊपर का दर्जा रखती हो... बताओ भला! मैं हर दिन अपने भगवान की पूजा करता था लेकिन उनसे कभी नहीं पूछा कि भगवान, आपने खाना खाया? उनसे कभी नहीं पूछा कि आपको ठंड तो नहीं लग रही है? उन्हें अपने अवचेतन मस्तिष्क से दिल तक नहीं ला पाया लेकिन तुम्हारे पल-पल की चिंता करता था...

लेकिन इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी... सारी गलती मेरी थी... मैं ही तो था जो यह भी भूल गया कि तुम तो इंसान हो, मेरी तरह ही... अब तुम्हें भगवान की जगह पर बैठा दूंगा तो उन्हें बुरा तो लगेगा ही औऱ लगना भी चाहिए... बस उन्होंने कहा कि जाओ, तुम एक इंसान को मुझसे भी ऊपर का समझ बैठे हो तो मैं तुम्हारे भ्रम को तोड़ देता हूं... और उन्होंने मेरे उस भ्रम को तोड़ दिया... आखिर उनकी भी खुद को लेकर कुछ तो जिम्मेदारियां हैं ना...

तुम्हीं बताओ इन सब बातों के अलावा खुद को सांत्वना कैसे दे सकता हूं मैं?
#क्वीन

कैसे उस दिन अपने भाई से नजर मिला पाई होगी तुम?

Displaying 14657379_183520982093034_3353028272577647744_n.jpgशादी हो गई तुम्हारी... कल ही तुम्हारी फ्रेंड ने बताया... बहुत खुश हुआ मैं लेकिन मन में कुछ सवाल थे, कुछ जिज्ञासाएं थीं... क्या 'निकाह-निकाह-निकाह' बोलते समय एक बार भी तुम्हारी जुबान लड़खड़ाई नहीं होगी? आखिर कैसा लगा होगा तुम्हें जब उसने शादी वाली शाम तुम्हारे हाथ को थामा होगा... क्या उसने उस दौरान तुम्हारे हाथों की ढीली पकड़ को महसूस नहीं किया होगा?  क्या तुम्हें मेरे साथ सात फेरे लेने के वादे याद नहीं आए होंगे... क्या तुम अपने उस भाई से नजर मिला पा रही होगी जिसने तुम्हारे आंसुओं से भीगे प्रेम पत्रों को मुझ तक पहुंचाया था...

कैसा लगा होगा तुम्हें जब उसने तुम्हारे माथे से आंचल हटाया होगा... कैसा लगा होगा तुम्हें जब उसने तुम्हारे माथे को चूमा होगा, क्या तब तुम्हारा सुर्ख लाल चेहरा पीला नहीं हो गया होगा... कैसा लगा होगा जब अगले दिन सुबह तुमने खुद को उसकी बाहों में जकड़ा पाया होगा...

काश! काश कि तुम उन ऊंची अट्टालिकाओं ने नीचे जमीन पर आकर मेरी मोहब्बत को समझने की कोशिश करती... काश कि तुम समझ पाती कि बुलंदी से जर्रों का अंदाजा नहीं होता... पता है! अगर तुममें मेरे साथ जिंदगी गुजारने का अरमान होता हो मजहबी दीवारें कभी हमारे बीच में नहीं आतीं लेकिन तुम तो हार के उस कंगूरे पर खड़ी थी जिसकी नींव में सिर्फ मेरी नाकामयाब मोहब्बत मेरी जिंदगी के अनकहे पहलुओं पर मुस्कुराती दिख रही थी...
#क्वीन