दोस्तों के साथ तुम्हारी क्लास के बाहर से निकलते वक्त जब उस दरवाजे की सुराख से तुम पर नजर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे साक्षात चांद धरती पर उतर आया हो। अपलक देखता ही रह गया था... बस बिना कुछ ख्याल किये किताबों में खोई उस मानक सौन्दर्य मूर्ति की तरफ बढ़ता चला गया। यह भी ध्यान नहीं रहा कि स्कूल के सबसे ज्यादा गुस्सैल शिक्षक क्लास में थे।
फासला कम होता गया, सम्मोहन बढ़ता गया। पास पहुंचने तक हमारे मध्य स्मित अवलंबित नजर सेतु स्थापित हो चुका था, भावनाओं का परिवहन होने लगा, साथ ही उमड़ पड़ा था अनुशासनहीनता पर गुस्से का एक सैलाब...
अगले ही पल मैं तो क्लास से बाहर था लेकिन मेरी आंखों में तुम थी... आज भी लोग आंखों के एक कोने में तुम्हें खोजते हैं... कभी तुम मिलती हो तो कभी तुम्हारे साथ बिताए गए उन हसीन लम्हों का खुशनुमा अहसास... लेकिन रात के अंधेरे में तुम्हारे अकल्पित प्रतिमानों से दूर बहती अश्रुधारा को कोई न देख पाया...
उन आंसुओं ने जीवन को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से मुझे अपना भविष्य तय करना था। पहले बिजनस मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ी और फिर इंजीनियरिंग की... 3 सालों तक उस घनघोर अंधेरे में खुद की पहचान खोजता रहा। और फिर सब ईश्वर पर छोड़ दिया... पता नहीं मैं कितना सफल हुआ लेकिन जिस गौरव त्रिपाठी ने खुद को ईश्वर के भरोसे छोड़ा था, वह अब विश्व गौरव बन चुका है पर तुम्हें खोकर खुद को पाने की टीस आज भी रात के अंधेरों में आंखों के रास्ते बाहर आ ही जाती है...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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