आज पूरे 10 साल हो गए तुम्हें सामने से देखे हुए और आज से ठीक 11 साल पहले उस पार्क में हमने जिंदगी भर एक-दूसरे के साथ रहने का वादा किया था। तुम्हारी आंखों में खुद को खोजते हुए जब मैंने तुमसे पूछा था कि हमारी शादी कब होगी तो तुमने बस एक मुस्कान के साथ प्यार पर भरोसा करने की बात कह दी थी। और उसके 1 साल के बाद सब बदल गया था... बस नहीं बदली थी तो तुम्हारी ऑरकुट प्रोफाइल... वहीं देखता था तुम्हें...
आज थकी सी, उनींदी, बोझल आंखों के साथ जब प्रेम के शाश्वत प्रतीक रूप में विश्वास और अभिनय रूपी मुस्कान की परिभाषाएं गढ़ते हुए तुम उसकी बाहों अपनी खुशबू बिखर रही होगी तो उस रात क्या तुम्हें उस पहली छुवन का अहसास याद नहीं आया होगा? क्या तुमने पानी बन कर अपनी आंखों की कोर से बह निकले अफसोस को साड़ी के पल्लू से पोछकर हमारी उस अधूरी कहानी को भूलने के लिए उसकी उंगलियों को अपने बालों को सहलाने से मना नहीं किया होगा? क्या उस दिन तुम प्यास के पहाड़ पर सूखे पड़ गए झरने जैसा महसूस नहीं कर रही होगी...
पहले अगर एक दिन हमारी बात नहीं होती थी तो तुम ऐसे तड़पती थी जैसे लहरों से दूर जाने पर मछली तड़पती है। तुम्हारे सपने मेरे अरमान बन चुके थे, मेरा हर अपना पराया लगने लगा था, एक विश्वास था कि तुम मेरी अपनी हो लेकिन मैं भूल गया था कि हमारा रिश्ता बर्फ की तरह था जिसे उसकी प्रेम रूपी गर्माहट ने पानी कर दिया था....
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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