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Sunday, January 8, 2017

स्कूल की वह बेंच सब याद दिला गई...

पता है आज 6 साल के बाद कॉलेज गया। सोचा था सब बदल गया होगा लेकिन तभी 12th के एक बच्चे ने कक्षा में परिचय कराने के लिए मुझे अंदर बुलाया। परिचय के बाद मैंने अपने उन्हीं हिंदी वाले सर से कहा, 'सर, मैं एक बार पुराने दिनों को याद करना चाहता हूं। कृपया मुझे अपनी कक्षा में बैठने की अनुमति दीजिए।' उन्होंने स्वीकृति दी तो कक्षा की पहली सीट पर बैठ गया।

उस सीट पर एक प्यारे से दिल के अंदर घुसा हुआ तीर और उसके दोनों छोरों पर तुम्हारे और मेरे नाम का पहला अक्षर गुदा हुआ नजर आया। हमारी जिंदगी में भले ही हम अलग हो गए हों लेकिन कैंपस की उस सीट पर हम आज भी छोटे से फासले पर ही बसते हैं...

पता नहीं कि तुम कभी मेरी मोहब्बत की हकीकत से रूबरू हो भी पाई थी या नहीं लेकिन आज इतने सालों के बाद भी लोग मुझे तुम्हारी कसम देकर मेरी अनचाही बात को भी मनवा लेते हैं। मैं तुम्हें अपने दिल में रखना चाहता था लेकिन तुम्हें तो गुरूर में रहना ज्यादा पसंद था... देखो, तुम्हारे गुरूर ने मेरी मोहब्बत को हरा दिया... लेकिन मुझे अपनी हार का अफसोस इसलिए नहीं है क्योंकि अगर मैं कुछ हारा हूं तो तुम भी तो कुछ जीती हो...

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