याद है वह दिन जब तुम्हारी मासी ने तुमसे तुम्हारा मोबाइल फोन छीन लिया था क्योंकि तुम एक 'काफिर' से बात करती थी। 2 दिन बिना तुम्हारी आवाज सुने कैसे रहा था मैं... पता है, वह एक ऐसा दौर था जब हमारी मोहब्बत का जुनून हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर था... पूरे 37 घंटे के बाद तुमने किसी और के फोन से मुझे कॉल किया था और 48 सेकंड में अपने आंसुओं के साथ बस इतना ही बोल पाई थी, 'गौरव, अपना ख्याल रखना। मैं कैसे भी तुम्हें जल्द कॉल करूंगी।'
उस दिन विश्वास रूपी बीज ने जैसे अचानक वृक्षाकार ले लिया था। मुझे पूरा विश्वास था कि कोई तुम पर कितना भी दबाव डाले लेकिन तुम अपने मन पर सिर्फ मेरा एकाधिकार कायम रखोगी। उम्मीद और विश्वास, इन दोनों शाश्वत सिद्धियों को हमने अपने प्रेम की आधारशिला में स्थापित कर रखा था।
फिर उस दिन कैसे तुम उसे अपने करीब आने से नहीं रोक पाई। क्यूं कमजोर हो गई थी तुम्हारी मोहब्बत? क्या अपने आप से विश्वास उठ गया था तुम्हारा? नहीं! तुम किसी से नहीं हारी थी उस दिन... हारा तो मैं था, अपने आप से... हारा तो मेरा प्यार था, तुम्हारी भटकाव से... हारा तो मेरा विश्वास था, तुम्हारी मजबूरी थी... हारा मेरा भगवान था, तुम्हारी उस एक गलती से...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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