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Wednesday, June 7, 2017

आवारा लड़के से तुम्हारी पहचान बनने का सफर

उस दिन तुम्हारे मां-पापा देवा शरीफ की दरगाह पर मत्था टेकने जा रहे थे। सुबह से ही तुम सिर दर्द का बहाना करके बैठ गई। घरवालों ने जब खुदा की बात की तो तुमने कहा कि तुम्हारा खुदा तुम्हारे दिल में है। और फिर उनके जाते ही तुम मुझसे मिलने आ गई। तुम मेरे साथ उस दिन उसी देवी मां के मंदिर में जाना चाहती थी, जहां मां के सामने हमने एक-दूसरे को किसी तीसरे से मांगा था। लेकिन मैंने मना कर दिया, मैं फिल्म देखकर उस समय को बिताना चाहता था। 

पता है तुम्हें, मैं कुछ दिन पहले सोच रहा था कि आखिर मुझमें इतना परिवर्तन क्यों आया, तुम्हें भगवान से मांगा और तुम नहीं मिली, ऐसे में मुझे नास्तिक हो जाना चाहिए था लेकिन भगवान में मेरा विश्वास तो और ज्यादा बढ़ गया, ऐसा क्यों? इसका जवाब जब अपने अतीत में जाकर खोजा तो तुम्हारे शब्दों में ही मिला... तुम चाहती थी कि कभी अगर तुम किसी से अपने प्यार का नाम लो तो तुम्हें मेरा परिचय देने की जरूरत ना पड़े, लोग तुम्हें मेरे नाम से जानें। 

तुम कभी किसी दरगाह पर नहीं गई लेकिन बिना नमाज पढ़े तुम्हारे दिन की शुरुआत नहीं होती थी। देवी मां के मंदिर में भी जब तुम हाथ जोड़कर उनसे कुछ मांग रही थी, तो मुझे पूरा यकीन है कि तुमने मुझे नहीं बल्कि मेरे लिए कुछ मांगा था क्योंकि मैंने भी मां से यही कहा था कि तुम जो चाहती हो वो तुम्हें मिल जाए। और देखो हम दोनों की इच्छा पूरी हो गई।

एक आवारा से लड़के का यूं तुम्हारी पहचान बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं... और वैसे भी हम अलग ही कहां हुए हैं... देखो ना, लिखता मैं हूं और लोग पढ़ते तुम्हें हैं...
#क्वीन 

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