जिंदगी के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था उस समय, जब उसने मुझे संभाला... पिछले 5 सालों से सारी इच्छाएं-आकांक्षाएं त्याग कर सिर्फ तुम्हें पाने के लिए संघर्ष कर रहा था... अपने घरवालों की अपेक्षाओं से, तुम्हारे घरवालों के 'अत्याचार' से, कथित दोस्तों की हिकारत भरी निगाहों से, मर्यादा और सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर फैलाए जा रहे उस मजहबी जहर से चल रहा संघर्ष अब मुझे तोड़ने लगा था...
उसने तुम्हारे मोहजाल से बाहर निकाल पर जिंदगी जीने की नई-नई वजहें देने की कोशिशें शुरू कीं। नया घर बनाना काफी आसान होता है लेकिन पुराने घर को बिना तोड़े नया आकार देना बेहद मुश्किल होता है। वह मुझे नया रूप दे रही थी... मेरी जिंदगी का हर वह सच जिसे तुम्हारे घरवालों ने अपने 'अहंकार' की वशीभूत होकर झूठ में तब्दील कर दिया था, वो उसे समझती थी। तुम्हारे साथ बिताए हसीन लम्हों की कहानियों को बड़े चाव से सुनती थी वो...
आज उससे मिले 7 साल हो गए हैं, मेरी जीवनसंगिनी है वो और पता है, वो आज भी तुम्हें पढ़ती है... कितना मुश्किल होता होगा एक लड़की के लिए अपने प्रेमी से पति बन चुके इंसान से उसी की प्रेम कहानी सुनना... मैंने पूछा भी उसको, मैंने कहा कि अगर उसे नहीं पसंद है तो मैं तुम्हें नहीं लिखूंगा लेकिन वो पागल कहती है कि मैं अपना वह वादा पूरा करूं जो मैंने तुमसे तुम्हारी पहचान बनने का किया था...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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हिंदी माध्यम से 8वीं तक की पढ़ाई के बाद लखनऊ में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू हुई। 10वीं के अंकों को देखकर बाबा को लगा कि अचानक अंग्रेजी म...
Wednesday, June 7, 2017
अधूरी ख्वाहिशों की खुशबू
तुम पूछती थी, 'गौरव, मुझसे कितनी मोहब्बत करते हो?' और मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब देने के बजाय कहीं खो जाता था। पता है, मेरी मोहब्बत खुशबू की तरह थी और खुशबू का कोई पैमाना नहीं होता। तुम्हारे करीब होने पर एक अजीब सा सुकून मिलता था और जैसे ही तुमसे दूर जाता था, एक खौफ, एक डर सताने लगता था। ऐसा लगता था कि कहीं यही दूरी जिंदगी की हकीकत न बन जाए। तुम साथ होती थी तो मैं खुद में ही मुकम्मल हो जाता था और फिर तुमसे दूर जाते ही घर में, महफिलों में भी ऐसा लगता था जैसे अधूरा सा किसी कोने में पड़ा हूं। तुम्हारे साथ एक पल भी अगर साथ चलता था तो लगता था जैसे सदियों का सफर पूरा कर लिया और आज जब लोग कहते हैं कि मैं मंजिल के करीब हूं तो लगता है कि मंजिल तक ले जाने वाले रास्ते से भटक कर कहीं अधूरे सफर की ख्वाहिश लिए खुद को ही खोज रहा हूं।
हम जो ख्वाब देखते थे, उनमें मैं और तुम 'हम' हुआ करते थे और आज महसूस होता है जैसे हर ख्वाब बस एक अधूरा सपना था, एक ऐसा सपना जिसमें अंजाम देखे बिना ही उसे पूरा मान लिया था। तुम तो बारिश में भी मेरे आंसू पहचान लेने का दावा करती थी ना, तो फिर क्यूं आज आंखों के रास्ते बहकर पानी में मिल गई। जिन गलियों में पेड़ की आंड़ में छिपकर तुम्हें देखता था वो पेड़ आ भी वहीं हैं, मैं भी वहीं जाता हूं पर अब तुम्हारे आने की उम्मीद टूट चुकी है।
देखो ना, आज तुम नहीं हो लेकिन तुम्हारी यादें, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें, तुम्हारी वह चंचल सी मुस्कुराहट, रातों को आधी नींद में देखे गए ख्वाब, दिन के हर पहर को तुम्हारे साथ बिताने की अनकही और अधूरी उम्मीदों की खुशबू आज भी लोग महसूस कर ही लेते हैं। उस दौर के बाद एक अरसा बीत गया तुम्हारी नाराजगी को... काश! मैं जान पाता कि तुम्हें प्यार करने के सिवा मेरी खता क्या थी...
हम जो ख्वाब देखते थे, उनमें मैं और तुम 'हम' हुआ करते थे और आज महसूस होता है जैसे हर ख्वाब बस एक अधूरा सपना था, एक ऐसा सपना जिसमें अंजाम देखे बिना ही उसे पूरा मान लिया था। तुम तो बारिश में भी मेरे आंसू पहचान लेने का दावा करती थी ना, तो फिर क्यूं आज आंखों के रास्ते बहकर पानी में मिल गई। जिन गलियों में पेड़ की आंड़ में छिपकर तुम्हें देखता था वो पेड़ आ भी वहीं हैं, मैं भी वहीं जाता हूं पर अब तुम्हारे आने की उम्मीद टूट चुकी है।
देखो ना, आज तुम नहीं हो लेकिन तुम्हारी यादें, तुम्हारे साथ बिताए गए वे लम्हें, तुम्हारी वह चंचल सी मुस्कुराहट, रातों को आधी नींद में देखे गए ख्वाब, दिन के हर पहर को तुम्हारे साथ बिताने की अनकही और अधूरी उम्मीदों की खुशबू आज भी लोग महसूस कर ही लेते हैं। उस दौर के बाद एक अरसा बीत गया तुम्हारी नाराजगी को... काश! मैं जान पाता कि तुम्हें प्यार करने के सिवा मेरी खता क्या थी...
आवारा लड़के से तुम्हारी पहचान बनने का सफर
उस दिन तुम्हारे मां-पापा देवा शरीफ की दरगाह पर मत्था टेकने जा रहे थे। सुबह से ही तुम सिर दर्द का बहाना करके बैठ गई। घरवालों ने जब खुदा की बात की तो तुमने कहा कि तुम्हारा खुदा तुम्हारे दिल में है। और फिर उनके जाते ही तुम मुझसे मिलने आ गई। तुम मेरे साथ उस दिन उसी देवी मां के मंदिर में जाना चाहती थी, जहां मां के सामने हमने एक-दूसरे को किसी तीसरे से मांगा था। लेकिन मैंने मना कर दिया, मैं फिल्म देखकर उस समय को बिताना चाहता था।
पता है तुम्हें, मैं कुछ दिन पहले सोच रहा था कि आखिर मुझमें इतना परिवर्तन क्यों आया, तुम्हें भगवान से मांगा और तुम नहीं मिली, ऐसे में मुझे नास्तिक हो जाना चाहिए था लेकिन भगवान में मेरा विश्वास तो और ज्यादा बढ़ गया, ऐसा क्यों? इसका जवाब जब अपने अतीत में जाकर खोजा तो तुम्हारे शब्दों में ही मिला... तुम चाहती थी कि कभी अगर तुम किसी से अपने प्यार का नाम लो तो तुम्हें मेरा परिचय देने की जरूरत ना पड़े, लोग तुम्हें मेरे नाम से जानें।
तुम कभी किसी दरगाह पर नहीं गई लेकिन बिना नमाज पढ़े तुम्हारे दिन की शुरुआत नहीं होती थी। देवी मां के मंदिर में भी जब तुम हाथ जोड़कर उनसे कुछ मांग रही थी, तो मुझे पूरा यकीन है कि तुमने मुझे नहीं बल्कि मेरे लिए कुछ मांगा था क्योंकि मैंने भी मां से यही कहा था कि तुम जो चाहती हो वो तुम्हें मिल जाए। और देखो हम दोनों की इच्छा पूरी हो गई।
एक आवारा से लड़के का यूं तुम्हारी पहचान बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं... और वैसे भी हम अलग ही कहां हुए हैं... देखो ना, लिखता मैं हूं और लोग पढ़ते तुम्हें हैं...
#क्वीन
वो टीस आंखों से रात में आज भी बाहर आ जाती है...
दोस्तों के साथ तुम्हारी क्लास के बाहर से निकलते वक्त जब उस दरवाजे की सुराख से तुम पर नजर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे साक्षात चांद धरती पर उतर आया हो। अपलक देखता ही रह गया था... बस बिना कुछ ख्याल किये किताबों में खोई उस मानक सौन्दर्य मूर्ति की तरफ बढ़ता चला गया। यह भी ध्यान नहीं रहा कि स्कूल के सबसे ज्यादा गुस्सैल शिक्षक क्लास में थे।
फासला कम होता गया, सम्मोहन बढ़ता गया। पास पहुंचने तक हमारे मध्य स्मित अवलंबित नजर सेतु स्थापित हो चुका था, भावनाओं का परिवहन होने लगा, साथ ही उमड़ पड़ा था अनुशासनहीनता पर गुस्से का एक सैलाब...
अगले ही पल मैं तो क्लास से बाहर था लेकिन मेरी आंखों में तुम थी... आज भी लोग आंखों के एक कोने में तुम्हें खोजते हैं... कभी तुम मिलती हो तो कभी तुम्हारे साथ बिताए गए उन हसीन लम्हों का खुशनुमा अहसास... लेकिन रात के अंधेरे में तुम्हारे अकल्पित प्रतिमानों से दूर बहती अश्रुधारा को कोई न देख पाया...
उन आंसुओं ने जीवन को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से मुझे अपना भविष्य तय करना था। पहले बिजनस मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ी और फिर इंजीनियरिंग की... 3 सालों तक उस घनघोर अंधेरे में खुद की पहचान खोजता रहा। और फिर सब ईश्वर पर छोड़ दिया... पता नहीं मैं कितना सफल हुआ लेकिन जिस गौरव त्रिपाठी ने खुद को ईश्वर के भरोसे छोड़ा था, वह अब विश्व गौरव बन चुका है पर तुम्हें खोकर खुद को पाने की टीस आज भी रात के अंधेरों में आंखों के रास्ते बाहर आ ही जाती है...
#क्वीन
फासला कम होता गया, सम्मोहन बढ़ता गया। पास पहुंचने तक हमारे मध्य स्मित अवलंबित नजर सेतु स्थापित हो चुका था, भावनाओं का परिवहन होने लगा, साथ ही उमड़ पड़ा था अनुशासनहीनता पर गुस्से का एक सैलाब...
अगले ही पल मैं तो क्लास से बाहर था लेकिन मेरी आंखों में तुम थी... आज भी लोग आंखों के एक कोने में तुम्हें खोजते हैं... कभी तुम मिलती हो तो कभी तुम्हारे साथ बिताए गए उन हसीन लम्हों का खुशनुमा अहसास... लेकिन रात के अंधेरे में तुम्हारे अकल्पित प्रतिमानों से दूर बहती अश्रुधारा को कोई न देख पाया...
उन आंसुओं ने जीवन को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से मुझे अपना भविष्य तय करना था। पहले बिजनस मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ी और फिर इंजीनियरिंग की... 3 सालों तक उस घनघोर अंधेरे में खुद की पहचान खोजता रहा। और फिर सब ईश्वर पर छोड़ दिया... पता नहीं मैं कितना सफल हुआ लेकिन जिस गौरव त्रिपाठी ने खुद को ईश्वर के भरोसे छोड़ा था, वह अब विश्व गौरव बन चुका है पर तुम्हें खोकर खुद को पाने की टीस आज भी रात के अंधेरों में आंखों के रास्ते बाहर आ ही जाती है...
#क्वीन
नई क्लास का वह तीसरा दिन...
नई क्लास का तीसरा दिन था वह... जब पहली बार तुम्हें देखा था। देखा तो क्या था, बस यूं समझो कि तुममें खुद को खोकर बदहवास सा हो गया था। 2 मिनट के बाद पूरी क्लास की नजरें मुझ पर थीं और मेरी तुम पर। सादगी और लालिमा का अद्भुत मेल दिख रहा था तुम्हारे चेहरे पर। पता है, आज भी जब तुम्हें सोचता हूं तो तुम्हारा चेहरा उसी रूप में मेरी आंखों के सामने आ जाता है...
लोग कहते हैं कि यादें हमेशा होंठों पर मुस्कान ले आती हैं मगर मेरा मानना है कि यादें, यदि मुस्कान लाती हैं तो उस के साथ-साथ उस पल के बीत जाने का ग़म भी साथ लाती हैं जिस पल ने उन्हें यादें बना दिया। यादें, जिसमें न जानें कितनी गहराई छुपी हुई है। यादें, जो खट्टी भी होती हैं और मीठी भी। कोई साथ निभाये या ना निभाये, मगर हमेशा साथ निभाती हैं, ये यादें।
कई बार ऐसा भी होता है कि आप अपने जीवन में कुछ यादों से भागना चाहते हैं, लेकिन चांद पर लगे दाग की तरह ये हमेशा साथ रहती हैं। न जाने कितने जज़्बातों का समंदर होती हैं ये यादें, जिसमें यह दिल की कश्ती डूबती, संभालती बस दिनकर के नियमित जीवन की तरह चलती ही चली जाती है।
तुम्हारे साथ बिताए गए बेहद खास और हसीन लम्हों की यादों के अलावा मेरे पास कुछ ऐसी यादें भी हैं जिन्हें मैं याद नहीं रखना चाहता लेकिन क्या करूं यादें हैं ना, भूल भी नहीं सकता। इन यादों के पीछे का सच मुझे जीने नहीं देता, पल-पल, हर पल वे यादें तुम्हें मुझसे दूर जाकर किसी और के आगोश में होने का अहसास कराती हैं। अफसोस, मुझे इस सच के साथ ही जीना होगा लेकिन एक सच ऐसा भी है जिसे मैं अपने साथ लेकर नहीं जी सकता और इसलिए उस सच को झूठ में बदल दूंगा। तुम मेरी न हुई तो क्या हुआ लोग तुम्हें मेरे नाम से ही जानेंगे। क्वीन... गौरव की #क्वीन
लोग कहते हैं कि यादें हमेशा होंठों पर मुस्कान ले आती हैं मगर मेरा मानना है कि यादें, यदि मुस्कान लाती हैं तो उस के साथ-साथ उस पल के बीत जाने का ग़म भी साथ लाती हैं जिस पल ने उन्हें यादें बना दिया। यादें, जिसमें न जानें कितनी गहराई छुपी हुई है। यादें, जो खट्टी भी होती हैं और मीठी भी। कोई साथ निभाये या ना निभाये, मगर हमेशा साथ निभाती हैं, ये यादें।
कई बार ऐसा भी होता है कि आप अपने जीवन में कुछ यादों से भागना चाहते हैं, लेकिन चांद पर लगे दाग की तरह ये हमेशा साथ रहती हैं। न जाने कितने जज़्बातों का समंदर होती हैं ये यादें, जिसमें यह दिल की कश्ती डूबती, संभालती बस दिनकर के नियमित जीवन की तरह चलती ही चली जाती है।
तुम्हारे साथ बिताए गए बेहद खास और हसीन लम्हों की यादों के अलावा मेरे पास कुछ ऐसी यादें भी हैं जिन्हें मैं याद नहीं रखना चाहता लेकिन क्या करूं यादें हैं ना, भूल भी नहीं सकता। इन यादों के पीछे का सच मुझे जीने नहीं देता, पल-पल, हर पल वे यादें तुम्हें मुझसे दूर जाकर किसी और के आगोश में होने का अहसास कराती हैं। अफसोस, मुझे इस सच के साथ ही जीना होगा लेकिन एक सच ऐसा भी है जिसे मैं अपने साथ लेकर नहीं जी सकता और इसलिए उस सच को झूठ में बदल दूंगा। तुम मेरी न हुई तो क्या हुआ लोग तुम्हें मेरे नाम से ही जानेंगे। क्वीन... गौरव की #क्वीन
मेरे भगवान को हरा दिया था तुमने
याद है वह दिन जब तुम्हारी मासी ने तुमसे तुम्हारा मोबाइल फोन छीन लिया था क्योंकि तुम एक 'काफिर' से बात करती थी। 2 दिन बिना तुम्हारी आवाज सुने कैसे रहा था मैं... पता है, वह एक ऐसा दौर था जब हमारी मोहब्बत का जुनून हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर था... पूरे 37 घंटे के बाद तुमने किसी और के फोन से मुझे कॉल किया था और 48 सेकंड में अपने आंसुओं के साथ बस इतना ही बोल पाई थी, 'गौरव, अपना ख्याल रखना। मैं कैसे भी तुम्हें जल्द कॉल करूंगी।'
उस दिन विश्वास रूपी बीज ने जैसे अचानक वृक्षाकार ले लिया था। मुझे पूरा विश्वास था कि कोई तुम पर कितना भी दबाव डाले लेकिन तुम अपने मन पर सिर्फ मेरा एकाधिकार कायम रखोगी। उम्मीद और विश्वास, इन दोनों शाश्वत सिद्धियों को हमने अपने प्रेम की आधारशिला में स्थापित कर रखा था।
फिर उस दिन कैसे तुम उसे अपने करीब आने से नहीं रोक पाई। क्यूं कमजोर हो गई थी तुम्हारी मोहब्बत? क्या अपने आप से विश्वास उठ गया था तुम्हारा? नहीं! तुम किसी से नहीं हारी थी उस दिन... हारा तो मैं था, अपने आप से... हारा तो मेरा प्यार था, तुम्हारी भटकाव से... हारा तो मेरा विश्वास था, तुम्हारी मजबूरी थी... हारा मेरा भगवान था, तुम्हारी उस एक गलती से...
#क्वीन
उस दिन विश्वास रूपी बीज ने जैसे अचानक वृक्षाकार ले लिया था। मुझे पूरा विश्वास था कि कोई तुम पर कितना भी दबाव डाले लेकिन तुम अपने मन पर सिर्फ मेरा एकाधिकार कायम रखोगी। उम्मीद और विश्वास, इन दोनों शाश्वत सिद्धियों को हमने अपने प्रेम की आधारशिला में स्थापित कर रखा था।
फिर उस दिन कैसे तुम उसे अपने करीब आने से नहीं रोक पाई। क्यूं कमजोर हो गई थी तुम्हारी मोहब्बत? क्या अपने आप से विश्वास उठ गया था तुम्हारा? नहीं! तुम किसी से नहीं हारी थी उस दिन... हारा तो मैं था, अपने आप से... हारा तो मेरा प्यार था, तुम्हारी भटकाव से... हारा तो मेरा विश्वास था, तुम्हारी मजबूरी थी... हारा मेरा भगवान था, तुम्हारी उस एक गलती से...
#क्वीन
उस दौर में सब 'पागल' थे...
प्रेम, चाहत, जुनून, समर्पण... ये सब सिर्फ शब्द थे मेरे लिए लेकिन जब तुम मिली तो इन शब्दों के मायने समझ में आये... कितना खुशनसीब था मैं जो मैंने इन शब्दों को अहसास में बदलते हुए महसूस किया और इन्हें जिया भी... जब तुम्हारे घरवालों का तुमसे और खुद से व्यवहार असहनीय हो जाता था तो लगता था कि जैसे मोहब्बत नहीं बल्कि कोई गुनाह कर दिया है लेकिन इस मानव रूपी जीवन में जैसे गुनाहों की लिस्ट लंबी होती जाती है, वैसे ही मेरी मोहब्बत भी बढ़ती ही गई...
लोग कहते हैं कि जब कोई लंबे समय तक नहीं मिलता, सामने नहीं आता तो मोहब्बत खत्म हो जाती है लेकिन देखो इतने साल हो गए पर मेरी मोहब्बत खत्म न हुई... तुम्हें पाने की चाहत तो कभी थी ही नहीं लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमारी इस कहानी पर 'अधूरी' रहने का धब्बा लग गया।
कितना छिप-छिप कर बात करती थी तुम, कैसे मिलते थे हम, जब वो सब याद करता हूं तो होठों पर मुस्कान आ जाती है... तुम्हारी कॉलोनी के बाहर गेट के किनारे घंटो खड़ा रहता था, तुम्हारे उस भाई से नोट्स के बहाने प्रेमपत्र भिजवाता था, उस बेचारे को तो इतना भी समझ में नहीं आता था कि कॉमर्स वालों को साइंस वालों के नोट्स की जरूरत नहीं होती। सच में... उस दौर में सब के सब पागल थे... बस सब कुछ हो रहा था... कैसे और क्यूं के बारे में कोई सोचता ही नहीं था... बेहद खूबसूरत कहानी है हमारी... बिलकुल चांद की तरह और उसी चांद की तरह इस कहानी पर भी एक धब्बा लगा है... 'अधूरी' होने का धब्बा... अब तो बस यही कह सकता हूं कि काश! हम मोहब्बत के उस आगाज को अंजाम तक पहुंचा सकते...
#क्वीन
लोग कहते हैं कि जब कोई लंबे समय तक नहीं मिलता, सामने नहीं आता तो मोहब्बत खत्म हो जाती है लेकिन देखो इतने साल हो गए पर मेरी मोहब्बत खत्म न हुई... तुम्हें पाने की चाहत तो कभी थी ही नहीं लेकिन अफसोस इस बात का है कि हमारी इस कहानी पर 'अधूरी' रहने का धब्बा लग गया।
कितना छिप-छिप कर बात करती थी तुम, कैसे मिलते थे हम, जब वो सब याद करता हूं तो होठों पर मुस्कान आ जाती है... तुम्हारी कॉलोनी के बाहर गेट के किनारे घंटो खड़ा रहता था, तुम्हारे उस भाई से नोट्स के बहाने प्रेमपत्र भिजवाता था, उस बेचारे को तो इतना भी समझ में नहीं आता था कि कॉमर्स वालों को साइंस वालों के नोट्स की जरूरत नहीं होती। सच में... उस दौर में सब के सब पागल थे... बस सब कुछ हो रहा था... कैसे और क्यूं के बारे में कोई सोचता ही नहीं था... बेहद खूबसूरत कहानी है हमारी... बिलकुल चांद की तरह और उसी चांद की तरह इस कहानी पर भी एक धब्बा लगा है... 'अधूरी' होने का धब्बा... अब तो बस यही कह सकता हूं कि काश! हम मोहब्बत के उस आगाज को अंजाम तक पहुंचा सकते...
#क्वीन
वो ऑरकुट वाली लाइफ...
आज पूरे 10 साल हो गए तुम्हें सामने से देखे हुए और आज से ठीक 11 साल पहले उस पार्क में हमने जिंदगी भर एक-दूसरे के साथ रहने का वादा किया था। तुम्हारी आंखों में खुद को खोजते हुए जब मैंने तुमसे पूछा था कि हमारी शादी कब होगी तो तुमने बस एक मुस्कान के साथ प्यार पर भरोसा करने की बात कह दी थी। और उसके 1 साल के बाद सब बदल गया था... बस नहीं बदली थी तो तुम्हारी ऑरकुट प्रोफाइल... वहीं देखता था तुम्हें...
आज थकी सी, उनींदी, बोझल आंखों के साथ जब प्रेम के शाश्वत प्रतीक रूप में विश्वास और अभिनय रूपी मुस्कान की परिभाषाएं गढ़ते हुए तुम उसकी बाहों अपनी खुशबू बिखर रही होगी तो उस रात क्या तुम्हें उस पहली छुवन का अहसास याद नहीं आया होगा? क्या तुमने पानी बन कर अपनी आंखों की कोर से बह निकले अफसोस को साड़ी के पल्लू से पोछकर हमारी उस अधूरी कहानी को भूलने के लिए उसकी उंगलियों को अपने बालों को सहलाने से मना नहीं किया होगा? क्या उस दिन तुम प्यास के पहाड़ पर सूखे पड़ गए झरने जैसा महसूस नहीं कर रही होगी...
पहले अगर एक दिन हमारी बात नहीं होती थी तो तुम ऐसे तड़पती थी जैसे लहरों से दूर जाने पर मछली तड़पती है। तुम्हारे सपने मेरे अरमान बन चुके थे, मेरा हर अपना पराया लगने लगा था, एक विश्वास था कि तुम मेरी अपनी हो लेकिन मैं भूल गया था कि हमारा रिश्ता बर्फ की तरह था जिसे उसकी प्रेम रूपी गर्माहट ने पानी कर दिया था....
#क्वीन
आज थकी सी, उनींदी, बोझल आंखों के साथ जब प्रेम के शाश्वत प्रतीक रूप में विश्वास और अभिनय रूपी मुस्कान की परिभाषाएं गढ़ते हुए तुम उसकी बाहों अपनी खुशबू बिखर रही होगी तो उस रात क्या तुम्हें उस पहली छुवन का अहसास याद नहीं आया होगा? क्या तुमने पानी बन कर अपनी आंखों की कोर से बह निकले अफसोस को साड़ी के पल्लू से पोछकर हमारी उस अधूरी कहानी को भूलने के लिए उसकी उंगलियों को अपने बालों को सहलाने से मना नहीं किया होगा? क्या उस दिन तुम प्यास के पहाड़ पर सूखे पड़ गए झरने जैसा महसूस नहीं कर रही होगी...
पहले अगर एक दिन हमारी बात नहीं होती थी तो तुम ऐसे तड़पती थी जैसे लहरों से दूर जाने पर मछली तड़पती है। तुम्हारे सपने मेरे अरमान बन चुके थे, मेरा हर अपना पराया लगने लगा था, एक विश्वास था कि तुम मेरी अपनी हो लेकिन मैं भूल गया था कि हमारा रिश्ता बर्फ की तरह था जिसे उसकी प्रेम रूपी गर्माहट ने पानी कर दिया था....
#क्वीन
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