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Monday, October 31, 2016

क्वीन ऑफ़ हिल्स की वह दिवाली

2 साल पहले... सुबह का 5 बजकर 30 मिनट...
'क्वीन ऑफ़ हिल्स' यानी मसूरी की पहली सुबह, जगमगाती पहाड़ियों के बीच रात भर घूमने के बाद की थकावट के बीच यशश्वी सूर्य की लालिमा के दर्शन से पूर्व तुम्हारे चेहरे की लालिमा याद आ गयी। काश! तुम मेरे सामने होती। बस यही उस दिन भी सोच रहा था। तुम हमेशा से मेरी अपेक्षाओं को पूरा करती रही हो। और उस दिन भी तुम मेरी कल्पनाओं के आकाश में मेरा ही हाथ थामकर उड़ने लगी।

यथार्थ और कल्पना, एक बारीक सा अंतर है इसमें। कहते हैं, अपनी कल्पनाओं को साकार करने का यदि संकल्प कर लिया तो विश्वास मानिए, आप यथार्थ में ही हैं। मेरे पास मेरी कल्पनाओं का खुला आकाश भी था, उन्हें साकार कर तुम्हारे साथ खुलकर आकाश में उड़ने का संकल्प भी था, लेकिन फिर भी मैं यथार्थ तक नहीं पहुंच पाया। पता नहीं क्यों?

लेकिन एक बात तो पता है मुझे... परमपिता परमेश्वर हमसे ज्यादा हमारी चिंता करता है, और तुमसे जुड़ा हर एक लम्हा आज मेरे इस विश्वास को और ज्यादा मजबूत कर देता है।
#क्वीन

Friday, October 28, 2016

तुम्हारी मोहब्बत की कैद में दिवाली

दिवाली से दो दिन पहले यानी धनतेरस के दिन तुम अपने मामा जी के घर चली गई थी। हमारी मोहब्बत का बीज जब वृक्ष रूप ले रहा था, उस दौर की हमारी पहली दिवाली थी। मैं चाहता था कि पूजा के बाद सबसे पहले मैं तुम्हारा चेहरा देखूं। लेकिन तुम नहीं मानी और चली गयी अपने मामा जी के घर।

हार और अहंकार, इन दो शब्दों का बेहद अटूट रिश्ता है। मुझे भी इस बात का अहंकार था कि मैं कभी हार नहीं सकता। आखिर अहंकार हो भी क्यों ना, कभी हार का स्वाद ही नहीं चखा था। बस तुम्हारी मोहब्बत और अपने अहंकार के मायाजाल में फंसकर अपनी बुआ जी के घर पहुँच गया। उनका घर, तुम्हारे मामा जी के घर से बस 2 किलोमीटर की दूरी पर था। पूजा के बाद तुम्हारे मामा जी के लैंडलाइन नंबर पर 17 बार अलग-अलग नाम से फोन किया, लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं कराई। सबने यही कहा कि तुम घर के बाहर पटाखे जला रही हो।
मैं भी पागल, पहुँच गया तुम्हारे मामा जी के घर। सोचा था कि जिस वजह से घर से दूर आया हूँ, कम से कम वह तो मुकम्मल हो जाए। लेकिन.....

बस इसी 'लेकिन' पर तो सारी कहानियां चरित्रहीन हो जाती हैं...रात 11 बजे से 1:50 बजे तक तुम्हारे घर के बाहर खड़ा रहा, लेकिन तुम नहीं दिखी। उस दिन पहली बार मुझे मेरा विश्वास, 'अहंकार' लगा था और उसी दिन पहली बार दिवाली बिना पटाखों के मनाई थी। आज इतने सालों के बाद इस दीवाली को बिना पटाखों के मनाऊँगा। लेकिन इस बार तुम्हारे बारे में नहीं बल्कि उन परिवारों के बारे में सोच रहा हूं जिनके बेटे का शव कुछ दिन पहले तिरंगे में लिपट कर घर पहुंचा। इस साल एक दीप उनके लिए भी जलाऊंगा जो सीमा पर इसलिए खड़े रहते हैं ताकि 'तुम' दिवाली मना सको।
#इस_दीवाली_एक_दीप_भारतीय_सेना_के_नाम
#क्वीन

Tuesday, October 25, 2016

तब तुम मेरी ताकत थी और आज...

कुछ किस्से कागजों पर तो कुछ दिल में आबाद हैं। तुम्हारी आंखों ने पता नहीं कितने धोखे दिए। लोग कहते थे कि आंखें हमेशा सच बोलती हैं, आंखों में हर सच दिखाई देता है लेकिन मेरे साथ तो हर बार तुम्हारी आंखों ने ही फरेब किया, हर बार उन आंखों पर भरोसा करके लुटता ही रहा।

पता है, अगर आप किसी को धोखा देने में कामयाब हो जाते हैं तो इस बात से उसकी बेवकूफी का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए, बल्कि यह सोचना चाहिए उस इंसान को आपसे मोहब्बत कितनी थी कि आपकी हर एक बात पर अंधविश्वास करता गया। मैं इसलिए हर बार हारता गया क्योंकि मेरी हार की वजह से तुम्हें जीत मिल रही थी और तुम्हारी जीत से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं था।

जब पता लगा कि मेरे दर्द पर तुम मुस्कुराती हो तो ईश्वर से दुआओं में दर्द ही मांगने लगा। और वैसे भी प्रकृति का नियम है कि जो जैसा करता है, उसे उसके अनुरूप ही परिणाम मिलता है। क्या हुआ जो तुम किसी और के लिए मुझे छोड़ कर चली गई। मैंने भी तो तुम्हारे लिए सबको छोड़ दिया था...बुजदिल नहीं था मैं, परिणाम जानता था... देखो, हौसलों ने साथ और आज भी खड़ा हूं, उतनी ही मजबूती से, उससे बेहतर स्थिति में... बस तब तुम ताकत बनकर मेरे साथ खड़ी थी और आज तुम्हारे साथ बिताए गए लम्हें मेरी ताकत बन चुके हैं...
#क्वीन

मेरे वजूद में जिंदा हो तुम

मुझे नहीं पता कि आज तुम कहां और कैसी हो...ना ही मैंने कभी इस बारे में पता करने की कोशिश की और ना ही पता करने की जरूरत समझी... तुम्हें पाने की कभी तमन्ना ही नहीं रही, तुम हो, बस इतना ही काफी है। क्या गलती थी तुम्हारी या मेरी जो आज हमें एक-दूसरे का पता नहीं...सच कहूं, तो वह कोई गलती नहीं थी, वह तो जरूरत थी समय की... मुझे अब उस बात का, उस दिन का बिलकुल अफसोस नहीं...

इस दुनिया में अगर कोई और किसी तरह का गुनाह करता है तो शोर मचने लगता है लेकिन जब अपना गुनाह होता है तो चुप्पी छा जाती है... पता है हममें खास बात क्या है... हम दोनों में से किसी ने एक-दूसरे को अलग होने को जिम्मेदार नहीं ठहराया। यह हमने उस दौर में किया जब 'जरूरत' रिश्तों की बुनियाद में इस कदर बैठ चुकी है कि रिश्तों की मर्यादा शून्य हो गई है। ठंड में लोग जिस सूर्य के लिए तरसते हैं, उसके बाहर आने की दुआएं करते हैं और गर्मी में उसे ही गाली देते हैं, उसी तरह से आज के रिश्ते हो गए हैं।

बस इतनी सी तमन्ना है कि कभी जिन्दगी के किसी मोड़ पर अगर हम दोनों एक-दूसरे से टकराएं तो हमें नजरें झुकाकर बात ना करनी पड़े। मैं अपने रिश्ते के अवाचित शाश्वत सत्य को हर दिन एक नया मुकाम देने की कोशिश करता रहा। हमें पता होता है कि हमारी बनाई रंगोली अगले ही दिन मिट जाएगी, फिर भी हम उसे सर्वाधिक मनमोहक, आकर्षक और कलात्मक रूप देने का प्रयास करते रहते हैं। उसी रंगोली की तरह ही मैं जानता था कि हमारे रिश्ते का कोई वजूद नहीं, कोई भविष्य नहीं लेकिन फिर भी उसे एक खूबसूरत मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया... और देखो आज लोग तुम्हें एक नए नाम से खोज रहे हैं... और तुम मेरी पहचान बनकर मेरे वजूद में जिंदा हो...
#क्वीन

Wednesday, October 5, 2016

कुछ सवाल

उस दिन तुम्हारी मौसी ने जब मुझसे उस इंसान के बारे में पूछा था, जिससे मैं मोहब्बत करता हूं तो बचपन और प्यार की भावनाओं में बहकर उन्हें तुम्हारा नाम छोड़कर सब कुछ बता दिया था। बहुत हंसी थी तुम्हारी मौसी उस दिन... और तुम वहीं सामने बैठकर ऐसा व्यवहार कर रही थी जैसे बिलकुल अनजान हो तुम... जब कमरे से निकलकर पर्दे के पीछे तुमसे नजरें मिली तो बस तुमने इतना ही कहा कि तुमसे जब कोई तुम्हारे प्यार के बारे में पूछता है तो तुम उसे मेरे बारे में क्यों बताते हो? कोई जवाब नहीं दे पाया था मैं तुम्हारी इस बात का, और देता भी कैसे? मेरे पास इस बात का कोई जवाब था ही नहीं....

पता नहीं उसदिन कैसा लगा होगा तुम्हें जब तुम्हारी उन्हीं मौसी के लड़के ने तुमसे कहा, 'दीदी, एक गौरव भइया हैं, उनकी कोई क्वीन है, बहुत प्यार करते हैं। देखो ना, कितना प्यारा लिखते हैं लेकिन लगता है उनकी क्वीन को उनकी परवाह ही नहीं।' तुम्हारी दोस्त ने बताया कि तुम बिना कुछ बोले चुपचाप वहां से चली गई थी। आखिर कहती भी क्या? अपने भाई को क्या बताती कि 9 साल पहले क्या हुआ था?

हजारों लोग पढ़ते हैं तुम्हें... मेसेज करते हैं मुझे और पूछते हैं तुम्हारे बारे में... लेकिन पता है, मैं बस यही सोचता रहता हूं कि तुम मुझे पढ़ती होगी या नहीं... तुम कभी मेरी टाइमलाइन पर आकर उन बीते लम्हों में खुद को फिर से खोजने की कोशिश करती होगी या नहीं... तुम अपने नए 'दोस्त' के साथ क्या कभी उन पलों को आज से बेहतर पाती होगी? बस इन्हीं सवालों के साथ कीबोर्ड पर उंगलियां चलाता रहता हूं... सवालों के जवाब पाने की उम्मीद में....
#क्वीन

उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा....

उस दिन जन्मदिन था तुम्हारा। तुम मेरे ठीक सामने उसी स्टेलर आईटी पार्क में बैठी थी। तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम अपने उस 'एक्सको बहुत मिस कर रही थी। मैंने तुम्हारी जिंदगी के उस खास दिन को 'बेहद खासबनाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन तुम्हारी रूह से निकलकर चेहरे तक आ रहे दर्द को रोकने में नाकाम रहा। केक का वह पांचवा टुकड़ा जो तुमने अपने हाथों से मेरे मुंह में डाला था उसके स्वाद को लेने का मौका ही नहीं मिला। तुम्हारी आंखों के उस दर्द को महसूस करने की कोशिश में लगा हुआ था मैं लेकिन वह कोशिश कामयाबी के मुकाम तक नहीं पहुंच सकी।

आज... आंख बंद करते ही तुम्हारा चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता हैबेहद कमाल होता है वह अहसास... पता नहीं कौन सी दौलत थी तुम्हारी उन आंखों मेंनजर मिलते ही ऐसा लगता है जैसे तुमने मेरी सारी जिंदगी खरीद ली हो। उन आंखों में सूर्य जैसी ओजस्विता थी... जब मेरी पलकें नीचे झुकती थीं तो लगता था जैसे सूर्यसमंदर में डूब रहा हो... ऐसा लगता था जैसे वह समंदर सूर्य की तपन को झेल नहीं पाएगाऐसा लगता था कि अब या तो समंदर सूख जाएगा या सूर्य का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा...

पता है तुम्हें... मैं अपनी जिंदगी को गुजारना नहीं चाहता था... मैं जीना चाहता था... तुम्हारे साथ... मुझे पता था कि यह सब मुश्किल होगा लेकिन कभी-कभी बारिश आने पर छाता हटाकर भीगना ज्यादा अच्छा लगता है...
#क्वीन

हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....

हर बात दिल के रास्ते जुबां पर आ ही जाए, ऐसा जरूरी तो नहीं। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि कोई खास बात दिल से निकलकर आंखों के रास्ते आपके सामने आ जाए। हां, मैं तुमसे नहीं कह पा रहा था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और यही तो तुम भी कर रही थी। तुम्हारी गलियों के रास्ते तो याद रहते थे लेकिन ठिकाना याद नहीं रहता था। गलती तो थी, मैं हर दिन, हर शाम तुम्हारी गलियों में क्यों जाता था, हर रोज क्यों अपनी क्लास खत्म होने के बाद भी 2 घंटे रुक कर तुम्हारा इंतजार करता था, क्यों मैं तुम्हारे पीछे अपनी साइकल से तुम्हारे घर तक जाता था? गलती यह नहीं थी कि मैं यह सब करता था बल्कि गलती यह थी कि मैं यह सब करते जता नहीं पाता था। बिलकुल पागल था मैं, तुम्हारे चेहरे की उस मासूमियत को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था, भूल गया था कि उस मासूमियत के पीछे भी एक राज था। एक ऐसा राज जिसका सच तुम भी नहीं जानती थी।

तुमसे मेरी नजदीकियां इस कदर बढ़ गई थीं कि रात के ख्वाबों में भी तुम्हें अपने पास ही महसूस करता था। और जब सुबह आंखें खुलती थीं तो पता लगता था कि तुम तो हो ही नहीं। क्या वे इशारे थे कि तुम सच में मेरी जिन्दगी से उसी ख्वाब की तरह जाने वाली हो। शायद हां, और शायद नहीं भी... हां इसलिए क्योंकि तुम उसी ख्वाब की तरह मेरी जिंदगी से चली गई और नहीं इसलिए क्योंकि मेरा 'चुनाव' गलत नहीं हो सकता।

पता है, मैं बस इतना चाहता था कि हम दोनों के सामंजस्य का स्तर वहां तक पहुंचे कि एक-दूसरे की सासों में हम एक-दूसरे ने नाम की प्रतिध्वनि को सुन सकें। एक-दूसरे पर विश्वास की पराकाष्ठा कल्पनाओं की सीमाओं को भी पार करके एक नई ऊंचाई पर पहुंच सके। ऐसा प्रेम हो कि एक-दूसरे के सामने चुपचाप बैठकर भी मन के भावों की अनुभूति कर सकें। हां, बिलकुल भक्त और भगवान के स्वरूप में....
#क्वीन

मेरा गुरूर

बहुत गुरूर था मुझे कि मेरी मोहब्बत जिस्म से नहीं बल्कि रूह से है लेकिन जब मोहब्बत अंबर तक जा पहुंची तो अहसास हुआ कि रूह से की गई मोहब्बत तो सिर्फ दर्द देती है। मैंने जो मोहब्बत की थी, उसकी सच्चाई की गवाही सिर्फ दो लोग ही दे सकते थे। एक तो वक्त और दूसरी तुम। वक्त का चरित्र तो गुजरना होता ही है लेकिन तुम्हारा चरित्र तो मुकरना नहीं था। तुम मुकर गई तो ऐसा लगा लगा कि जैसे तुम 'इच्छा' यानी ख्वाहिश की तरह थी। जो पूरी होने के बाद तुरंत बदल जाती है।

काश! तुम मेरे बंजर जिस्म पर शबनम की तरह पिघलती जाती और मैं प्यासी धरती की तरह समर्पण लिए तुममें खोता जाता। तुम्हारे नाम से मोहब्बत थी, तुम्हारे अहसास से मोहब्बत थी, तुम जिन लम्हों में मुझे अपना कहकर मुझ पर अपना अधिकार जताती थी उन लम्हों से मोहब्बत की थी, तुमसे मिलना तो महज एक ख्वाब हुआ करता था। 

तुमसे मिलने के लिए जिस शिद्दत से इंतजार करता था, सही मायनों में मैं उसी शिद्दत से तो मोहब्बत करता था। उस मोहब्बत में ना तो कोई हद थी और ना ही लालच... वहां था तो सिर्फ प्रेम शाश्वत प्रेम... वह प्रेम जिसके एक छोर पर मेरे राम थे तो दूसरे छोर पर तुम्हारे अल्लाह...
#क्वीन

मेरी निर्माता हो तुम

पता है, एक मॉल में स्थित कपड़ों के शोरूम में एक ड्रेस 3 महीनों से शो पीस के तौर पर लगी हुई थी। उसे कोई नहीं खरीदता था। शोरूम के मालिक ने सोचा कि अगले दिन उस ड्रेस को अंदर रख देगा। उसी दिन एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री शूटिंग के लिए मॉल में आई। उसकी नजर उस ड्रेस पर पड़ी, उसने तुरंत उस ड्रेस को खरीद लिया। 3 दिन बाद एक राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका के लिए उसने उसी ड्रेस में फोटोशूट कराया। इसका प्रभाव यह हुआ कि रातों-रात उस शोरूम के मालिक के पास उस तरह की ड्रेस के लिए हजारों की संख्या में ऑर्डर आ गए।

तुम्हें पता है, हमारी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जब तक मैंने तुम्हें नहीं देखा था तब तक सब कुछ सामान्य था। जब तक तुम मुझे पसंद नहीं आई थी तब तक सब कुछ सामान्य था, जब तक मैंने तुम्हें अपनी आराधना नहीं बनाया था तब तक सब कुछ सामान्य था लेकिन जैसे ही मैंने तुम्हें लिखना शुरू किया तब से हजारों की संख्या में तुम्हें खोजने लगे। वे जानना चाहते हैं कि मेरी 'क्वीन' कौन है? कौन है जिसने मुझे बनाया? कौन है जिससे मुझ जैसा लड़का मोहब्बत कर बैठा? 

सुनो, मैं मानता हूं कि मुझे बनाने में तुम्हारा अहम योगदान है। अगर मैं तुम्हें अपना निर्माता कहूं तो गलत नहीं होगा। लेकिन कभी इस बात का अहंकार मत करना क्योंकि इस सच के साथ एक और सच भी जुड़ा है और वह सच यह है कि तुमको भी मैं ही बना रहा है। मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारा निर्माण करूं यह वांछित नहीं है लेकिन अपने स्वाभिमान संरक्षण के लिए मेरे लिए ऐसा करने की अनिवार्यता है।
#क्वीन

समय की रफ्तार

समय किस रफ्तार से अपनी चाल बदल देता है, इस बात का अंदाजा लगाना हमारी कल्पना से भी परे होता है। पता है, तब एक समय था जब किसी के साथ भी बैठो तो बस तुम्हारी ही बातें हुआ करती थीं और एक समय अब है, कि अगर कोई तुम्हारा नाम भी ले ले तो बात बदलनी पड़ जाती है। आखिर बात न बदलूं तो और करूं भी क्या? तुम्हारे साथ बिताए गए उन पलों को याद करके आंखों में आए आंसुओं को किसी के भी सामने रोकने की क्षमता नहीं है मुझमें। 

मैं कभी तुमसे नाराज नहीं होता था, क्योंकि नाराज तो वे होते हैं जिनको इस बात का गुरूर होता है कि कोई है जो उन्हें मनाने आएगा। लेकिन मैं इस तरह की किसी भी गलतफहमी के आगोश में नहीं था। तुमने मुझे सत्य से कभी विमुख नहीं होने दिया। तुम्हारी जरूरत, फिर इंतजार की उम्मीद और उम्मीद टूटने के बाद होने वाले अकेलेपन के अहसास को किस तरह से महसूस करता था मैं, तुम कभी नहीं समझ सकती। 

 तुम इतने दिनों से मेरे पास ही रहती हो लेकिन मैं तुम्हें एक बार देखने तक नहीं आया? यही सोचती हो ना तुम? पता है, इंतजार करते-करते इतना थक गया था कि तुम्हें अपने दिल से निकाल दिया। और जब कोई दिल से निकल जाता है तो उसे देखना तो दूर उसके बारे में बात करने का भी दिल नहीं करता।
#क्वीन