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Wednesday, June 29, 2016

आज फिर वहां गया था

पता है आज पूरे 1 साल 9 महीनों के बाद उस जगह पर गया था जहां पर कभी तुम्हारे सामने बैठे-बैठे मेरी आंखें नम हो गई थीं। हां वही, नोएडा का स्टेलर आईटी पार्क... लेकिन पता है उस टेबल पर नहीं बैठा जहां हम आखिरी बार साथ बैठे थे, पर वह मेरे सामने ही थी... उस दिन मेरी आंखों में आई हुई नमी की वजह तो याद ही होगी तुम्हें.... कितने प्यार से लेकर आया था तुम्हारे लिए वह तोहफा...तुमने भी उतने ही प्यार से उसे स्वीकार किया था लेकिन उसे खोल कर देखने के बाद तुमने मुझे वापस बुलाया और एक आधारहीन वजह बता कर उसे लेने से मना कर दिया... कैसे वापस ले लेता उस चीज को जिसे खरीदने के लिए मुझे बेइंतहा संघर्ष करना पड़ा था।
सच कह रहा हूं, अगर उस दिन तुम उसे अपने पास न रखती तो मुझे बहुत दुख होता... पर उस दिन की तरह आज मेरी आंखों में आंसू नहीं थे... बहुत खुश था मैं...मेरे साथ आज मेरे कई स्टूडेंट्स भी थे...पता है वे सब भी तुम्हारे बारे में पूछते रहते हैं...
खैर छोड़ो ये सब, बस इतना बताना चाहता हूं कि बिना तुम्हारे उस जगह पर बिलकुल रौनक नहीं लगती...
#क्वीन

Tuesday, June 28, 2016

तुम्हारे होने की वजह

लोगों की हकीकत ने हालात बदल दिए, पर वह सपना आज भी जिंदा है...सपनों को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए...
सोचो अगर मैंने अपने सपनों को मार दिया होता तो क्या तुम 'क्वीन' बन पाती...
अगर मैं अपने सपनों को मार देता तो क्या लोग तुम्हें जानने की कोशिश करते? तुम्हारे ज़िंदा होने का कारण मेरे सपनों का जिंदा रहना है...
‪#‎क्वीन‬

तुमसे ही तो सीखा है

मेरी जिन बातों को तुम बड़ी आसानी से अनसुना कर देती थी, वे सामान्य बातें नहीं थीं, उन बातों के हर एक शब्द में बस तुम्हारा ही अहसास तो होता था...मेरी ओर चुपके से एक नजर देख कर निगाहें फेर लेना बड़ा आसान था ना तुम्हारे लिए, लेकिन तुम्हारी उस अनदेखी का दर्द आज भी दिल की गहराइयों में दबा बैठा है। तुम्हारी एक झलक के लिए अपने उसूलों तक से बगावत कर लेता था... आसान नहीं था मेरे लिए वह सब करना लेकिन करता था, जानती हो क्यों? क्योंकि तुम्हारी बेरुखी को करीब से महसूस करने की आदत पड़ गई थी...
मोहब्बत में शर्तें नहीं होतीं, बस यही मानकर तुम्हारी हर एक बात को मानता गया, मुझे तो इतना ख्याल भी नहीं रहा कि मैं तो शर्त नहीं रख रहा था लेकिन अनजाने में तुम्हारी हर एक शर्त को मानता जा रहा था। क्या मैं गलत था? नहीं, मैं तब भी सही था और आज भी सही हूं... मैं तुम्हारे सामने जितना कमजोर पड़ता था, आज परिस्थितियों के सामने उतनी ही मजबूती से खड़ा रहता हूं....
जब वह सब कुछ झेल लिया तो उसके सामने तो यह कुछ भी नहीं है... मेरी कमजोरियों को मेरी ताकत तुमने ही तो बनाया था... मुझे पता है आज तुमको मेरी बेरुखी परेशान करती होगी लेकिन यह भी तो तुमने ही सिखाया है ना....
‪#‎क्वीन‬

Monday, June 27, 2016

कैसे बताऊँ कौन हो तुम?

अब तो कभी-कभी यह तक सोचने लगता हूँ कि तुम्हारा मेरी ज़िन्दगी में एक 'स्वप्न' की तरह आना कहीं कोई ईश्वरीय योजना तो नहीं थी... क्या था मैं...कुछ भी तो नहीं...कोई नहीं जानता था मुझे...जो जानते भी थे, वे 'मानते' नहीं थे...पर अब लोग जानने लगे हैं...इससे भी ख़ुशी की बात यह है कि वे मानने भी लगे हैं।
एक वादा करता हूँ आज तुमसे...तुमको सब कुछ ब्याज सहित वापस करूँगा...तुम मेरी पहचान बनाने में जो सहयोग कर रही हो उसका बदले में मैं तुम्हें 'विशिष्ट' बना दूंगा। मैं जानता हूँ किसी सामान्य(व्यवहार के परिपेक्ष्य में) सी लड़की को #क्वीन बनाना इतना आसान नहीं है पर विश्वास करो इतना मुश्किल भी नहीं है। तुमने ही तो सिखाया था मुझे...
पर कभी-कभी एक बात बहुत परेशान करती है, अजब सी कश्मकश में फंस जाता हूँ जब कोई तुम्हारा नाम पूछता है...निरुत्तर हो जाता हूँ जब कोई यह पूछता है कि आखिर #क्वीन है कौन...
बस यहीं पर चुप हो जाता हूँ और कोसिस करता हूँ लोगों को बरगलाने की...और कोई विकल्प भी तो नहीं है ना... कल्पनाओं का वास्तविक नाम हो भी कैसे सकता है...

मेरी कोई 'एक्स' नहीं...

उस दिन पहली बार देखा था तुम्हें और उसी दिन 'मोहब्बत' पर पहला ब्लॉग भी लिखा था। तुमको लिंक भी भेजा था ब्लॉग का...पर भूल गया था कि तुम्हारा स्मार्टफोन तो हिंदी सपोर्ट ही नहीं करता था। पता नहीं तुमने वह ब्लॉग आज तक पढ़ा या नहीं लेकिन तुमको पता है मेरे द्वारा लिखे गए ब्लॉग्स में सबसे ज्यादा पढ़े गए 5 ब्लॉग्स में से 1 है वह ब्लॉग।
इसके बाद जब कभी तुम्हारी नजर में मेरी कोई शायरी आती थी तो तुम मुझसे पूछा करती थी, 'गौरव, कौन है वह?' कैसे बताता तुमको,तुम्हारे ही सामने खड़े होकर...वह भी तब जब मुझे इस शाश्वत सत्य का ज्ञान हो कि हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते।
तुम अटकलें लगाती थी, तुमको यही लगता था ना कि वो सब मैं अपनी किसी 'एक्स' के लिए लिखता हूँ। गलत थी तुम, ना तो मेरी कोई 'एक्स' थी और ना ही कोई 'प्रेजेंट'...
मैं कल्पनाओं के सागर में डूबकर वांछित प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुँच जाता था। अकथित शब्दों के पीछे छिपे शाश्वत भाव को काश तुमने समझ लिया होता...कभी-कभी यह ख्याल भी आ जाता है लेकिन फिर इस ख्याल की हत्या कर देता हूँ क्योंकि अगर तुम समझ भी जाती तो भी किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता....
आज भी उन्हीं कल्पनाओं में डूबकर तुम्हें अपने हर एक लम्हे में महसूस करता हूँ लेकिन एक बार सोचकर देखो अगर मुझमें यह कल्पनाशक्ति भी न होती तो क्या होता...
#क्वीन

Sunday, June 26, 2016

पहली छुअन का अहसास

याद है ना तुमको...उस दिन तुम मेरे साथ अपने एडमिशन की बात करने के लिए कॉलेज गई थी... बहुत मुश्किल होता था तुम्हारा घर से बाहर निकलना... पहली बार हम एक साथ कहीं बाहर निकले थे...नहीं तो घर और कॉलेज के सिवा कहीं देखना भी नहीं हो पाता था। तुम्हारे घर वाले बहुत विश्वास करते थे मुझ पर... छात्र राजनीति से जुड़े रहने के कारण हमें लाइन में नहीं लगना पड़ा और 10 मिनट में सारी जानकारियां लेकर हम कॉलेज से बाहर निकल आए..

इस शानदार मौके को हम दोनों में से कोई गवांना नहीं चाहता था... मैंने तुमसे कहा कि चलो मूवी देखने चलते हैं लेकिन तुम... आखिर तुम तो तुम ही थी ना...तुमने कहा कि नहीं आज पहली बार साथ में बाहर निकले हैं तो मंदिर चलेंगे... 

वहां से 35 किलोमीटर दूर के एक मंदिर में जाने का हमने प्लान बनाया... मां भगवती ने दर्शन तो दे दिए लेकिन वहां से वापस आने के बाद जो बारिश शुरू हुई थी, उसको बयां करना नामुमकिन है... आंखें नहीं खुल रही थीं... बाइक पर जब उस दिन तुम मेरे साथ बैठी थी और तुम्हारे हाथों ने मेरे कंधे को डरकर दबाया था, तुम्हारे उस डर ने मुझे पहली छुअन का अहसास दिलाया था... 2 घंटे तक हम बारिश में भीगते रहे लेकिन बारिश रुकने के बाद सिर्फ 10 मिनट में जिस तरह से हमारे कपड़े पूरी तरह से सूख गए थे वह सच में अकल्पनीय था...
लेकिन यही तो ईश्वर की क्षमता है...
‪#‎क्वीन‬

हमारी पहली चैटिंग

उस दिन पहली बार चैट कर रहे थे हम। अब की तरह ही मैं हिंदी में लिख रहा था और तुम अंग्रेजी में...उस दिन तुमने कहा था, 'गौरव, तुम तो इंग्लिश मीडियम से हो फिर भी हिंदी में मेसेज करते हो, इंग्लिश में मेसेज करो...मुझे ज्यादा अच्छे से समझ में आएगा।' और फिर मैंने क्या कहा था याद है तुम्हें, ' दुनिया की कोई भी महिला बहुत सुंदर हो सकती है। यहाँ तक कि वह एमा स्टोन,चार्लीज़ थेरॉन, ओलिविया वाइल्ड,कैटरीना या माधुरी से भी ज्यादा खूबसूरत हो सकती है लेकिन वह मेरी मां से सुंदर नहीं हो सकती... और उसी तरह हिंदी भी है... मां है मेरी...उससे बेहतर और सुविधाजनक कुछ भी नहीं हो सकता।'

आज भी वह मेसेज सेव है। वैसे तुमको हिंदी ज्यादा नहीं आती थी तो उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। तुम जहाँ से आई थी वहां तो कोई हिंदी का क..ख..ग.. भी नहीं जानता था। और फिर वह दिन तो याद ही होगा तुम्हें जब मैं तुमसे किसी छोटी सी बात पर नाराज होकर बात नहीं कर रहा था...तुमने बहुत मासूमियत से भरा हुआ हिंदी में वह मेसेज किया था, 'गौरव, देखो अब तो हिंदी में भी लिखना सीख गई, प्लीज बात करो ना...'
सच में बिलकुल पागल थी तुम...और मुझे भी बना कर चली गई...
लेकिन एक सच और भी है...तुम भले ही मुझको न मिली हो लेकिन मोहब्बत की भाषा 'उर्दू' तो तुम्हारी वजह से ही सीख पाया...लिखना न सही पर सुनकर समझना तो सिखा ही दिया था तुम्हारी मोहब्बत ने....
#क्वीन

Saturday, June 25, 2016

तुम्हारी वह पहली कविता

वह कविता जो तुमने लिखी थी, तुम्हारा कॉन्फिडेंस कितना गिरा हुआ था उस दिन। आखिर पहली कविता थी तुम्हारी। डर रही थी तुम कि किसी को पसंद आएगी भी या नहीं। पता नहीं कैसी थी तुम्हारी वह कविता। लेकिन आज एक सच बता रहा हूँ तुम्हें। तुम्हारी उसी कविता से प्रेरणा लेकर मैंने भी लिखना शुरू किया था। तुम्हारी तरह सधा हुआ तो नहीं लिख पाया पर जो मन में आता था वह लिख देता था।
सच में 'कुछ भी' लिख देता था और आज भी वैसा ही हूँ। तुम तो खुद में एक कविता थी और मुझे तो सिर्फ 'भाषण' देना आता था। आकाश और पाताल का अंतर होता है लिखने और बोलने में...
पर आज देखो, शायरी भी लिखने लगा लेकिन वो मेरी नहीं होती। हर एक शब्द में तुम ही तो बसती हो, सिर्फ तुम...
‪#‎क्वीन‬

मेरी पहली कविता

उस दिन जब तुमको अपनी पहली कविता भेजी थी, तो याद है तुमने क्या कहा था...गौरव, ये तो मेरी है...कुछ अपना लिखो...
मेरे जर्रे-जर्रे में बस तुम ही तो समाई थी, तुम्हारे सिवा कभी कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली। कैसे लिखता कुछ और? हर पल तुम्हारे ख्यालों में ही तो खोया रहता था। बहुत गुरूर था तुममें, मेरी लिखी हर चीज को अपना साबित कर देती थी। फिर अपनी 'उस' दोस्त को पढ़कर सुनाती थी कि देखो गौरव ने मेरे लिए क्या लिखा है।
तुमको लगता था कि मैं सब कुछ तुम्हारे लिए लिए ही लिखता हूँ सही सोचती थी तुम...लेकिन आज... आज तो अनजान लोग मेरी कहानी को खुद से जोड़ लेते हैं... कॉमेंट्स पढ़ती हो ना तुम... अब हमारी कहानी में तुम्हारी और मेरी जगह किन्हीं और लोगों ने ले ली है...कैसा लगता है तुमको?
‪#‎क्वीन‬

Friday, June 24, 2016

आंखें देखी थी अपनी?

तुम्हें याद है? उस दिन तुम कॉलेज से जल्दी चली गई थी और मैं लंच टाइम में तुमको यहाँ से वहाँ खोजता रहा। वही 45 मिनट तो होता था मेरे पास, जब मैं तुम्हें इतने करीब से देख पाता था। क्या करता जिस दिन तुमको नहीं देखता था उस दिन मन में एक अजीब सी बेचैनी रहती थी। ऐसा लगता था जैसे कुछ खो सा गया हो। फिर तुम्हारी उस खास दोस्त ने बताया कि तुम्हारी तबियत ख़राब हो गई थी जिसकी वजह से तुम घर चली गई। दोपहर का 1 बज रहा था। मैंने तुम्हें 100 से भी ज्यादा कॉल किए लेकिन तुमने फोन नहीं उठाया। शायद आराम कर रही थी तुम।
तुम्हारे घर के नीचे शाम 7 बजे तक खड़ा रहा। आखिर तुमने फोन उठाया और मुझे अपनी बीमारी की वजह बताई। तुम बिलकुल पागल थी। क्यों करती थी इतनी परवाह उस इंसान की जो तुम्हें कुछ भी नहीं समझता था? उसकी वजह से खुद को बीमार कर लेती थी।
जब मैं दवाइयाँ लेकर वापस तुम्हारे घर आया और तुम दवाइयाँ लेने नीचे आई, उस वक़्त अपनी आँखें देखी थीं? कितनी लाल थीं वे....
कितना रोया था उस दिन मैं... जानती हो क्यों? क्योंकि मुझे तुम्हारे आंसुओं से फर्क पड़ता था, लेकिन तुम्हें.......
‪#‎क्वीन‬

कैसे अपनाती मुझे...

हां, उस दिन हार गया था मैं। क्यों तुमने ऐसी शर्त रखी जिसे पूरा करना मेरे लिए मुमकिन ही नहीं था। तुम तो जानती थी ना कि मैं अपने दायित्व को किसी भी हालत में छोड़ नहीं सकता। मेरे लिए सब कुछ मेरा दायित्व ही तो था। मेरे कर्म के सिद्धान्त का आधार भी वही था और मेरी पहचान भी।
अगर तुम्हारी बात मान लेता तो शायद तुम्हें तो पा लेता लेकिन खुद को खो देता। क्या ऐसे गौरव को स्वीकार करना तुम्हारे लिए संभव होता?
‪#‎क्वीन‬

Thursday, June 23, 2016

कौन हो तुम...

लोग पूछते हैं कौन हो तुम।
अगर बताता हूँ तो मानते नहीं। क्यों नहीं हो सकती तुम वो?
कुछ पुराना:
क्या मेरा 'काफिर' होना मेरी गलती थी। बिलकुल नहीं।
ये तो एक तोहफा था जो मेरे पूर्व जन्मों के सद्कर्मों के कारण मिला था।
सिर्फ इस बात की वजह से तो नहीं गई थी ना तुम, फिर वजह क्या थी? बस उसी वजह को तो आज तक खोज रहा हूँ।
काश कोई बता पाता...
‪#‎क्वीन‬

अब लोग 'तुम्हें' पूछते हैं...

याद है तुम्हें, तुमने कहा था कि अगर अब कभी 'ये' सब लिखा तो मुझसे बात मत करना। मैंने तुम्हारी नहीं मानी, खैर तुमने कहा कि जैसा मन है वैसा करो लेकिन मुझसे सपॉर्ट की उम्मीद मत रखना।
मैंने भी कब अपेक्षा की थी की कोई मेरे दायित्व में मेरा साथ देते हुए साझेदारी करेगा। 
लेकिन अपने मन के उन विचारों को किससे शेयर करता जो सिर्फ मेरे थे, जो किसी और के हिस्से में नहीं आते थे।
खैर, वह भी एक दौर था...काफी सुखद भी था...
जब तुम मेरे साथ थी तब लोग मुझे पूछते थे और अब 'तुम्हें' पूछने लगे हैं।
‪#‎क्वीन‬

Wednesday, June 22, 2016

वह अंतिम मुलाकात

तुम्हें अंतिम बार जब देखा था तो बहुत खुश था, इसलिए नहीँ कि तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी बल्कि इसलिए क्योंकि मैं उस जगह पर आखिरी शख्श था जो तुम्हें देख रहा था। 
तुम चली गई। उम्मीद थी कि तुम अपनी मंजिल तक पहुँच कर मुझसे एक बार तो बात जरूर करोगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कुछ दिन के इन्तजार के बाद मैंने तुम्हारा नंबर भी डिलीट कर दिया। जिंदगी की पहली ऐसी लड़की थी तुम जो मेरी कल्पनाओं को हक़ीक़त में बदल सकती थी। पता नहीं इसे मोहब्बत कहते हैं या कुछ और। मुझे तो बस इतना पता है कि जिस दिन तुम मेरी नजरों से देखोगी, तुम्हें अपनी ज़िन्दगी और भी खूबसूरत लगने लगेगी।
तुमने मुझे बहुत कुछ दिया है, अनजाने में ही सही लेकिन दिया तो है ही...
कल पूरे दिन तुम्हारी कॉल का इंतजार किया, लेकिन परिणाम तो शून्य ही होना था क्योंकि मेरा लक्ष्य भी तो 'शून्य' की प्राप्ति ही तो है...
मेरा स्वाभिमान ही मेरी ताकत है...और तुम्हारा 'बचपना' मेरी कमजोरी....
‪#‎क्वीन‬