हां, उस दिन हार गया था मैं। क्यों तुमने ऐसी शर्त रखी जिसे पूरा करना मेरे लिए मुमकिन ही नहीं था। तुम तो जानती थी ना कि मैं अपने दायित्व को किसी भी हालत में छोड़ नहीं सकता। मेरे लिए सब कुछ मेरा दायित्व ही तो था। मेरे कर्म के सिद्धान्त का आधार भी वही था और मेरी पहचान भी।
अगर तुम्हारी बात मान लेता तो शायद तुम्हें तो पा लेता लेकिन खुद को खो देता। क्या ऐसे गौरव को स्वीकार करना तुम्हारे लिए संभव होता?
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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