वह कविता जो तुमने लिखी थी, तुम्हारा कॉन्फिडेंस कितना गिरा हुआ था उस दिन। आखिर पहली कविता थी तुम्हारी। डर रही थी तुम कि किसी को पसंद आएगी भी या नहीं। पता नहीं कैसी थी तुम्हारी वह कविता। लेकिन आज एक सच बता रहा हूँ तुम्हें। तुम्हारी उसी कविता से प्रेरणा लेकर मैंने भी लिखना शुरू किया था। तुम्हारी तरह सधा हुआ तो नहीं लिख पाया पर जो मन में आता था वह लिख देता था।
सच में 'कुछ भी' लिख देता था और आज भी वैसा ही हूँ। तुम तो खुद में एक कविता थी और मुझे तो सिर्फ 'भाषण' देना आता था। आकाश और पाताल का अंतर होता है लिखने और बोलने में...
पर आज देखो, शायरी भी लिखने लगा लेकिन वो मेरी नहीं होती। हर एक शब्द में तुम ही तो बसती हो, सिर्फ तुम...
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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