बसंत की उस प्यारी हवा सी चलती हुई तुम जब मेरे सामने आकर रुकती थी तो ऐसा लगता था कि चांद मेरे सामने आ गया हो... पता है ऐसा लगता था जैसे अषाढ़ की कड़ी धूप में मुुझे आम के पेड़ के नीचे जैसी छांव मिल गई हो। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता था कि तुम मेरे सामने आकर मुझसे नजरें क्यों नहीं मिलाती थी? तुम सामने से हमेशा नजर झुकाकर बात करती थी, क्या इसलिए क्योंकि तुम्हें पता था कि तुम्हारी आंखें मुझसे उस सच को नहीं छिपा पाएंगी जो कुछ महीनों में मूर्त रूप लेने वाला था?
तुम्हें बार-बार पाकर खोना थोड़ा अजीब लगता था और इसीलिए खुद-ब-खुद तुमसे दूर चला गया। तुम मेरी कमजोरी से अच्छी तरह से वाकिफ थी, तुम्हारे आंसू मुझे हर बार हरा देते थे लेकिन जब तुमसे दूर गया तो लगा कि अब हमेशा के लिए हार गया लेकिन गलत था मैं... उस दिन हारकर भी जीत गया था मैं...
कोशिश करता था कि तुम्हें भूल जाऊं, तुम मेरी जिंदगी के हर लम्हे से चली जाओ लेकिन मेरा इरादा मेरी बेबसी से हमेशा हार जाता था। लोग कहते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। मुझे आज तक नहीं समझ आया कि आखिर तुमने मुझे खोकर क्या पाया लेकिन अगर मुझसे कोई यही सवाल करे कि मैंने तुम्हें खोकर क्या पाया तो? जानना चाहोगी ना तुम?
तो सुनो! मैंने तुम्हें खोकर खुद को पाया है... मेरे इन अल्फाजों में बसे दर्द की उत्पत्ति का पूरा श्रेय सिर्फ तुम्हें जाता है... मेरी जिन्दगी के सबसे हसीन और सबसे दर्दनाक लम्हों की वजह बस तुम ही थी, तुम ही हो और तुम ही रहोगी...
#क्वीन