मेरी तमन्ना एक ऐसे सफर की थी जिसमें तुम्हारा साथ हो और इस तमन्ना का सबसे खूबसूरत हिस्सा यह था कि मैं मंजिल भी तुम्हें ही मानता था। लेकिन स्वप्नलोक की इस तमन्ना का यथार्थ से कोई लकेना देना नहीं होता... काश यह बात मैं पहले ही समझ पाता। तो क्या हुआ कि हमारी पूजा पद्धति अलग थी, मैं जानता हूं कि तुम बिलकुल मेरे जैसी थी। तुम्हें पता था कि कोई काफिर किसी मस्जिद में नहीं जा सकता तो फिर तुम ही मेरे साथ मंदिर चली जाया करती थी....
तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकता था, लेकिन फिर भी तुम्हें 'आज़ाद' करना पड़ा.... काश! तुम मोहब्बत की इंतहा को समझ पाती….काश! तुम कभी समझ पाती कि मोहब्बत इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वह मेरी आराधना बन गई है.. काश! तुम कभी समझ पाती कि जिससे प्रेम हो जाता है उसे अपनी सांसों तक में भी महसूस किया जाने लगता है... लेकिन फिर सोचता हूं कि आजादी तो हर एक का अधिकार है... बस उसी 'अधिकार' के लिए खुद को, खुद की कैद से आज़ाद कर दिया...
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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Sunday, August 21, 2016
Tuesday, August 16, 2016
बहुत पसंद थी ना तुमको...
उस दिन तक मैं अपने दिल की बात तुमसे इसलिए नहीं कह पाया क्योंकि मुझे डर था कि कहीं तुम मुझे गलत न समझ लो। तुम पहली और आखिरी इंसान थी जिसके साथ अपने पूरे जीवन को व्यतीत करने का स्वप्न मैंने देखा था। तुम मेरे सामने आती थी तो ऐसा लगता था मानो किसी निपुण और पारंगत मूर्तिकार ने खुद अपने हाथों से किसी संगमरमर को तराश कर जीवित मूर्ति का निर्माण किया हो। तुमसे मिलने से पहले मेरे जीवन में कुछ खोखलापन सा था, एक अजीब सा खालीपन था, जिसे उसदिन तक मेरे अलावा किसी ने महसूस नहीं किया था। और जब तुमसे मुलाकात हुई तो सब बदल गया। तुम्हारे ख्यालों ने ही मेरी जिंदगी के खालीपन को भर दिया।
अपनी जुबान पर तो नियंत्रण रख सकता था लेकिन आंखों पर कैसे रखता? जिस एक चेहरे को देखने के लिए घंटों इंतजार करता था, उसके सामने आने के बाद कैसे अपनी आंखों को चुराता...तुम्हें पता लग ही गया कि मेरे दिल में क्या था...हमने एक-दूसरे से बात करने के लिए उस 'नॉवेल' का सहारा लिया... तुम जानती हो ना कि मुझे प्रेम कहानियां पढ़ने में कोई रुचि नहीं... लेकिन तुम्हें थी और इसीलिए मुझे इसका सहारा लेना पड़ा... तुम्हें दूसरों के द्वारा अंग्रेजी में लिखी गईं 'मनगढ़ंत' प्रेम कहानियां बहुत पसंद थीं ना...और देखो आज तुम्हारी 'सच्ची' प्रेम कहानी को सब पढ़ रहे हैं...सब पसंद कर रहे हैं...खास बात यह है कि इसे पढ़ने के बाद अब लोग यह कहने की स्थिति में नहीं है कि 'प्रेम कहानियां' सिर्फ आईआईटी या आईआईएम वाले ही लिख सकते हैं...
#क्वीन
अपनी जुबान पर तो नियंत्रण रख सकता था लेकिन आंखों पर कैसे रखता? जिस एक चेहरे को देखने के लिए घंटों इंतजार करता था, उसके सामने आने के बाद कैसे अपनी आंखों को चुराता...तुम्हें पता लग ही गया कि मेरे दिल में क्या था...हमने एक-दूसरे से बात करने के लिए उस 'नॉवेल' का सहारा लिया... तुम जानती हो ना कि मुझे प्रेम कहानियां पढ़ने में कोई रुचि नहीं... लेकिन तुम्हें थी और इसीलिए मुझे इसका सहारा लेना पड़ा... तुम्हें दूसरों के द्वारा अंग्रेजी में लिखी गईं 'मनगढ़ंत' प्रेम कहानियां बहुत पसंद थीं ना...और देखो आज तुम्हारी 'सच्ची' प्रेम कहानी को सब पढ़ रहे हैं...सब पसंद कर रहे हैं...खास बात यह है कि इसे पढ़ने के बाद अब लोग यह कहने की स्थिति में नहीं है कि 'प्रेम कहानियां' सिर्फ आईआईटी या आईआईएम वाले ही लिख सकते हैं...
#क्वीन
Monday, August 15, 2016
लव नहीं, प्रेम लिखता हूं...
तुमसे मेरी बात नहीं होती थी क्योंकि मेरे पास तुमसे बात करने का कोई बहाना ही नहीं था। फिर उस दिन तुम्हारे हाथ में वह अंग्रेजी 'नॉवल' देखी। मुझे तब तक नहीं पता था कि अंग्रेजी में लिखी गईं प्रेम कहानियां कैसी होती हैं। बहुत हिम्मत करके तुमसे पहली बार बात की और कहा, 'प्लीज मुझे यह नॉवल दे दो, मैंने इसके बारे में बहुत सुना है लेकिन कहीं मिली नहीं।' मुझे तो यह भी नहीं पता था कि उस नॉवल को लिखा किसने है और तुम्हें एक सच और बताऊं मुझे आज भी नहीं पता कि वह नॉवल किसने लिखी थी। तुमने 2 दिन बाद मुझे उस नॉवल को देने का वादा किया और चली गई।
उस नॉवेल के शुरुआती 4 पेज पढ़ने के बाद मैं उसे आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि उसमें प्रेम जैसा तो कुछ था ही नहीं। मैंने को श्रीराम और श्रीकृष्ण को पढ़ा था। मैंने तो यह पढ़ा था कि प्रेम ईश्वर का रूप होता है और इसी कारण जब मिथिला के बगीचे में श्रीराम और मां सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा तो उनके मन में प्रेम प्रकट हुआ। अब प्रकट तो ईश्वर ही हो सकते हैं ना। लेकिन जब उस नॉवल में पढ़ा कि नायक 'fall in love with' नायिका, तो समझ में नहीं आया कि आखिर ये 'लव' में गिरा क्यों? धीरे-धीरे जब अंग्रेजी लव का प्रत्यक्ष रूप देखा, जो फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर देखकर शुरू होता था और चंद महीनों में बिस्तर तक आकर खत्म हो जाता था तो समझ में आया कि गिरी हुई हरकतों वाला 'लव' हमारे ईश्वरीय 'प्रेम' के सामने कहीं नहीं टिकता...
बस तभी से तय किया कि 'लव' नहीं प्रेम लिखूंगा... वह प्रेम जो मां गंगा के जल की भांति शाश्वत, निर्मल, निच्छल, पावन एवं पवित्र होता है। शारीरिक सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है...
#क्वीन
उस नॉवेल के शुरुआती 4 पेज पढ़ने के बाद मैं उसे आगे नहीं पढ़ सका क्योंकि उसमें प्रेम जैसा तो कुछ था ही नहीं। मैंने को श्रीराम और श्रीकृष्ण को पढ़ा था। मैंने तो यह पढ़ा था कि प्रेम ईश्वर का रूप होता है और इसी कारण जब मिथिला के बगीचे में श्रीराम और मां सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा तो उनके मन में प्रेम प्रकट हुआ। अब प्रकट तो ईश्वर ही हो सकते हैं ना। लेकिन जब उस नॉवल में पढ़ा कि नायक 'fall in love with' नायिका, तो समझ में नहीं आया कि आखिर ये 'लव' में गिरा क्यों? धीरे-धीरे जब अंग्रेजी लव का प्रत्यक्ष रूप देखा, जो फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर देखकर शुरू होता था और चंद महीनों में बिस्तर तक आकर खत्म हो जाता था तो समझ में आया कि गिरी हुई हरकतों वाला 'लव' हमारे ईश्वरीय 'प्रेम' के सामने कहीं नहीं टिकता...
बस तभी से तय किया कि 'लव' नहीं प्रेम लिखूंगा... वह प्रेम जो मां गंगा के जल की भांति शाश्वत, निर्मल, निच्छल, पावन एवं पवित्र होता है। शारीरिक सुन्दरता के जाल में फंसकर कभी प्रेम नहीं होता उसे वासना कहा जाता है...वासना शरीर का मिलन है परन्तु प्रेम आत्मा का मिलन है...
#क्वीन
तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती
हां, उस दिन भी 15 अगस्त ही था जब तुम उस मंदिर के बाहर स्कूल तक साथ चलने के लिए मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे तुम्हारे पास देरी से पहुंचना बहुत बुरा लगता था लेकिन क्या करता, सड़क पर चलने वाली बड़ी गाड़ियों ने मेरी छोटी सी बाइक को 'फंसा' लिया था। तुम चाहती थी कि कम से कम हम साथ चलकर कुछ पल एक साथ बिताएं लेकिन हमें उन पलों में छोटी सी कटौती करनी पड़ी। मैंने मंदिर के बाहर अपनी बाइक खड़ी की और फिर हम पैदल स्कूल की ओर जाने लगे। कई महीनों के बाद तुम्हारे साथ अकेले 10 मिनट बिताने का समय मिला था। उन 10 मिनटों में आजादी के उस दिन को बेहद खास तरीके से मनाया था हमने। ख्वाब बनाया था तुमने मुझे और मैं तुम्हारा साया बनने की कोशिश में था।
पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन
पता है समस्या क्या है? समस्या यह है कि परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले और इंसान सोचता है कि उड़ने को पर मिलें। तुम भी उड़ना चाहती थी लेकिन तुम भूल गई कि तकदीर जुल्फों की तरह नहीं होती, जिसे बिखरने पर संवार लिया जाए।
#क्वीन
Saturday, August 13, 2016
जिंदगी की कुछ मजबूरियां...
लोग कहते हैं कि "मुश्किल वक्त" दुनिया का सबसे बड़ा जादूगर होता है जो एक पल में आपके चाहने वालों के चेहरे से नकाब हटा देता है लेकिन तुम्हारे चेहरे से तो नकाब तब हटा जब मैं अपने मुश्किल दौर से बाहर निकल चुका था। मतलबी दुनिया में भी तुम मेरी बातों के मतलब को नहीं समझ पाई। तुम समझने की कोशिश करती भी कैसे आखिर तुम्हारी अपनी जिंदगी थी, तुम्हारे अपने सपने थे... तुम अपने सपनों को तोड़कर मेरी हमसफर कैसे बनती... तुम्हारे बदल जाने का मुझे कोई दुख नहीं लेकिन एक बार सोचकर देखो कि जिनके लिए तुम्हारी पहचान मैं था, उनसे नजरें कैसे मिलाऊं...
क्या उनसे यह कह दूं कि जिसके लिए मैं रोता हूं, वह किसी और को खुश रखने में व्यस्त है...खैर मैं बस इस बात से खुद को तसल्ली दे देता हूं कि "जिंदगी में कुछ मजबूरियां" मोहब्बत से ज्यादा ताकतवर होती हैं जिनकी वजह से ना चाहते हुए भी साथ छोड़ना ही पड़ता है। हम अपने रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रहे थे और फिर वक़्त ने अपनी चाल चली और हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया। अगर कभी मौका मिला तो कुछ पल उन दिनों का ज़िक्र करेंगे, जब तुम मेरे और मैं तुम्हारा हुआ करता था....
#क्वीन
क्या उनसे यह कह दूं कि जिसके लिए मैं रोता हूं, वह किसी और को खुश रखने में व्यस्त है...खैर मैं बस इस बात से खुद को तसल्ली दे देता हूं कि "जिंदगी में कुछ मजबूरियां" मोहब्बत से ज्यादा ताकतवर होती हैं जिनकी वजह से ना चाहते हुए भी साथ छोड़ना ही पड़ता है। हम अपने रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पा रहे थे और फिर वक़्त ने अपनी चाल चली और हमारे बीच से रिश्ता ही निकाल दिया। अगर कभी मौका मिला तो कुछ पल उन दिनों का ज़िक्र करेंगे, जब तुम मेरे और मैं तुम्हारा हुआ करता था....
#क्वीन
मेरी कामना
मैं जानता हूं कि तुम बहुत ऊपर जाना चाहती हो, तुम्हारे सपने बहुत बड़े हैं लेकिन ऐसी बुलंदियां भी किस काम की जहां तुम तो ऊपर पहुंच जाओ लेकिन मोहब्बत नीचे उतर जाए। तुम्हारे उस 'प्रतिबिम्ब' से मोहब्बत हुई थी मुझे, काश! वह वास्तविक होता। इस 'काश' से कुछ ख्वाब जुड़े थे जो यकीं से परे और हकीकत से कोसों दूर थे। पत्थर से भी कठोर और पानी से भी कोमल उन ख्वाबों से जुड़े किस्से आज मशहूर होते जा रहे हैं लेकिन वह 'काश' एक सुनहरी शाम की तरह ढ़लता जा रहा है। जिंदगी ने मुझे दुखी होने का सिर्फ एक कारण दिया और वह था तुमसे दूरी लेकिन इसके साथ ही तुमने मुझे मुस्कुराने के जो हजारों कारण दिए थे क्या उनका कोई मोल नहीं था? देखो, आज मैंने जिन्दगी के उस कारण को हरा दिया। और ये मैंने अकेले नहीं किया बल्कि तुमने मेरा पूरा साथ दिया। आखिर तुम थी ही इतनी खास, तुम्हारी वो नाराजगी जो चंद पलों में प्यार को दोगुना कर देती है, तुम्हारी तो मुस्कुराहट जो मेरे हर दुख को भूल जाने पर मजबूर कर देती थी। तुमसे जुड़ी हर एक चीज जिसे हर रात मैं घंटो निहारा करता था।
तुम मेरे पास होकर मुझसे क्या चाहती थी, यह मुझे नहीं पता लेकिन मैं बस तुम्हारे साथ बिताए गए हर एक पल हो एक सुनहरे सपने की तरह जीना चाहता था... एक ऐसा सपना जिसका कभी अंत न हो, जो कभी न टूटे लेकिन सत्य यह है कि मेरी यह कामना अवैज्ञानिक भी थी और अर्थहीन भी...
#क्वीन
तुम मेरे पास होकर मुझसे क्या चाहती थी, यह मुझे नहीं पता लेकिन मैं बस तुम्हारे साथ बिताए गए हर एक पल हो एक सुनहरे सपने की तरह जीना चाहता था... एक ऐसा सपना जिसका कभी अंत न हो, जो कभी न टूटे लेकिन सत्य यह है कि मेरी यह कामना अवैज्ञानिक भी थी और अर्थहीन भी...
#क्वीन
और बेहतर की उम्मीद में...
एक बार दो दोस्त एक बगीचे में गए, वहां के माली ने दोनों से कहा कि जाओ और इस बगीचे से सबसे खुशबूदार और सुन्दर फूल खोजकर लाओ लेकिन शर्त यह है कि जिस फूल को तुम एक बार नकार चुके हो उसे दुबारा नहीं छू सकते और फूल लेकर आने की अनिवार्यता है। दोनों दोस्तों में से एक ने बगीचे के अंदर घुसते ही एक सुन्दर सा फूल चुना और वापस आ गया। दूसरे लड़के ने कई फूल चेक किए लेकिन 'आगे और भी बेहतर मिलेंगे' की उम्मीद के साथ आगे बढ़ता गया। 2 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद वह एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच गया और आखिरी फूल जो कुछ खास नहीं था, उसे लेकर पछताते हुए वापस आ गया।
ऐसा ही कुछ हमारी जिंदगी में भी होता है। कभी-कभी हम और ज्यादा बेहतर पाने की तमन्ना में बेहतरीन को भी खो देते हैं। अब तुम खुद तय कर लो कि तुम किस रास्ते पर हो। रही बात मेरी तो मैंने जो फूल चुना था, उसमें तो कोई कमी नहीं थी लेकिन मैं भूल गया कि कुछ फूल डालियों पर ही अच्छे लगते हैं। खैर, उस फूल के साथ बिताया गया कुछ समय मेरे लिए बेहद खास था और अब मैं किसी फूल को डाली से तोड़कर उसकी 'हत्या' का पाप अपने सर लेने की स्थिति में भी नहीं हूं...
#क्वीन
ऐसा ही कुछ हमारी जिंदगी में भी होता है। कभी-कभी हम और ज्यादा बेहतर पाने की तमन्ना में बेहतरीन को भी खो देते हैं। अब तुम खुद तय कर लो कि तुम किस रास्ते पर हो। रही बात मेरी तो मैंने जो फूल चुना था, उसमें तो कोई कमी नहीं थी लेकिन मैं भूल गया कि कुछ फूल डालियों पर ही अच्छे लगते हैं। खैर, उस फूल के साथ बिताया गया कुछ समय मेरे लिए बेहद खास था और अब मैं किसी फूल को डाली से तोड़कर उसकी 'हत्या' का पाप अपने सर लेने की स्थिति में भी नहीं हूं...
#क्वीन
हो सकता है तुमको यह गलत लगे...
आखिर क्यों लिखता हूं तुम्हें, क्या इसलिए कि लोग कहें कि अरे देखो, गौरव की मोहब्बत तो लाजवाब है? या फिर इसलिए कि लोग मेरे दर्द पर वाह-वाह करें। नहीं! इनमें से कोई कारण नहीं है। फिर सच क्या है? शायद मुश्किल हो तुम्हारे लिए लेकिन सच यह है कि मैंने अपनी मां को बचाने के लिए अपनी भावनाओं का बाजार लगा दिया। और अपनी मां के लिए ही तुम्हें भी अपने सपने में शामिल कर लिया। शायद तुम्हें ये गलत या बुरा लगे लेकिन यही सच है।
क्या सच्ची मोहब्बत के पैमाने किसी भाषा पर आधारित होते हैं। क्या मोहब्बत 'Never Love a Stranger' जैसी चीजें लिखने से ही सच्ची मानी जाएगी। नहीं, मोहब्बत की असली भाषा तो हिंदी है क्योंकि इसमें रिश्ते हैं, रिश्तों में मर्यादा है, मर्यादा में विश्वास है, विश्वास में प्रेम है और प्रेम में संमृद्धता है। अब अगर दुनिया यह मानती है कि मैं गलत कह रहा हूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर मेरे भाई बहन ही इसे गलत मान लेंगे तो मेरी जिम्मेदारी है कि मां के अस्तिव को बचाने के लिए, मां की वास्तविकता से उनका परिचय कराने के लिए इन विषयों को प्रमाणित करूं। बस मैं अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं.... और इसीलिए मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा जब उस लड़के ने कहा कि वह मेरी फेसबुक पोस्ट्स का अंग्रेजी में अनुवाद करेगा।
#क्वीन
Friday, August 12, 2016
क्या मुझे इस बात पर खुश होना चाहिए?
पता है, आज मेट्रो में एक लड़का मिला। मुझे घूरने की अवस्था में पहले तो वह 10-15 मिनट खड़ा रहै और फिर अचानक मेरे पास आकर बोला कि सर, आप विश्व गौरव हैं ना? मैंने भी 'हां' में जवाब देते हुए पूछ लिया कि लेकिन भाई, कैसे जानते हो मुझे? उसने कहा कि सर, मैं आपसे फेसबुक पर और अपनी #क्वीन के बारे में फेसबुक पर जो भी लिखते हैं, उसका अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके एक संकलन जैसा कुछ तैयार कर रहा हूं। तब मुझे ध्यान में आया कि फैजल सलीम नामक उस लड़के ने ही शायद मुझे पिछले महीने मेसेज करके कहा था कि मैं अपनी #क्वीन से जुड़ी फेसबुक पोस्ट्स की एक किताब छपवाऊं।
उसने तुम्हारी तारीफ में और भी बहुत कुछ कहा। मुझे अच्छा लगा कि कम से कम मेरी कलम में इतनी ताकत तो है कि तुमको भी लोग 'पसंद' करने लगे हैं। उसके मुताबिक तुम दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की हो क्यों कि जो इंसान तुम्हें प्यार करता है, उस इंसान के प्रेम पर वे लोग भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा पा रहे जो उसे जानते तक नहीं। वैसे मुझे भी इस बात का गुरुर है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत कीमती चीज है प्यार मेरे लिए और इसी कारण मैं भी यही मानता हूं कि तुम वाकई में खुशनसीब हो कि मैं तुम्हें चाहता हूं। ये मेरा अहंकार नहीं बल्कि मेरे प्रेम की पवित्रता पर विश्वास है।
लेकिन एक बात बताओ तो जरा कि क्या तुमसे जुड़ी पोस्ट का अनुवाद करने वाली बात को लेकर मुझे खुश होना चाहिए? क्या मुझे गर्व होना चाहिए कि मेरी कलम से जो लिखा गया उसका ट्रांसलेशन करके लोग उसे छपवाने की बात कर रहे हैं? मैं क्या सोचता हूं, वह कल बताउंगा लेकिन तुमसे जानने की इच्छा जरूर है।
उसने तुम्हारी तारीफ में और भी बहुत कुछ कहा। मुझे अच्छा लगा कि कम से कम मेरी कलम में इतनी ताकत तो है कि तुमको भी लोग 'पसंद' करने लगे हैं। उसके मुताबिक तुम दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की हो क्यों कि जो इंसान तुम्हें प्यार करता है, उस इंसान के प्रेम पर वे लोग भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा पा रहे जो उसे जानते तक नहीं। वैसे मुझे भी इस बात का गुरुर है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत कीमती चीज है प्यार मेरे लिए और इसी कारण मैं भी यही मानता हूं कि तुम वाकई में खुशनसीब हो कि मैं तुम्हें चाहता हूं। ये मेरा अहंकार नहीं बल्कि मेरे प्रेम की पवित्रता पर विश्वास है।
लेकिन एक बात बताओ तो जरा कि क्या तुमसे जुड़ी पोस्ट का अनुवाद करने वाली बात को लेकर मुझे खुश होना चाहिए? क्या मुझे गर्व होना चाहिए कि मेरी कलम से जो लिखा गया उसका ट्रांसलेशन करके लोग उसे छपवाने की बात कर रहे हैं? मैं क्या सोचता हूं, वह कल बताउंगा लेकिन तुमसे जानने की इच्छा जरूर है।
Thursday, August 11, 2016
हमारे रिश्ते की परिभाषा
वक्त ने हमारे रिश्ते की परिभाषा ही बदल दी..पहले दोस्ती , फिर प्यार और फिर अजनबी सा अहसास... बहुत खास था वह अहसास, जिसमें गुस्सा होने के बाद भी एक-दूसरे की परवाह होती थी, जिसमें बिना मिले एक-दूसरे से बात होती थी... यह सच्चा प्यार हो न हो लेकिन सच्चा रिश्ता तो था, एक ऐसा रिश्ता जिसमें एक-दूसरे के प्रति पुष्पित हुए लगाव को पल्लवित करके जीवनरेखा की पराकाष्ठा तक पहुंचाया गया हो। लेकिन शायद तुम इस बात को नहीं समझ पाई कि रिश्तों की डोर तब कमज़ोर पड़ जाती है जब इंसान ग़लतफ़हमी में उठने वाले 'सवालों' का 'जवाब' खुद बना लेता है। काश! तुम अपनी खामोशी को तोड़कर मुझसे बात कर लेती, काश! मैं अपने गुरूर को छोड़कर तुमसे बात कर लेता, काश! हम भ्रम के तिलिस्म को फोड़कर विश्वास का नया आधार स्थापित करते, काश! मैं तुमको तुमसे ही मांगता और तुम मुस्कुराकर कहती कि गौरव, कोई अपनी चीजें मांगता है क्या? पता है, कुछ लोग बड़े होने के वहम में अपनों को खो देते हैं और कुछ लोग बड़े होने के अहम में...काश! तुम यह बात समझ पाती और फिर मुझे भी यह समझा पाती... अगर यह बात हम दोनों को समय पर समझ आ जाती तो हम साथ होते...
हमसे जुड़ा हर एक किस्सा दिल में बसा है, उनको कागज पर आबाद कर रहा हूं... अब एकबार सोचकर देखो कि जब मैं उन किस्सों को नहीं भूल सकता तो तुम्हें कैसे भूल जाऊं? तुमको लेकर मेरा ख्याल कभी नहीं बदल सकता... मोहब्बत चेहरे से होती तो भूल भी जाता लेकिन क्या करूं यार मोहब्बत तो आत्मा से है...
प्रेम जब तन से होता है तो वासना होता है
प्रेम जब मन से होता है तो भावना होता है
और प्रेम जब आत्मा से होता है तो आराधना हो जाता है... अब अपनी आराधना को छोड़ कर पाप का भागी तो नहीं बन सकता मैं...
#क्वीन
Sunday, August 7, 2016
.बस तरीका बदल गया...
और फिर जिंदगी अपने रास्ते पर चल पड़ी... तुमने वक्त समझकर मुझे गुजार दिया और मैं तुम्हारे साथ बिताए हर एक लम्हे को अपनी कल्पनाओं के सागर में डूबकर जिंदगी माने हुए आज भी जी रहा हूं। जब भी कुछ लिखता हूं और वह तुम तक पहुंचता है तो उसमें कुछ भी ऐसा नहीं होता जो बहुत खास हो लेकिन मेरे और तुम्हारे लिए उसका हर एक शब्द बेहद महत्वपूर्ण होता है। अनुभव और अनुभूति के इस अनूठे संगम को लिखने की क्षमता होना आसान नहीं है, मैं अपनी ही तबाही पर 'वाह-वाह' सुनता हूं।
तुम्हारे हर एक लफ्ज के हजारों मतलब निकालता था मैं...और कर भी क्या सकता था, बातें ही अधूरी करती थी तुम... और पता है आज भी कोई है जो मेरी ही तरह तुम्हारी अधूरी बातों के अलग-अलग मतलब निकालकर रात-रात भर जागता है... मैं उसे नहीं समझा सकता...मैं उसे नहीं रोक सकता... तब मुझे भी कहां कोई समझा पाया था...मुझे भी कहां कोई रोक पाया था, वह सब करने से... जुनून, हौसला, पागलपन सब कुछ वैसा ही है...बस तरीका बदल गया है... जिंदगी जीने का, पर लक्ष्य वही है...
Saturday, August 6, 2016
हमारा रिश्ता
बहुत खूबसूरत है हमारा रिश्ता क्योंकि इसमें हमें एक दूसरे पर किसी तरह का शक नहीं है... यह खूबसूरती और भी ज्यादा इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस रिश्ते में 'हक' जैसी भी कोई चीज नहीं है। बस एक बात जो आज तक मुझे समझ में नहीं आई, वह यह है कि तुम्हें मैंने हर दिन अपने श्रीराम से मांगा...लेकिन तुम नहीं मिली...इसकी वजह क्या थी? क्या मेरी चाहत की शिद्दत में कोई कमी थी या फिर उन दुआओं में किसी तरह की कमी रह गई थी? पर इन सवालों का तुमसे कैसा वास्ता? ये सवाल तो मुझे अपने श्रीराम से पूछने चाहिए...लेकिन नहीं, उनसे मैं ये सवाल नहीं पूछ सकता क्योंकि अगर मैं उनसे ये सारे सवाल पूछुंगा तो वह समझ लेंगे कि मुझे उनके निर्णय के सौन्दर्य पर शंका है।
मुझे उनके निर्णय पर किसी तरह की शंका नहीं है, उन्होंने जरूर कुछ बेहतर ही सोचा होगा... मैं तो बस अपनी व्यक्तिगत जानकारी के लिए इन सवालों के जवाब जानना चाहता हूं...हो सकता है कि मैंने कुछ गलत किया हो, कुछ ऐसा जो मुझे नहीं करना चाहिए था और फिर अब मुझे अपनी वह गलती याद न आ रही हो। वैसे याददाश्त का कमजोर होना कोई बुरी बात नहीं होती है, बहुत बैचेन रहते हैं वे लोग, जिन्हें हर बात याद रहती है...
Thursday, August 4, 2016
मेरा प्रदर्शन और तुम्हारा दर्शन
उस दिन तुमने मुझे बताया कि तुम मार्केट जा रही हो... लेकिन मिलने या बात करने की कोई व्यवस्था नहीं थी क्योंकि तुम्हारे साथ तुम्हारी मासी जी भी थीं। और मैं, तुम्हारे दर्शन और मासी के सामने स्वयं के प्रदर्शन का मौका नहीं छोड़ सकता था...उस मार्केट के रास्ते पर बहुत ट्रैफिक रहता था... मैं उस मार्केट के पहले वाले चौराहे पर लगभग 1 घंटे खड़ा रहा, बस इस इंतजार में कि तुम निकलोगी और मैं तुम्हारी उस प्यारी सी मुस्कान को देख पाऊंगा।
तुम रिक्शे से अपनी मासी जी के साथ मेरे सामने से गुजरी लेकिन तुम्हारी नजर मुझ पर नहीं पड़ी... मार्केट के पास जाम में फंसा तुम्हारा रिक्शा...उस रिक्शे पर बैठी तुम और रिक्शे के पीछे हॉर्न बजाता मैं... आज सब कुछ सपने की तरह लगता है... अगर सपना मानूं तो उम्मीद रहती है कि यह तो पूरा हो सकता है और अगर उसे बीता कल मानूं तो लगता है कि अगर पहले हो सकता है तो अब क्यों नहीं... मैं सच जानता हूं पर मानता नहीं... या फिर यूं समझ लो कि मानना नहीं चाहता...
मैं यह भी जानता हूं कि अब यह सब एक ऐेसे स्वप्न का रूप ले चुका है जो कभी यथार्थ नहीं बन सकता लेकिन ईश्वर से एक निवेदन करता रहता हूं कि मुझे वह इतनी क्षमता दें कि मुझे तुम्हारे सामने कभी नजर न झुकानी पड़ें... ताकि मैं तुम्हारी आंखों में अपनी अधूरी हसरतों को देख सकूं...और साथ ही तुम भी मेरी आंखों में अपनी असली खूबसूरती को देख सको...विश्वास मानो, मैं तुम्हें अपनी आंखों में तुम्हारी जिस खूबसूरती को दिखा सकता हूं, वह कोई आइना नहीं दिखा सकता...
Tuesday, August 2, 2016
तीखेपन का प्यार
पता है आज क्या हुआ, आज मेरी एक प्यारी सी छोटी बहन चाउमीन खा रही थी... चाउमीन तीखी होने के बाद भी वह खाती रही... मैं उसकी आंखों में देख रहा था, आंखों में आंसू थे पर वह खाना बंद नहीं कर रही थी... उसकी आंखों ने उस दिन की याद दिला दी जह मैंने पहली और आखिरी बार तुम्हारे साथ खाना खाया था... कितनी तीखी थी वह दाल...तुम भी 'तीखा' नहीं खा पाती थी लेकिन तुम्हें सबसे ज्यादा 'तीखा' ही पसंद था... याद है तुम्हें, उसी दिन हमने गोलगप्पे भी खाए थे... इतना 'रोने' के बाद भी तुम गोलगप्पे में और ज्यादा 'तीखी चटनी' डालने को कह रही थी। तुम्हारे आंसू गिरते जा रहे थे और तुम गोलगप्पे खाए जा रही थी...
वही एक दिन था जब मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू होने के बावजूद हंसी आ रही थी। वह तुम्हारी खुद को चुनौती देने की क्षमता थी या पागलपन, यह सब मुझे नहीं पता। मैं बस इतना जानता हूं कि तुम्हारी हर एक 'आदत' ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मेरी मोह्ब्बत को तुममें किसी ऐसे शख्स की तलाश नहीं थी जिसके साथ रहा जाए बल्कि मेरी मोह्ब्बत तो तुममें ऐसा शख्स खोजती थी जिसके बगैर रहा ही न जाए...लेकिन मुझे वह नहीं मिला... पर वह सख्स नहीं मिला, यह भी अच्छा ही हुआ... क्योंकि अगर वह मिल जाता तो उसी के साथ, उसी में खोकर सब कुछ भूल जाता... मुझे वह तो नहीं मिला लेकिन मेरे 'राम' मिल गए...उम्मीद से ज्यादा है मेरे लिए इतना... उनके लिए तो मेरे मन में तुमसे भी ज्यादा समर्पण है...
#क्वीन
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