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Sunday, July 24, 2016

मेरा विश्वास


अपनी मोहब्बत को मैं लफ्जों में बयां नहीं कर सकता, बहुत मुश्किल है यह करना... या शायद नामुमकिन जैसा...उन चंद पलों के दौरान होने वाले हमारे मिलन के अहसास को मेरी कलम बयां कर सके, इतनी ताकत मेरी इस कलम में नहीं है। गुमनामी के अंधेरे से शोहरत के दीपक की दुधिया रोशनी तक के सफर की आरजू नहीं थी मेरी लेकिन तुमने और तुम्हारे साथ बिताए गए चंद लम्हों ने मशहूरियत की सीढ़ियों पर कदम रखवा ही दिया...तुम्हें पता है हमारे रिश्ते की खास बात यह है कि मैं जब भी उन लम्हों को शब्दों में उतारता हूं तो उसे एक भाई अपनी बहन को पढ़कर सुना सकता है... एक बेटा अपनी मां को सुना सकता है और एक बेटी अपने पिता को सुना सकती है...

हमारे रिश्ते की पवित्रता ही तो है जिसके आधार पर मेरी 'क्वीन' पूर्ण हो सकेगी...दुनिया में दो पौधे ऐसे हैं जो कभी मुरझाते नहीं और अगर वे मुरझा गए तो उसका कोई इलाज नहीं,एक नि:स्वार्थ प्रेम और दूसरा अटूट विश्वास... मुझे गर्व है कि मेरी ओर से दोनों चीजें अपने शाश्वत रूप में हैं और रही तुम्हारी बात तो मुझे पता है तुम भी प्रेम और विश्वास की इस पराकाष्ठा को कभी न कभी तो जरूर समझोगी.... मैं सनातनी परंपरा में अटूट विश्वास रखता हूं, इस नाते पुनर्जन्म में भी विश्वास है... हो सकता है कि तुम इस जन्म में मेरी बात का यकीन न करो लेकिन अगले जन्म में तो तुम्हें मानना ही होगा... क्योंकि मैं तब भी नहीं बदलूंगा... और हां, यह मेरा अंधविश्वास नहीं है... मैं तुम्हारी उस 'दोस्त' की तरह ही अपने विश्वास पर 'विश्वास' करता हूं... हालांकि मेरे इस विश्वास का आधार तुम ही तो, साथ ही मैं यह भी जानता हूं कि तुम मेरे विश्वास को कभी टूटने नहीं दोगी...
#क्वीन

Saturday, July 23, 2016

तुम्हारा अधिकार

यह मेरी उजड़ी हुई जिंदगी की कहानी है, लेकिन अपनी कीमत का अंदाजा इस बात से लगाओ कि मेरी इस कहानी में सबसे मजबूत किरदार तुम्हारा ही तो है। तुम मुझसे पूछती थी ना कि मेरी जिंदगी पर तुम्हारा कितना अधिकार है? जरा बताओ तो कि खुद पर तुम्हारा कितना अधिकार है? तुम ही तो थी मेरी जिंदगी...और देखो ना मैंने तुम्हारा अधिकार अब तक नहीं छीना... आज भी मेरी कलम से निकला पहला शब्द कुछ भी हो लेकिन आखिरी शब्द तुम पर ही खत्म होता है। तुमने मेरे बहुत से स्केच बनाए लेकिन तुमको पारंगत नहीं कह सकता... पारंगत तो तब मानता जब उन चित्रों में तुम मेरी खुशी और मेरे दर्द को भी जगह दे पाती...
आसमान में एक चांद होता है लेकिन तारे करोड़ों होते हैं, अगर किसी दिन कुछ तारे ना भी दिखें तो कोई फर्क नहीं पड़ता... चांद अपनी दूधिया रोशनी से सब कुछ रोशन कर देता है लेकिन अगर उसी आसमान में कुछ तारे ज्यादा दिखने लगें और चांद ना दिखे तो चारों ओर अंधेरा छा जाता है... कुछ ऐसी ही कहानी तो हमारे रिश्ते की भी है... सिर्फ तुम ही तो थी जिसने मेरी जिंदगी को रोशन करके रखा था और आज बहुत से लोग हैं लेकिन जिंदगी के इस अंधेरे में नजरें तुम्हें ही खोजती हैं... काश! तुम इस अंधेरे में एक बार फिर से मेरा हाथ थाम कर कहती कि देखो गौरव, मैं वापस आ गई...
मैं जानता हूं कि इस घने अंधेरे में तुम मुझे नहीं मिलने वाली... तुम्हारे वापस आने कल्पना करना मेरे लिए सिर्फ एक सपना है लेकिन सपने देखने का अधिकार तो है ना मेरे पास... मैं जानता हूं इस अंधेरे में तुम्हारा मिलना नामुमकिन है लेकिन अब तुम्हें खोजना बंद कर तुम्हारे सहारे खुद को खोज रहा हूं...उम्मीद है जिस दिन खुद को पा लिया उसदिन तुमसे किए गए उस वादे को पूरा कर पाऊंगा... हां, वही... तुम्हारी पहचान बनने का वादा...
‪#‎क्वीन‬

Friday, July 22, 2016

हमेशा रहोगी तुम...

तुम अपनी बालकनी में खड़ी थी उस दिन और मैं तुम्हारे घर के नीचे... बारिश का मौसम बन रहा था और बारिश से पहले की ठंडी हवा ने तुम्हारे सर से तुम्हारे चेहरे के रंग वाले गुलाबी दुपट्टे को तुम्हारे सर से नीचे गिरा दिया था.. उसके बाद हवा के उस झोंके से तुम्हारे बाल जिस तरह से उड़े थे, यकीन मानो उसके बाद जब मैं उस दिन की बारिश में भीगकर बीमार हुआ तो ऐसा लग रहा था जैसे उस 30 सेकंड के हसीन दृश्य के लिए 6 दिन का बुखार काफी कम है।
बुखार के कारण मैं तुमसे नहीं मिल पाया पर तुम भी दूरी को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आ गई तीसरे दिन मेरे पास... 3 दिन में 21 स्केच बनाए थे तुमने और फिर अपने ही बनाए स्केच को दिखाकर हंस रही थी... फिर अचानक तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए... तुम तो जानती थी ना... बस वे दो बूंद ही तो मेरी कमजोरी बन जाते थे... उन आंसुओं की कीमत अगर मेरी सारी खुशियां होती तो इस कीमत को चुकाने से भी परहेज नहीं करता लेकिन तुम्हारे उन आंसुओं को रोकने के लिए कुछ और ही कीमत चुकानी पड़ी... अवांछित कीमत थी.. पर तुम्हारी खुशी का मामला था तो चुकाने से पीछे हटना संभव नहीं था... चुका दी वह कीमत भी... हमेशा के लिए तुमसे दूर जाकर... लेकिन एक वादा है कि मेरी जिंदगी से तो दूर चली गई हो पर अपनी सोच से कभी तुम्हें दूर नहीं होने दूंगा...
‪#‎क्वीन‬

Thursday, July 21, 2016

क्यों लिखता हूं तुमको?

लोग कहते हैं कि मैं तुम्हारे बारे में या अपनी मोहब्बत के बारे में जो कुछ भी लिखता हूं वह उनको बहुत पसंद आता है लेकिन सच कहूं तो मैं बिलकुल नहीं चाहता कि मेरा दर्द किसी को खुशी दे। मैं बिलकुल यह नहीं चाहता कि मैं अपनी मोहब्बत को बेचूं, या तुमसे जुड़ी बातों के व्यक्तिगत भावों को सामाजिक रूप से दर्शाऊं...
मैं बस इतना चाहता हूं कि 'कान्ट स्टॉप द फीलिंग' सुनने वालों तक हिंदी पहुंचे और अगर कोई यह समझता है कि अंग्रेजी बोलने से कोई लड़की उससे प्यार करने लगेगी तो उसे सच का अहसास हो कि अपनी मातृ भाषा में प्रेम प्रदर्शित करना जितना आसान है, विदेशी भाषा में उसे प्रदर्शित करना उतना ही मुश्किल...अपनी मां के लिए लिखता हूं... हिंदी के लिए लिख रहा हूं... मां के अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी महबूबा का प्रयोग कर रहा हूं... हो सकता है कोई गलत कहे लेकिन मैं आज भी सही हूं जैसे उस शाम था....
‪#‎क्वीन‬

Wednesday, July 20, 2016

तुम्हारी वह तस्वीर

बेहद खूबसूरत दिख रही थी तुम अपनी उस तस्वीर में... साड़ी में पहली बार देखा था तुम्हें... बस यही सोचने लगा था कि यह शख्स मेरे किचन में कैसा लगेगा... बहुत अच्छी लगती तुम वहां लेकिन इसके साथ एक और भी सच जुड़ा है... तुम्हें तो खाना बनाना आता ही नहीं है... तुम सिर्फ मैगी और चाय ही बना सकती हो... और इन दोनों चीजों का उपयोग मैं करता नहीं... फिर क्या करता...सच कहूं तो अगर तुम मेरे साथ होती और तुम्हें कुछ भी बनाना नहीं आता होता तो भी मैं तुम्हारे साथ रहता और तुमसे कभी नहीं कहता कि तुम कुछ बनाना सीखो...
आखिर खाना ही तो सब कुछ नहीं होता... खाना बनाने की कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती थी... लेकिन तुम्हारा कोई विकल्प नहीं... तुम खुद में एकमात्र विकल्प थी...
‪#‎क्वीन‬

Tuesday, July 19, 2016

मेरी दुआ

उस दिन तुम्हारी आंख में दर्द हो रहा था और तुम चुपचाप घर पर बिना किसी को कुछ बताए लेटी थी... मैंने तुमसे 50 बार कहा था कि बिना चश्मा लगाए लैपटॉप यूज मत किया करो लेकिन तुमको मेरी बातों से फर्क ही कहां पड़ता था... उस दिन मैं तुम्हें सुबह से कॉल कर रहा था लेकिन तुमने एक बार भी मेरा फोन नहीं उठाया... तुम मुझसे बहुत कुछ छिपा लेती थी... शायद इस लिए क्योंकि तुमको लगता था कि कहीं तुम्हारी परेशानियों से मैं भी न परेशान हो जाऊं या फिर शायद तुम मुझे अपनी परेशानियां बताना जरूरी ही नहीं समझती थी...
तुम्हारी उस 'सबसे अच्छी' फ्रेंड ने मुझे बताया कि तुम्हारे साथ क्या समस्या है। 200 से भी ज्यादा बार कॉल कर चुका था मैं उस दिन... बहुत गुस्सा भी आ रहा था... कुछ देर के बाद तुमने कॉल बैक किया और तुम्हारी आवाज सुनकर मेरा सारा गुस्सा गायब हो गया... मैं शांत था... मेरे कहने पर ही तुम अपनी उस फ्रेंड के साथ हॉस्पिटल गई वहां से वापस आकर हम उसी स्टेलर आईटी पार्क में मिले...खाना खाकर मैं तुम्हें पैदल तुम्हारे घर छोड़ने जा रहा था और तुम मुझसे अपनी बातें बताई जा रही थी...
5 मिनट के रास्ते को हमने 40 मिनट में तय किया... मुझे नहीं याद कि तुमने उस दिन क्या-क्या बोला लेकिन उन सारी बातों के दौरान तुम्हारे होंठों पर आने पर आने वाली मुस्कान हूबहू याद है...बस यही दुआ करता हूं कि तुम्हारी जिंदगी के हर एक पल में चेहरे की मुस्कुराहट वैसी ही बनी रहे...
‪#‎क्वीन‬

मेरा वादा...

कई लोग मुझसे कहते रहते हैं कि आखिर क्वीन है कौन... एक बार उसकी तस्वीर दिखा दीजिए... अब उनको कैसे बताऊं कि मेरे पास तो तुम्हारी कोई तस्वीर है ही नहीं... क्योंकि तुम्हारी तस्वीर की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी... तस्वीर तो उसकी जरूरी होती है जिसकी याद आती हो और याद तो उसकी आती है जिसे भूला गया हो... तुम तो मेरे हर एक शब्द में, हर एक ख्याल में, हर एक सांस में बसती हो...तुम्हारी तस्वीर की क्या जरूरत है मुझे...
मुझे जब भी तुम्हारे साथ की जरूरत होती है तो बस आंखें बंद करता हूं और तुम्हें अपने पास पाता हूं... नहीं, अपने सपनों में नहीं... हकीकत में... तुम्हारे हाथ को आज भी उसी तरह से अपने हाथ में महसूस करता हूं जैसे कभी उस वीरान सड़क पर कुछ पलों के लिए महसूस किया था... मुझे उन पलों का एहसास तुम्हारी तस्वीर नहीं दिला सकती... उस एहसास को जीने के लिए तुम्हारा मेरे साथ होना बहुत जरूरी है...मुझे खुशी है कि मेरे श्रीराम मेरी इस इच्छा को हर बार पूरा कर देते हैं... जब भी मुझे तुम्हारी जरूरत होती है तुम्हें अपने पास पाता हूं... उन चंद पलों का एहसास मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा से भर देता है...
तुम अपना कभी साथ न छोड़ने का वादा निभा रही हो... और मैं अपना वादा निभाऊंगा... हां वही वादा... तुम्हारी पहचान बनने का...
‪#‎क्वीन‬

Monday, July 18, 2016

और उस दिन...

उस दिन जा रही थी तुम... मुझे नहीं पता था कि तुमसे दोबारा कभी मुलाकात होगी भी या नहीं... चंद कदमों की दूरी पर था मैं तुमसे... तुमने तो शायद मुझे देखा भी नहीं था...एक पल को लगा कि जैसे सब कुछ हार गया हूं लेकिन... तुम्हारे 'लेकिन' की तरह ही मेरा भी एक लेकिन था लेकिन मेरा 'लेकिन' तुम्हारे लेकिन की तरह अवसादों में फंसा हुआ नहीं था... अगर उस दिन मैं खुद को हारा हुआ मान लेता तो मेरा 'लेकिन' भी तुम्हारे लेकिन की तरह ही हो जाता... हो सकता है कि तुमको या तुमसे जुड़े लोगों को लगता हो कि मैं हार गया लेकिन जहां से मैं देख रहा था वहां से सिर्फ मैं जीता था... क्योंकि जहां से मैं देख रहा था वहां से मुझे एक मासूम सी लड़की अपनी तथाकथित मासूमियत का दिखावा करते हुए उस इंसान से दूर जा रही थी जो दुनिया में उससे सबसे ज्यादा मोहब्बत करता था... वह एक ऐसे इंसान से दूर जा रही थी जिसने कभी तुमसे उस रिश्ते का नाम तक नहीं पूछा जो बेनामी की पराकाष्ठा को पार कर चुका था... उसे तो बस अपनी हर एक दुआ में तुम्हारी खुशी मांगने की आदत पड़ गई थी...कुछ पाने की चाहत में किसी 'अपने' से दूर जाना समर्पण, निष्ठा या लक्ष्य नहीं बल्कि खुदगर्जी कहलाता है...
पता नहीं तुम्हें कभी मेरी उस मोहब्बत का एहसास होगा या नहीं लेकिन मैं बस इतना जानता हूं कि अगर अब तुम कभी वापस आओगी भी तो भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि वह मोहब्बत तो कब की फासलों में फना हो गई...एक गलती मेरी भी थी... मैंने भी सफर-ए-जिंदगी में सिर्फ तुम्हारे लिए उनको भी नजरंदाज किया जो हासिल थे...
‪#‎क्वीन‬

Friday, July 15, 2016

चेहरे के रंग


और उस दिन मेरे एक दोस्त ने शाम को मुझे कॉल किया, उसने मुझसे कहा कि वह मिलना चाहता है...मेरे पास उस समय बाइक नहीं थी तो मैंने कहा कि मैं थोड़ी देर में आता हूं... फिर देर शाम उसने कॉल करके कहा कि तुम मुझे बुला रही हो... मुझे पता था कि तुम मुझे बुलाने के लिए किसी और से तो नहीं कह सकती... खैर, मेरा छोटा भाई बाइक लेकर दीदी के घर पर गया हुआ था... मैंने उसे तत्काल वापस बुलाया और बाइक लेकर मार्केट पहुंचा... उम्मीद के मुताबिक तुम तो वहां नहीं थी लेकिन मेरा दोस्त मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था...

उसे लग रहा था कि मैं तुम्हारे लिए आया हूं लेकिन सच तो यही था कि उस दिन अगर वह तुम्हारा नाम नहीं लेता तो भी मैं कुछ देर के बाद नियत स्थान पर जाता... तुमसे मिलने नहीं, बस उस जगह पर तुम्हें महसूस करने जहां तुम रोज जाती थी...

और जब अगले दिन मैंने तुम्हें बताया कि लोग अब तुम्हारा नाम लेकर मुझे मिलने बुलाने लगे हैं तो पूरे 21 मिनट तक तुमने मुझसे झगड़ा किया था... मैंने किसी को नहीं बताया था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं लेकिन चेहरे के रंग को कैसे छिपाता... जो लोग बहुत करीब थे उन्हें पता लग ही गया था... बस दुख इस बात का है कि उन लोगों को समझ में आ गया तो वे फायदा उठाने लगे और तुमने उस बात को समझने की कोशिश ही नहीं की...
#क्वीन

Wednesday, July 13, 2016

लेकिन के मायने

कैसा रिश्ता था हमारा और कैसे थे हम... जब भी किसी 'छोटी' सी बात पर नाराज होकर झगड़ा करते थे तो 'मुझे मेसेज मत करो', 'मुझसे बात मत करो' जैसी बातें बोलकर ही घंटों बात कर लिया करते थे... और फिर जब सोने का समय हो जाए तो सब कुछ भूलकर फिर से सब नॉर्मल कर देते थे... तुमको पता है हम दोनों की सबसे अच्छी बात क्या थी? हम दोनों सिर्फ एक-दूसरे को चाहते थे, हमने एक-दूसरे से कभी कुछ नहीं चाहा... अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीकर कब हम दोनों हम से 'मैं-तुम' हो गए... तुम वह सब करने लगी जो तुम्हें अच्छा लगता था और मैं तो वह करता ही था जो मुझे पसंद था... हममें से किसी ने एक-दूसरे के लिए खुद को नहीं बदला.. आखिर बदलते भी क्यों? मोहब्बत में शर्तें कहां होती थीं...

एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती थी, जानती हो वह क्या थी? मैं जो करता था उससे किसी न किसी का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष फायदा जरूर होता था लेकिन तुम जो करती थी उससे सिर्फ तुम्हारे भविष्य का नुकसान था... इसमें परेशान करने वाली बात यह थी कि तुम सब कुछ जानते हुए भी वही करती जा रही थी जो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं था... तुम कहती भी थी कि हां गौरव, मैं जानती हूं कि यह मेरे लिए ठीक नहीं लेकिन... इस लेकिन के आगे तुमने कभी कुछ नहीं बताया... 'लेकिन' के मायने कितने बड़े होते हैं यह तुम्हारे उस 'लेकिन' ने ही बताया था...
‪#‎क्वीन‬

वह खौफनाक सुबह

रात का 1 बजा था उस दिन, पूरे 7 दिनों से हमारी बात नहीं हुई थी... मैंने घर पहुंचते ही तुम्हें कॉल लगाया... शायद तुम मेरे कॉल का ही इंतजार कर रही थी। बेहद नाराज थी उस दिन तुम कि आखिर मैंने 7 दिनों से बात क्यों नहीं की... एक साथ 6 सवाल पूछ डाले तुमने... मेरे पास उन सवालों का कोई जवाब नहीं था, या फिर यूं समझ लो कि मैं तुम्हारे उन सवालों के जवाब देना ही नहीं चाहता था। ऐसा क्यों था इस बात का जवाब तो आज भी नहीं दे सकता... 

खैर, उस रात के आगोश में डूबकर तुम जिस तरह से धीमी आवाज में बात कर रही थी, वैसी आवाज मैंने कभी नहीं सुनी थी... उस आवाज में प्रेम और डर का अनूठा संगम झलक रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे तुम किसी ऐसे खौफनाक सपने में हो जिसमें तुम अपना सब कुछ खोने वाली हो और उसे बचाने का तुम्हें कोई रास्ता नहीं मिल रहा। 

पता है, मोहब्बत गहरी हो या ना हो लेकिन विश्वास गहरा होना चाहिए... कुछ मिनट तक तुम्हारी उस आवाज के दर्द को महसूस किया और फिर अचानक तुमने फोन काट दिया...अगले दिन तुम जब मिली तो इतना ही बोली, 'गौरव, 'खुशबू' की तरह हूं मैं, जब तक हूं तब तक मुझे महसूस करो...स्थायित्व आ गया तो मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।'
तुमने ऐसा क्यों कहा? यह भी उन सवालों में एक है जिनका जवाब आज तक नहीं मिला....
#क्वीन

Tuesday, July 12, 2016

मजबूरी थी वह मेरी...

तुमसे दूर जाने के बाद भी मन में एक उम्मीद थी कि कभी तो तुम संपर्क साधने की कोशिश करोगी ही लेकिन तुमने ऐसा कुछ नहीं किया। ख्वाहिशें तो हजारों थीं लेकिन तुम जरूरत बनती जा रही थी... एक दौर ऐसा भी आया जब तन्हाइयों में जीना थोड़ा मुश्किल सा लगने लगा लेकिन असल मायनों में तो वह दौर मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उसी दौर में तो खुद से मुलाकात हुई थी मेरी... जब तक तुम थी तब तक खुद से मिलने का समय की कहां था मेरे पास...
ऑरकुट का दौर था वह... तुम्हारी स्क्रैपबुक के सहारे ही कुछ दिन बिताए... लेकिन कब तक उन बातों को पढ़कर खुश रखने की कोशिश करता जिनका मुझसे कोई सरोकार नहीं था। जिस दौर में टेक्स्ट मैसेज लिखने में तुम्हारे नाम का एक अक्षर लिखने के लिए 7 को 4 बार दबाना पड़ता हो, उस दौर में आखिर कोई अनजान बन चुके इंसान से कब तक ख्यालों में मिलने की कोशिश करता।
तुम्हें पता है, आज लोग मुझसे पूछते हैं कि आखिर तुम मुझसे दूर क्यों गई? कोई जवाब नहीं है मेरे पास इस बात का... तुमने कभी बताया ही नहीं... मैं मानता हूं कि तुमसे दूर जाने का निर्णय मेरा था लेकिन उस निर्णय की वजह तुम ही थी... मजबूरी थी मेरी...वक्त की हकीकत ने हालातों को भी बदल डाला था... शायद तुम्हें मजबूरी शब्द बेईमानी लगे लेकिन उस वक्त को और कोई नाम देना भी बेईमानी ही होगी...
‪#‎क्वीन‬

Monday, July 11, 2016

वे 7 मिनट

याद है ना तुमको, पूरे डेढ़ साल बाद मिले थे हम उस दिन... लेकिन सब बदला बदला सा था...सिर्फ 12 शब्दों का संवाद था हमारा...उसके बाद 7 मिनट तक मैं उस शख्स को खोजता रहा जिससे मुझे मोहब्बत हुई थी...ओह याद आया तुम्हारे लिए वह मोहब्बत ही कहाँ थी। बीते लम्हों को एक बार फिर से तुम्हारे साथ उन 7 मिनटों में ही तो जिया था। पर मुझे ज्यादा ख़ुशी होती अगर तुममें तब भी वही पुरानी वाली चुलबुली सी लड़की अपनी जिंदगी जी रही होती जिससे मैंने मुहब्बत थी।

हां, फिर से मैं उसी तरह से 7 मिनट तक तुम्हारी आँखों को देखता रहा जैसे पहले देखा करता था। तुम खुश थी, तुम्हारी उन आँखों में कुछ खोने का दर्द भी नहीं था...बस इसी का तो कायल था मैं...हर हालात में खुश रहना...अंतर इतना सा है कि पहले की तरह ही मैं उस ख़ुशी की कीमत के बारे में सोच लेता हूँ।

अंदाजा लगाओ तुम्हारे सामने खड़े होकर बिताए गए उन 7 मिनटों के सहारे मैं कितना समय बिता सकता हूँ? 7 और मिनट या 7 घंटे या 7 दिन या 7 महीने या 7 साल या पूरी ज़िन्दगी?


उन सात मिनटों के सहारे तो मैं 7 जन्म बिता सकता हूँ...लेकिन अगर उन 7 जन्मों में तुम मेरे साथ होती तो बात ही कुछ और होती।
‪#‎क्वीन‬

तुम्हारी वह मुस्कुराहट

लंबे समय तक तुम्हारा जिक्र करना बंद कर दिया... जिंदगी के हर हिस्से से तुम्हें गायब करने की कोशिश की लेकिन तुम्हारी फिक्र करना कभी नहीं छोड़ पाया... वह मेरे हाथ में नहीं था ना... तुमसे जुड़ी हर बात पता रहती थी मुझे...
याद है तुम्हें 7 महीन के बाद मैंने एक दिन शाम को तुम्हें कॉल किया था... हां, उसी दिन जब तुम्हारी मां की तबियत खराब थी और तुम अपना रूम बंद करके बहुत रोई थी... नहीं रोक पाया था खुद को तुम्हें कॉल करने से... मुझे पता था कि तुम्हारे लिए मेरी कॉल का बहुत महत्व है, तुम अपनी बातें किसी से शेयर नहीं करती थी... पर अपने दिल से कोई कैसे कुछ छिपा सकता है....
13 मिनट 40 सेकंड की उस कॉल के दौरान तुमने कई बार मुझसे पूछा कि आखिर मुझे यह बात पता कैसे लगी कि तुम रोई हो... मैं नहीं बता सकता था, क्योंकि यह बात मुझे किसी ने बताई ही नहीं थी...
जानती हो उसदिन क्या हुआ था? मैं अपने घर से निकला और अचानक मेरे दिल ने कहा कि मुझे तुमसे बात करनी चाहिए... बस मैंने कॉल लगा दिया.... लेकिन क्या इससे पहले मेरे दिल ने 7 महीनों तक एक बार भी यह नहीं कहा कि मुझे तुमसे बात नहीं करनी चाहिए... इसका जवाब 'नहीं' है... मैंने कहा था ना कि मैं तुम्हारी खुशी में भले ही तुम्हारे साथ खड़ा न दिखूं लेकिन तुम्हारे आंसुओं को पोंछने सबसे पहले मैं ही आउंगा... मेरे बात करने के बाद तुम्हारे चेहरे पर 2 पलों के लिए जो मुस्कुराहट आई थी, उसी के लिए तो आज भी 'सब-कुछ' कर रहा हूं मैं...
‪#‎क्वीन‬

Sunday, July 10, 2016

एक ‎पुराना पत्र‬

अवाचित पत्र मेरे जो कल तलक खोले नहीं तुमने
समूचा विश्व उनको पढ़ रहा है तुमको सूचित हो...!!
‪#‎साभार‬ ‪#‎क्वीन‬ ‪#‎पुराने_पत्र‬

Saturday, July 9, 2016

बहुत खास थी तुम

4-5 दिन में सिर्फ 1-2 बार बात होती थी हमारी, मेसेज से भी दिन में 5-10 मिनट ही बात होती थी। महीने में 1-2 बार बड़ी मुश्किल से मिल पाते थे हम... ऐसा नहीं था कि हम में से किसी पर भी बंदिशें थीं, तुम तो चाहती भी थी कि दिन भर बात करती रहो लेकिन मैं... मैं ही तुमसे बात करने का टाइम नहीं निकाल पाता था... कुछ तो व्यस्तताएं थीं और दूसरी बात यह कि मेरे पास बातें भी नहीं होती थीं.. जीवन में कुछ ऐसा था ही नहीं जिसे शेयर करने के लिए किसी 'खास' शक्स की जरूरत हो... सब कुछ तो दुनिया के सामने था... जिंदगी का हर हिस्सा सार्वजनिक था...जितना समय तुम्हारे साथ बिताता था बस वही 'खास' होता था और वह समय भी बस तुम्हारी मासूमियत को महसूस करने में ही निकल जाता था।
पर उस दिन जब तुम मुझसे दूर गई तो उसके बाद जो खुद की हकीकत मेरे सामने आई, उसने तो हालात ही बदल दिए... एक ही दिन में ऐसा लगा कि सब बदल गया... जिसके पास बात करने के लिए 'बात' नहीं होती थी, वह इंसान टूटता जा रहा था... वह चाहता था कि अपने मन की उथल-पुथल किसी से शेयर करे... एक छोटे से फैसले ने सब-कुछ बदल दिया था... और तुम्हें पता है, वह आज भी हजारों बातों को अपने दिल में दबाकर बैठा है... वह चाहता है कि उन बातों को किसी से शेयर करे पर उसके पास ऐसा कोई इंसान नहीं है... वह जानता है कि तुम भी यह बात जानती हो लेकिन वह अब तुम्हें अपनी जिंदगी में वापस नहीं लाना चाहता..वह तो बस तुमको बताना चाहता है कि तुम उसे लिए बहुत 'खास' थी... यही समझाने की कोशिश में तो उसने कई साल बिता दिए थे...
‪#‎क्वीन‬

Friday, July 8, 2016

तुम्हारे आंसू और मेरा कंधा

उफ्फ...क्या हुआ था उस दिन तुम्हें... पहली बार मेरे कंधे पर सिर रखकर रोई थी तुम... पहली बार तुम्हारे आंसू मेरी खुशी की वजह बने थे.. मैंने तुम्हारी जिन्दगी में उतनी जगह बना ली थी कि तुम उन बातों को मुझसे शेयर कर सको जो किसी से नहीं करती... मैं खुश तो था लेकिन क्या सच में मुझे खुश होना चाहिए था...

जिस लड़की से मैं मोहब्बत करता था, उसकी आंखों में आंसू हों और मैं खुशी से झूम उठूं... गलत था यह... लेकिन बचपना था..या पुरानी बात फिर से दोहरा दूं कि कभी-कभी स्वार्थी हो जाता था मैं... मुझे पता है जहां स्वार्थ होता है वहां मोहब्बत नहीं होती लेकिन जहां मोहब्बत होती है वहां एक मनुष्य के मन में कुछ अपेक्षाएं तो आ ही जाती हैं... मैंने कि मैं सामान्य नहीं था लेकिन उस समय विशिष्ट भी नहीं था...अगर मैं गलत था तो सार्वजनिक तौर पर माफी मांगता हूं... मुझ में इतनी क्षमता नहीं कि तुसे नजर मिला कर पूछ सकूं कि क्या मैं गलत था...

लेकिन हां अगर मैं गलत भी था तो गलती को मान लेना शायद आज के समय में कम नहीं होता... तुमको तो अनुभव भी है इस बात का...
‪#‎क्वीन‬

यकीन तो होगा तुम्हें

7 जुलाई, यही वह दिन था जब अलग हुए थे हम...विश्वास मानो, मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी कि तुमसे दूर जाऊं... लेकिन इसी को शायद किस्मत कहते हैं... हम दूर हो गए... तुम्हारी वे शरारतें ही तो थीं जो मुझे थोड़ा-बहुत खुश कर देती थीं नहीं तो सार्वजनिक जीवन की परेशानियों के चलते कभी ऐसे मौके ही नहीं मिलते थे। तुम्हारे साथ बिताया हर एक लम्हा मेरे लिए एक पूरी जिन्दगी की खुशी लगता था।
पर आज... खुद से ही सवाल करता रहता हूं... मुझे पता है कि उन सवालों के जवाब मुझे कभी नहीं मिलने वाले... लेकिन उन सवालों के सहारे कुछ खास लम्हें याद आ जाते हैं... बेहद जरूरी था तुम्हारा मेरे पास रहना लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी था मेरे स्वाभिमान का बना रहना... मैं जो लिखता था, जो करता था, तुम्हें उसी से समस्या थी ना.. तुम कहती थी कि यह सब करोगे तो मुझे टाइम नहीं दे पाओगे लेकिन देखो... उसी लक्ष्य के साथ आज भी काम कर रहा हूं और तुम्हें भी टाइम दे रहा हूं... हमारे बीच फासले तो बढ़ते गए लेकिन साथ ही मोहब्बत भी बढ़ती गई... आज भी लिखता हूं... लेकिन अब उस लिखावट में तुम्हारी झलक होती है...
मुझे पता है तुम अब कभी नहीं आओगी लेकिन एक वादा करता हूं तुमसे...तुम्हारी जगह पर कभी कोई और भी नहीं आएगा... तुम्हें बहुतों में खोजने की कोशिश की लेकिन तुम किसी में नहीं मिली...तुम्हारे जैसी इस दुनिया में सिर्फ एक थी... लेकिन तुम्हें पता है मेरे जैसा भी इस दुनिया में और कोई नहीं... थोड़ा इंतजार करो... यकीन हो जाएगा...
क्या अच्छा है और क्या बुरा, मैं ये सब नहीं जानता... मैं बस इतना जानता हूं कि मेरी मोहब्बत पाक थी... एकतरफा मोहब्बत को दोतरफा होते हुए तो सबने देखा होगा लेकिन दोतरफा चाहत एक तरफा हो जाए तो उसे क्या कहेंगे... शायद 'फरेब' या फिर...'ईश्वर की योजना'...मेरा विश्वास है कि यह कोई ईश्वर की योजना ही होगी... और ईश्वर की योजना कभी उद्देश्यहीन नहीं हो सकती... खुश हूं कि ईश्वर की योजना में मैं शामिल हूं...
‪#‎क्वीन‬

Thursday, July 7, 2016

तुम्हारे सपने

तुम तो परिंदे की तरह थे.. कुछ ज्यादा ही ऊँचे सपने थे तुम्हारे...खुला आकाश न मिलता तो मूल चरित्र से हटकर सिर्फ दिखावा करते...जरूरी था कि तुम्हें बंधनों में न रखा जाये। 
पर एक सुझाव है कि अपने उन लक्ष्यों तक पहुँचने का रास्ता तय कर लो। साथ ही अगर उन सपनों की कीमत के बारे में भी चिंतन कर लो।

कहीं ऐसा ना हो कि उन सपनों को पूरा करके तुम उन लोगों को खो जो जिन्होंने तुम्हारी प्रतिभा को निखारने में अहम योगदान दिया है।

सब कुछ तुम्हें तय करना है... अब सारा आकाश तुम्हारा है...तुम्हें ही तय करना होगा कि तुम कितनी ऊपर उड़ोगी और उसके लिए क्या कीमत चुकाओगी।
‪#‎क्वीन‬

Tuesday, July 5, 2016

ठंड की वह रात

मेरा घर तुम्हारे घर से 41 किलोमीटर दूर था और तुम्हारे घर से एग्जामिनेशन सेंटर 30 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर। 27 दिसंबर की रात को 9 बजे तुमने मेरा आग्रह स्वीकार किया कि अगले दिन तुम एग्जाम देने मेरे साथ चलोगी। 28 दिसंबर की सुबह 8:45 तक सेंटर पर पहुंचना था। मैंने सोचा कि सुबह 5:30 तक निकलूंगा और तुमको लेते हुए, समय पर परीक्षा केन्द्र पहुंच जाऊंगा। कहीं निद्रा देवी और आलस्य अपने आगोश में न ले लें इसलिए रात में सोने का प्लान भी कैंसल कर दिया।
हां, रात के 12:30 बजे थे और निद्रा देवी मुझ पर हावी होने का भरसक प्रयास कर रही थीं। उन्हें हारना ही था क्योंकि उनकी 'स्वाभाविक' जीत से ज्यादा जरूरी तुम्हारे विश्वास की जीत थी। सोचा कि थोड़ा सा छत पर घूम लेता हूं। लेकिन जब छत पर पहुंचा तो माहौल कुछ और ही बयां कर रहा था। एक कदम आगे रखी चीज भी नहीं दिख रही थी। भयंकर ठंड और विज़बिलिटी का स्तर शून्य... मैं समझ गया कि अगर सुबह भी ऐसी ही स्थिति रही तो परीक्षा नहीं दे पाऊंगा और ना ही तुम्हारे पास आ पाऊंगा।
बस उसी समय मैं तुम्हारे घर के लिए निकल गया था। 4 घंटे में 40 किलोमीटर की दूरी तय करके 5 बजे मैं तुम्हारे घर के नीचे था। उस दिन मेरी बाइक साइकल से भी धीमे चली थी। उन 4 घंटों में मुझे कम से कम 400 बार यह ख्याल आया होगा कि मैं तुम्हारे घर नहीं पहुंच पाऊंगा लेकिन ईश्वर ने मेरा साथ दिया और मैं पहुंच गया। पूरे 1 घंटे तक नीचे खड़े होकर तुम्हारा इंतजार किया। ठंड में बुरी तरह से कांप रहा था मैं... फिर तुम आई और जो शॉल तुमने ओढ़ कर रखी थी उससे मेरे शरीर को ढक दिया। शॉल तो काफी हल्की थी लेकिन सच में उस गर्माहट को फिर कभी महसूस नहीं कर पाया... काश! सिर्फ एक बार तुम उस पल को दोबारा से महसूस करा देती....
‪#‎क्वीन‬

Saturday, July 2, 2016

मेरे होने की वजह

तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना बहुत जरूरी था... तुम भले ही कुछ समय के लिए मेरी जिंदगी में आई लेकिन उस दौर में मुझे जितने अनुभव मिले वे सच में बेहद खास थे... इस दौर में उन लोगों के चेहरों भी बेनकाब हुए जिनको मैंने अपनी जिंदगी में बेहद अहम जगह दे रखी थी... तुम न होती तो यह कैसे पता लगता कि ऊपर से साफ-सुथरे दिखने वाले लोग अंदर से कितने गंदे होते हैं...तुम न होती तो यह कैसे पता लगता कि सार्वजनिक जीवन जो लोग चरित्र को सर्वोपरि बताते हैं उनके चरित्र का वास्तविक स्तर तो शून्य से भी नीचे का है... तुम न होती तो यह कैसे पता लगता कि जो लोग श्वेत वर्ण से सुशोभित दिखते हैं वे अंदर से बेहद काले हैं...
तुम्हारे आने और आकर वापस चले जाने को मैं इसी कारण ईश्वरीय योजना मानता हूं। तुम्हारे दूर जाने से मैंने कुछ नहीं खोया क्योंकि मेरे पास खोने को कुछ था ही नहीं... लेकिन हां, तुम्हारे जाने से मुझे एक चीज मिल गई और उस चीज की आवश्यकता मेरे भविष्य के लिए सर्वाधिक थी... तुम दूर गई तो मैंने खुद को पा लिया... मुझे बनाने में सबसे अहम योगदान तुम्हारा ही है... मैं बहुत कुछ तो नहीं लेकिन जो कुछ भी हूं, वह सिर्फ तुम्हारी वजह से ही हूं...
#क्वीन

उस 'लेकिन' का जवाब

हिंदी माध्यम से 8वीं तक की पढ़ाई के बाद लखनऊ में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू हुई। 10वीं के अंकों को देखकर बाबा को लगा कि अचानक अंग्रेजी माध्यम में आने की वजह से नंबर कम आए पर सच में गलती मेरी थी क्योंकि मैं अपने प्राथमिक दायित्व को महत्व देना लगातार कम कर रहा था। लखनऊ की हवा ही कुछ ऐसी थी...
हालांकि 10वीं में स्कूल में तो दूसरे स्थान पर रहा था लेकिन घर वालों को 80 प्रतिशत से अधिक की अपेक्षा थी। 12वीं में घरवालों ने अंग्रेजी की ट्यूशन करा दी। हर दिन ट्यूशन के बाद तुम्हारे घर के दरवाजे पर खड़े होकर घंटों तुमसे बातें करना और फिर जब तुम्हारे पापा के आने का समय हो तो वहां से दुखी मन से वापस चले जाना।
काफी आसान था सब कुछ लेकिन आज... हर एक शब्द में तुम्हें ही पिरोने की कोशिश करता हूं। मुझे पता है तुम वह सब जरूर याद करती होगी और उसे सोचकर तुम्हारे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती होगी। तुम्हें एक बात बताऊं,तुम्हारे बिना आज सब कुछ बहुत मुश्किल लगता है...ये दिन, ये रात, ये वक्त सब कुछ गुजर तो जाता है लेकिन गुजारा नहीं जाता....
काश! तुम मेरे साथ होती... मुझे पता है तुमने इसके जवाब में हर बार की तरह यही कहा होगा, 'गौरव, हूं मैं तुम्हारे साथ लेकिन....'
बस इस लेकिन का जवाब ही तो खोज रहा हूं आज तक...
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Friday, July 1, 2016

स्वार्थ हावी हो गया.

उस दिन मैं तथाकथित मोहब्बत की इमारत यानी ताज़महल में था और तुमने फोन करके बताया कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी में 'वह' छोटा सा काम नहीं हो रहा है। मुझे ताज़महल पहुंचे मात्र 20 मिनट ही हुए थे और मैं तथा मेरे दो अन्य साथी 'दर्शन योजना' में लगे हुए थे। लेकिन तुम्हारी एक कॉल ने मेरा मानस ही बदल दिया। मैंने 50 कुतर्क किए उन लोगों से वापस चलने के लिए...
मैं तुम्हें एक बार और देखना चाहता था...सच कहूँ तो बार-बार देखना चाहता था। मैं भागकर यूनिवर्सिटी आया और अपने साथ उन दोनों को भी ले आया जिनका मेरी 'बेचैनी' से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। उसके बाद यूनिवर्सिटी में जो 'बवाल' किया था वह तो अद्भुत था। तुम्हारा काम तो हो गया लेकिन एक बात सच बताऊँ तुम्हें....वहां से वापस आते वक़्त मेरे ऊपर स्वार्थ हावी हो गया...
पता है, क्या सोच रहा था मैं.... मैं सोच रहा था कि काश तुम्हारा काम न करवाता तो एक बार और तुम्हें देखने का मौका मिल जाता... क्या करूँ यार... इंसान ही तो हूँ...
‪#‎क्वीन‬