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Friday, July 8, 2016

तुम्हारे आंसू और मेरा कंधा

उफ्फ...क्या हुआ था उस दिन तुम्हें... पहली बार मेरे कंधे पर सिर रखकर रोई थी तुम... पहली बार तुम्हारे आंसू मेरी खुशी की वजह बने थे.. मैंने तुम्हारी जिन्दगी में उतनी जगह बना ली थी कि तुम उन बातों को मुझसे शेयर कर सको जो किसी से नहीं करती... मैं खुश तो था लेकिन क्या सच में मुझे खुश होना चाहिए था...

जिस लड़की से मैं मोहब्बत करता था, उसकी आंखों में आंसू हों और मैं खुशी से झूम उठूं... गलत था यह... लेकिन बचपना था..या पुरानी बात फिर से दोहरा दूं कि कभी-कभी स्वार्थी हो जाता था मैं... मुझे पता है जहां स्वार्थ होता है वहां मोहब्बत नहीं होती लेकिन जहां मोहब्बत होती है वहां एक मनुष्य के मन में कुछ अपेक्षाएं तो आ ही जाती हैं... मैंने कि मैं सामान्य नहीं था लेकिन उस समय विशिष्ट भी नहीं था...अगर मैं गलत था तो सार्वजनिक तौर पर माफी मांगता हूं... मुझ में इतनी क्षमता नहीं कि तुसे नजर मिला कर पूछ सकूं कि क्या मैं गलत था...

लेकिन हां अगर मैं गलत भी था तो गलती को मान लेना शायद आज के समय में कम नहीं होता... तुमको तो अनुभव भी है इस बात का...
‪#‎क्वीन‬

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