7 जुलाई, यही वह दिन था जब अलग हुए थे हम...विश्वास मानो, मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी कि तुमसे दूर जाऊं... लेकिन इसी को शायद किस्मत कहते हैं... हम दूर हो गए... तुम्हारी वे शरारतें ही तो थीं जो मुझे थोड़ा-बहुत खुश कर देती थीं नहीं तो सार्वजनिक जीवन की परेशानियों के चलते कभी ऐसे मौके ही नहीं मिलते थे। तुम्हारे साथ बिताया हर एक लम्हा मेरे लिए एक पूरी जिन्दगी की खुशी लगता था।
पर आज... खुद से ही सवाल करता रहता हूं... मुझे पता है कि उन सवालों के जवाब मुझे कभी नहीं मिलने वाले... लेकिन उन सवालों के सहारे कुछ खास लम्हें याद आ जाते हैं... बेहद जरूरी था तुम्हारा मेरे पास रहना लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी था मेरे स्वाभिमान का बना रहना... मैं जो लिखता था, जो करता था, तुम्हें उसी से समस्या थी ना.. तुम कहती थी कि यह सब करोगे तो मुझे टाइम नहीं दे पाओगे लेकिन देखो... उसी लक्ष्य के साथ आज भी काम कर रहा हूं और तुम्हें भी टाइम दे रहा हूं... हमारे बीच फासले तो बढ़ते गए लेकिन साथ ही मोहब्बत भी बढ़ती गई... आज भी लिखता हूं... लेकिन अब उस लिखावट में तुम्हारी झलक होती है...
पर आज... खुद से ही सवाल करता रहता हूं... मुझे पता है कि उन सवालों के जवाब मुझे कभी नहीं मिलने वाले... लेकिन उन सवालों के सहारे कुछ खास लम्हें याद आ जाते हैं... बेहद जरूरी था तुम्हारा मेरे पास रहना लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी था मेरे स्वाभिमान का बना रहना... मैं जो लिखता था, जो करता था, तुम्हें उसी से समस्या थी ना.. तुम कहती थी कि यह सब करोगे तो मुझे टाइम नहीं दे पाओगे लेकिन देखो... उसी लक्ष्य के साथ आज भी काम कर रहा हूं और तुम्हें भी टाइम दे रहा हूं... हमारे बीच फासले तो बढ़ते गए लेकिन साथ ही मोहब्बत भी बढ़ती गई... आज भी लिखता हूं... लेकिन अब उस लिखावट में तुम्हारी झलक होती है...
मुझे पता है तुम अब कभी नहीं आओगी लेकिन एक वादा करता हूं तुमसे...तुम्हारी जगह पर कभी कोई और भी नहीं आएगा... तुम्हें बहुतों में खोजने की कोशिश की लेकिन तुम किसी में नहीं मिली...तुम्हारे जैसी इस दुनिया में सिर्फ एक थी... लेकिन तुम्हें पता है मेरे जैसा भी इस दुनिया में और कोई नहीं... थोड़ा इंतजार करो... यकीन हो जाएगा...
क्या अच्छा है और क्या बुरा, मैं ये सब नहीं जानता... मैं बस इतना जानता हूं कि मेरी मोहब्बत पाक थी... एकतरफा मोहब्बत को दोतरफा होते हुए तो सबने देखा होगा लेकिन दोतरफा चाहत एक तरफा हो जाए तो उसे क्या कहेंगे... शायद 'फरेब' या फिर...'ईश्वर की योजना'...मेरा विश्वास है कि यह कोई ईश्वर की योजना ही होगी... और ईश्वर की योजना कभी उद्देश्यहीन नहीं हो सकती... खुश हूं कि ईश्वर की योजना में मैं शामिल हूं...
#क्वीन
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