सबसे ज्यादा पढ़ी गईं पोस्ट

Wednesday, October 31, 2018

वह मुलाकात

आंखों से बात करने की वह दोतरफा कोशिश, बेहद अजीब सा लग रहा था हम दोनों को... बाद में तुम्हीं ने तो बताया था कि तुम कुछ और ही समझ रही थी मुझे लेकिन फिर भी बात करना चाहती थी और मैं इस उधेड़बुन में लगा था कि कहीं अगर मेरे बात करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो मेरे 'ईगो' का क्या होगा... उस मुलाकात में ऐसा लगा था जैसे हमारा कोई पुराना रिश्ता है, एक ऐसा रिश्ता जो शायद कभी अधूरा रहा हो और अब इस पड़ाव पर वह खुद को पूर्णता के शिखर पर देखना चाहता हो।

इसे ईश्वर पर विश्वास कहो या कुछ और, जीवन में सबकुछ कार्य-कारण सिद्धांत से जुड़ा होता है, कुछ भी अकारण नहीं होता, हमारी मुलाकात भी अकारण नहीं हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे खुद से मिलकर, खुद में ही खो गए हों हम। लेकिन मिलन का सुख पाना इतना आसान तो नहीं होता। छिप-छिपकर एक-दूसरे को देखना और अगर नजरें मिल जाएं तो लज्जा में नजरें झुका लेना। कितना खूबसूरत था ना वह समय...

चंद लम्हों में तब हम पूरी जिंदगी जी लेते थे। इंतजार होता था कि कब दिखोगी तुम, सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो क्लास में जाता था, नहीं तो असल पढ़ाई तो दोस्तों के साथ चौराहों पर ही होती थी। एक जुनून था, जिसकी वजह से सुकून खत्म सा हो गया था और उसी जुनून में पता नहीं कितने साल बिता दिए, साथ बिताए गए लम्हों को याद करके कविताएं लिखीं, एक पूरी किताब लिख डाली और लिखते-लिखते बस यही सोचता था कि क्या जो लिख रहा हूं, वह सब तुम्हें अपने सामने बैठाकर सुना पाउंगा....
#क्वीन

No comments:

Post a Comment