जरूरी नहीं कि प्यार में हर रिश्ते को कोई नाम दिया जाए, दूसरे शब्दों में कहें तो हर एक रिश्ते में प्यार हो सकता है और बिना रिश्ते के भी प्यार हो सकता है। लेकिन 'हम' तो हमारे प्यार को एक रिश्ते का नाम देना चाहते थे ना! जैसे ईश्वर को चाहता था, वैसे ही तुम्हें भी और जैसे ईश्वर से तुम्हें मांगता था, वैसे ही तुमसे भी तुम्हें मांगता था, यह जानते हुए कि सिर्फ पाने को प्यार नहीं कहते, मैं तुम्हें पाना चाहता था। और आखिरकार पा लिया तुम्हें, हमारी आत्मा का वह मिलन, ऐसा लगा था कि जैसे प्रीत की कोई अल्पना सी सज गई है, ऐसा लगा था जैसे स्याह रात में रोशनी हो गई है। निष्पाप और निश्छल भावनाओं के साथ की वह छुअन अलैकिक थी। तुम्हारे हाथ की उस अंगूठी को छूने के बहाने उस प्रथम स्पर्श में ऐसा लगा था जैसे स्पर्श त्वचा का नहीं, हृदय का है।
लेकिन अपनी आखिरी मुलाकात में सब बदला-बदला सा था। जाते-जाते जब तुमने हाथ मिलाया तो लगा जैसे हमारी आत्माएं एक-दूसरे से अलग हो रही हैं, हमारे दिल दूर जा रहे हैं। अकारण हुए उस दिव्य प्रेम में जो कुछ था, सब इंद्रियों से परे था। लेकिन उस अंतिम मुलाकात में इंद्रीय स्पर्श को महसूस किया था मैंने। न हाथों में वह गर्माहट थी और ना ही पुरानी गर्मजोशी।
मेरी आंखों में देखकर पहले तुम सब समझ जाती थी, लेकिन उसदिन तो मेरे कहने के बावजूद भी नहीं समझी कि मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। पहली छुअन के समय जो घबराहट था, वह शायद अब बेबसी बन चुकी थी। कभी स्पर्श मात्र से मोम से पिघल जाने वाली वह लड़की उसदिन पत्थर सी लग रही थी और पत्थरों का मैं क्या करता। चले जाना मजबूरी थी, पत्थर को ईश्वर समझकर पूज भी नहीं सकता था क्योंकि ईश्वर तो हृदय में वास करता है, और तुम तो उस हृदय को ठोकर मारकर चली गई थी, आखिर अफने ईश्वर का अपमान कैसे बर्दाश्त करता मैं
#क्वीन
'क्वीन' कौन है? इस सवाल का जवाब तो मैं भी खोज रहा हूं। मैं तो बस इतना जानता हूं कि यह सामान्य को विशिष्ट बनाने का एक प्रयास है... कोई अलंकार नहीं... सिर्फ सच्ची भावनाएं... तुम थी तो सब कुछ था... तुम नहीं हो तो भी सब कुछ है....लेकिन तब वह 'सब कुछ' अच्छा लगता था लेकिन अब.... #क्वीन
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Friday, November 2, 2018
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