मृगांक की रोशनी में तुम्हारे उपवास का पारायण कराने का स्वप्न अन्तक के मुख में विलीन हो गया। अब जितनी बार भी तुम मेरे सामने आती हो, ईश्वर का धन्यवाद देता हूँ कि तुम्हारी रम्यता के मोहपाश से बच गया। वृष्टि के बीच मेरे नयनों से होने वाली वर्षण किसी को नहीं दिखी,लेकिन आज तुमसे दूरी बनाने की वजह से चेहरे पर अद्भुत द्युति छा गई है।
प्रथम प्रयास को अंतिम लक्ष्य मान लिया था लेकिन भूल गया था कि पहली बार
में कोई पूर्ण दक्ष नहीं हो जाता। अनुभव की पाठशाला ने बहुत कुछ दे दिया,
दूसरी बार जब मन में प्रेम का आविर्भाव हुआ तो मैं पारंगत हो चुका था, उसे
सहेजकर रखने में। देखो ना, आज वेदना एवं प्रेम के संयुक्त भाव को शब्द
देकर मृगमद की भांति महकने लगा हूँ। अगर यह सब ना होता तो शायद मां
वाग्देवी की कृपा न बरसती।
#क्वीन #पुरानी_कहानी
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