कौन्तेय की भांति मैं भी अपना वचन निभाने में सक्षम था किंतु तुमने तो साथ चलने का साहस ही न दिखाया। अदम्यता से परिपूर्ण गौरव को तुम्हारी कथित लाचारी एवं उसके अहंकार ने हरा दिया। प्रेम की ऊर्मि आखिर निढाल हो गई। आख़िर कब तक करता इंतजार? कब तक घर के चक्कर लगाता, कब तक बेवजह तुम्हारे पापा के नंबर पर फोन करता, कब तक एक बार चेहरा देखने की उम्मीद लिए चौराहे पर खड़ा रहता, कब तक बेउम्मीद होकर मरने और मारने की तरकीबें सोचता, कब तक उनसे नजरें चुराता जिनको तुम्हारे साथ सात फेरे लेने के वचन दिए थे? हरा दिया था तुमने मुझे, तुम्हारे मासूम चेहरे के पीछे छिपे उस गैरजिम्मेदाराना अनुबंध ने संबंध समाप्त करने पर विवश कर दिया। अगर वह ना आती तो पूर्ण रूप से निरंकुश हो जाता मैं, और फिर कोई न रोक पाता...
हो सकता है कि तुमको लगता हो कि अगर मेरा प्यार सच्चा था तो तुम्हारे दूर
जाने के बाद मैंने किसी और से संबंध क्यों जोड़ा? सवाल जायज है लेकिन प्यार
दोतरफा, शाश्वत एवं विवेकसम्पन्न होता तो मुझे कभी फिर से आकर्षण नहीं
होता। वादे के मुताबिक, 3 साल तक लोग तुम्हें प्यार करते रहे, कामना करते
रहे कि उन्हें हमारे जैसा प्यार मिले लेकिन मैं नहीं चाहता कि किसी का
प्यार हमारी तरह हो... जिसमें सिर्फ धोखा, बेवफाई और असि की भांति घाव देने
की क्षमता हो...
#क्वीन #पुरानी_कहानी
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