कहीं पढ़ा था कि कर्तव्य, प्रेम से बहुत ऊंचा होता है, लेकिन उस कर्तव्य की परिभाषा क्या है? क्या प्रेम में प्रेयसी के प्रति समर्पण से बड़ा कोई कर्तव्य होता है? तुमने हर बंधन तोड़ने का बीड़ा उठाया था, जाति, महजब, तथाकथित सामाजिक परंपराएं... हर बंधन तुम्हारे प्रेम के सामने कच्चे धागे सा था। और फिर तुम्हें सहेजकर रखने से बड़ा कर्तव्य क्या हो सकता था? हर कोशिश की थी मैंने तुम्हें सहेजने की, पर पता नहीं कैसे उस शख्स की अहमन्यता ने सब बदल दिया। जिस दिन एक-दूसरे का हाथ छूटा था, तब से सैकड़ों साजिशें हुईं, पर हम में से कोई किसी का हाथ नहीं थाम पाया।
विरह की उस कड़ी के बाद जिंदगी में कई नए किस्से जुड़ सकते थे, कई इल्जाम लग सकते थे, पर हम दोनों को खुद पर गुरूर था। शायद इसीलिए हमने इल्जाम नहीं इंतजार चुना। इस इंतजार की इंतहा क्या थी, किसी को नहीं पता था, पर फिर भी हम इंतजार करते रहे। ऐसा लगता था कि सूर्योदय के बाद भी चांद जग रहा है, मेरे इंतजार में मेरा साथ दे रहा है। मान बैठा था कि वो इंतजार सदियों तक चलने वाला है। इस जन्म में ना सही तो अगले जन्म में ही सही, तुम मिलोगी और मानोगी कि हमारा प्रेम पूर्णता की पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, लेकिन देखो ना प्रणय देव की कैसी कृपा हुई, तुम मिली और एक नई कहानी बन गई...
पता है, अगर बात अगले जन्म की होती और तुम्हारे मिलने की गांरटी होने के बावजूद मेरे पास अगर खुद से कुछ बनने का ऑप्शन होता तो मैं गौरव नहीं बनता। मैं सिर्फ एक मांग रखता कि मुझे 'तिल' बना दिया जाए, वो तिल जो तुम्हारे सबसे करीब है...वो तिल जो हर वक्त तुम्हारी खुशबू महसूस करता है... वो तिल जो सबकुछ जिसे देखकर मैं अपना दिल दे बैठा था... वो तिल जो तुम्हारे दिल के सबसे करीब था... वो तिल जो तुम्हारी हर बात सबसे पहले सुनता था... वो तिल जो ईश्वर की सबसे प्यारी कलाकारी थी... वो तिल जो मेरे चांद को हर बुरी नजर से बचाता था...
#क्वीन
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