सबसे ज्यादा पढ़ी गईं पोस्ट

Friday, December 29, 2017

बहुत मुश्किल था अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ना

 मैं टकटकी लगाए तुम्हारे दिल की गहराइयों से निकली वे बातें सुन रहा था। कभी तुम्हारी आंखें नम हो जाती थीं तो कभी उसी चेहरे पर मुस्कुराहट तैर जाती थी। तुम्हारी वे दिलकश बातें सुनकर बीच-बीच में मेरी आंखें तुम्हारी नितांत व्यक्तिगत निष्ठा का मनन करने लगती थीं। तुम जिस अन्दाज़ में अपना किस्सा सुना रही थी, वह मंजर मुझे देखा हुआ सा लगने लग रहा था। तुम तो सिर्फ मेरी कॉलेज फ्रेंड थी ना? फिर क्यूं मुझे वे सारी बातें सुनाती थी? क्यों अपने दर्द, अपनी खुशियों में मुझे शामिल करने की कोशिश करती थी? क्यों मेरे दर्द में मुझे सहारा देती थी, क्यों अपने दर्द में मेरे कंधे पर सिर रखकर रोती थी?

तुम्हारे इसी व्यवहार की वजह से रात-दिन, सुबह-शाम मैं बस तुम्हारे ही ख्याल में खोया रहता था। मैं हकीकत में क्या कर रहा हूं, इस सवाल का जवाब मैं खुद नहीं खोज पा रहा था। खाना खाने से लेकर पढ़ाई करने तक, मुझे कुछ ध्यान या याद नहीं रहता था। जो काम मुझे सबसे ज्यादा पसंद था, उसमें भी मन लगना बंद हो गया था। अपनी पसंद का खाना बोझ लगने लगा था। बस इतनी सी तमन्ना थी कि कॉलेज में किसी तरह तुम्हारी एक झलक दिख जाए। तुम्हारे गुलाबी होठों से अपने नाम को सुनने की तमन्ना रहती थी।

पता नहीं कि तुम यह सब समझती भी थी या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि इन सबके बीच मैं खुद से एक लड़ाई लड़ने लगा था। अपने आप से अपने अस्तित्व की लड़ाई... एक ऐसी लड़ाई जिसे मैं जीतना नहीं चाहता था... क्योंकि अगर उस लड़ाई में मैं जीत जाता तो मेरी मोहब्बत हार जाती और मैं मेरी नजरों के सामने अपनी मोहब्बत को हारते हुए नहीं देख सकता था... और देखो, उस हार का परिणाम क्या हुआ... अपने अस्तित्व की लड़ाई को हारने के बावजूद मैंने तुम्हारा अस्तित्व 'गढ़' दिया.... एक ऐसा अस्तित्व जिसका कभी विनाश नहीं हो सकता... एक ऐसा अस्तित्व जिसमें लोग अपनी मोहब्बत का अक्स देखते हैं..
#क्वीन

तुम्हारी मां की ईदी और मेरे 'राम'

फिर से ईद आ गई... तुम्हें याद है वो ईद जब तुमने सुबह-सुबह मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था और मेरा नाम 'आलम' बताकर अपनी मां से परिचय था। फिर ईदी वाले 500 रुपए लेने के बाद जब मैं तुम्हारी मां के पैर छूने के लिए झुका तो सारा राज खुल गया। और फिर बची-खुची कसर गले की चेन में पड़े 'ॐ' वाले लॉकेट ने पूरी कर दी। फिर जो-जो सुनना पड़ा, हाय राम! क्या कहूं... तुम्हारी मां से पहली मुलाकात ऐसी होगी, सोचा भी नहीं था...
और फिर, जब तुम 3 दिन बाद मिली तो मुझे उम्मीद थी कि तुम कहोगी, 'गौरव, तुमसे एक काम भी ठीक से नहीं होता।' लेकिन तुमने तो कहा, 'चलो, अच्छा हुआ कि मम्मी को पहली बार में ही सब पता लग गया, ज्यादा झूठ नहीं बोलना पड़ा।' आदत हो गयी थी तुम्हारी.. ज़रूरत बन गई थी तुम, बिलकुल वैसी ही जैसे किसी थक कर चूर हो चुके आदमी को सुकून वाली नींद की ज़रूरत होती है। मुझे मालूम होता था कि मेरे 'ये' कहने पर तुम 'वो' कहोगी और तुम हर बार 'वो' ही कह देती थी। दिल पहले ही जान जाता था कि किस बात पर तुम्हारा क्या रिऐक्शन होगा।
लेकिन उस ईद पर मात खा गया था। उम्मीद से बिलकुल उलट बात कही थी तुमने लेकिन तुम्हारी सच्चाई ने एक बार फिर दिल जीत लिया था... वो आखिरी ईद थी जब हम एक दूसरे से मिले थे... अब तो बस हर ईद पर तुम्हारी मां के द्वारा दिए गए उस बंद हो चुके नोट में अपनी अधूरी मोहब्बत के पूरी न होने की वजह खोजने की नाकाम कोशिश होती है...
#क्वीन